भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी शुरू हो चुकी है. इसके साथ ही घरों एवं गणेश पंडालों में गणेश जी अपने प्रिय वाहन मूषक राज के साथ पधार चुके हैं. चारों ओर ‘गणपति बप्पा मोरया मंगल मूर्ति मोरया’ की गगनभेदी गूंज उठ रही है. गजराज मुखी के साथ नन्हे मूषक राज को देखकर बच्चों के मन में कौतूहल उठना स्वाभाविक है कि नन्हे मूषकराज पर विशालकाय गणपति बप्पा कैसे सवारी करते होंगे? इस संदर्भ में हिंदू धर्म ग्रंथों में तमाम पौराणिक कथाओं का उल्लेख है. यहां हम एक कथा के माध्यम से बच्चों के कौतूहल को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं.
हिंदू धर्म ग्रंथों में ऐसी कई बातें हैं, जो मन में किंचित जिज्ञासा उत्पन्न करती हैं, मसलन शिवजी के गले में सर्प की माला, उनका नंदी पर सवारी करना, मां दुर्गा की सिंह की सवारी, भगवान कार्तिकेय का मोर की सवारी इत्यादि. गणेशजी के वाहन मूषकराज (चूहा) से जुड़ी एक रोचक कहानी है. आइये जानते हैं. यह भी पढ़ें : Eid Milad Un Nabi 2024: कब मनाया जाएगा ईद-ए-मिलाद? जानें इसका इतिहास, महत्व तथा शिया-सुन्नी कैसे मनाते हैं इस पर्व को?
किसने श्राप दिया था मूषक राज को?
विष्णु पुराण के अनुसार एक बार देवराज इंद्र का दरबार चल रहा था. वहीं पर क्रोंच नामक एक गंधर्व भी था, लेकिन उसका ध्यान दरबार की कार्यप्रणाली पर नहीं था. वह हंसी-ठिठोली कर रहा था. इसी ठिठोली में मग्न क्रौंच का पैर महर्षि वामदेव पर पड़ गया. महर्षि ने क्रोधित होकर क्रौंच को चूहा बनने का श्राप दे दिया. चूहा बनने के बाद क्रौंच और चंचल होकर महर्षि को परेशान करने लगा. तब महर्षि गणेशजी के पास पहुंचे, और चूहे की शरारत से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. गणेशजी ने चूहे पर पाश फेंककर बंदी बना लिया. चूहे को अपनी गलती का अहसास हुआ. उसने गणेशजी की स्तुतिगान करते हुए बंधन-मुक्त करने की याचना की. चूहे की याचना और उसके नटखट स्वभाव से प्रसन्न होकर छमा दान तो दे दिया. मगर बताया कि पाश की शक्ति का सम्मान करते हुए उसे पाश-मुक्त नहीं किया जा सकता. वह चाहे तो सदा के लिए मेरे पास रह सकता है. चूहे की स्वीकृति के बाद गणेश जी ने चूहे में अदम्य शक्ति का संचार करते हुए उसे अपना वाहन बनने की स्वीकृति प्रदान किया. गणेश जी ने ऐसा करके दर्शाया कि किसी को भी छोटा या तुच्छ नहीं समझना चाहिए, क्योंकि हर किसी की अपनी क्षमता और उपयोगिता होती है.