अवसर किसी पर्व विशेष का हो या जन्मदिन का, हर पल, हर पर्व पर चॉकलेट ने आज अपना प्रभुत्व जमा लिया है. बच्चों से वृद्ध तक की पहली पसंद चॉकलेट बन चुकी है. दीवाली, रक्षा बंधन, अथवा ईद जैसे पर्वों पर उपहारों का आदान-प्रदान पहले जहां मिठाइयों और ड्राइ फ्रूट से होती थी, आज उसकी जगह चॉकलेट ने ले ली है. चॉकलेट अमेरिका की खोज है, लेकिन जहां तक भारत की बात है तो गत वर्ष विश्व चॉकलेट दिवस 7 जुलाई के अवसर पर स्वैगी द्वारा किये ऑन लाइन चॉकलेट उत्पादों के खपत पर एक अध्ययन किया गया.
इसमें पाया गया कि ऑनलाइन मंगाई गई मिठाइयों में 60 प्रतिशत मिठाइयां चॉकलेट की बनी होती हैं. पर्व अथवा विशेष अवसरों पर इसकी मांग कई गुना बढ़ जाती है. लेकिन क्या किसी ने सोचा है कि आज सबका पसंदीदा बन चुका चॉकलेट कभी कसैला होता था, कुछ इसे सुअरों का पेय भी कहने से नहीं चूके. आखिर कब और कैसे अपनी सफर को सबकी पसंद से जोड़ा चॉकलेट ने.. आइये जानें
चॉकलेट की शुरुआत कब हुई, इस संदर्भ में सबके अलग-अलग मत हैं. कुछ इसे लगभग 4000 वर्ष पुराना बताते हैं तो कुछ 2 हजार साल पुराना होने का दावा करते हैं. लेकिन एक सच जरूर है कि पहली बार चॉकलेट के वृक्ष अमेरिका में देखे गये. अमेरिका के वर्षा जंगल में चॉकलेट के पेड़ की फलियों में जो बीज होते हैं. उन्हीं से चॉकलेट पर प्रयोगों की शुरुआत हुई थी.
इस पर प्रयोग करने वालों में मैक्सिकों और अमेरिका सबसे आगे थे. साल 1528 में स्पेन के किंग ने मैक्सिको पर कब्जा जमाया. यहां के किंग को कोक बहुत पसंद आया. वह इसके बीजों की बड़ी खेप मैक्सिकों से स्पेन ले गया. देखते ही देखते स्पेन में चॉकलेट रईसों का फैशनेबल ड्रिंक बन गया.
तब कसैला था कोक का स्वाद
अपने शुरुआती सफर में चॉकलेट कसैला और तीखा हुआ करता था. वस्तुतः ककाऊ के बीजों को फॉरमेट करके इसे रोस्ट कर पीस कर पाउडर बनाया जाता था. इस पाउडर के कसैलेपन को दूर करने के लिए इसे पानी में घोलकर इसमें शहद, वनीला, मिर्च और अन्य मसाले मिलाकर कोल्ड कॉफी की तरह झागयुक्त पेय बनाया गया. उस समय यह सबसे महंगा पेय माना जाता था.
इसके बाद एक अंग्रेज डॉक्टर सर हैंस स्लोने ने दक्षिण अमेरिका का दौरा किया. वहां पर उन्होंने इस पेय की नई रेसिपी तैयार कर उसे खाने लायक बनाया और इसका नाम रखा कैडबरी मिल्क चॉकलेट.
युरोप ने बनाया इसे मीठा
अमेरिका से युरोप आये चॉकलेट को सबसे पहले स्पेन ने हाथों हाथ लिया. कसैला और तीखा होने के कारण यहां के लोग इसे सुअरों का पेय कहने से भी बाज नहीं आए. 1828 में एक डच केमिस्ट कॉनराड जोहान्स वान हॉटन ने कोको प्रेस नामक मशीन का निर्माण किया. कॉनराड ने इस मशीन की मदद से चॉकलेट एल्केलाइन सॉल्ट मिलाकर इसके कसैलेपन को कम करते हुए कोको बींस से कोको बटर को अलग किया. साल 1848 में ब्रिटिश चॉकलेट कंपनी जे.एस फ्राई एंड संस ने पहली बार कोको लिकर में कोको बटर, दूध और शक्कर मिलाकर पहली बार इसे पीने से खाने लायक चॉकलेट में तब्दील किया.
सेहत के लिए भी लाभकारी है चॉकलेट
वैसे तो आम धारणा है कि चॉकलेट खाने से मोटापा बढ़ता है. चिकित्सकों के अनुसार यह आधा सच है. दिन भर चॉकलेट खाने वाला निश्चित रूप से मोटा और बेडौल हो सकता है. लेकिन चॉकलेट के बीज में भी औषधियों की भरमार होती है. एक शोध में पाया गया कि नियमित चॉकलेट खाने से टेंशन कम होता है, क्योंकि चॉकलेट खाने से तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन्स नियंत्रित होते हैं. चॉकलेट के सेवन से ऑक्सीडेटिव तनाव कम होता है.
इस वजह से सूजन, चिंता और इंसुलिन प्रतिरोध जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं. साल 2010 में हुए एक सर्वे के अनुसार पाया गया कि चॉकलेट ब्लड प्रेशर कम करता है. कैलिफोर्निया के सैन डियागो विश्वविद्यालय में हुए एक शोध में पाया गया है कि जो वयस्क नियमित रूप से चॉकलेट खाते हैं, उनका बॉडी मास इंडेक्स चॉकलेट न खाने वालों की तुलना में कम रहता है. वहीं एक अमेरिकी अध्ययन के अनुसार रोजाना हॉट चॉकलेट के दो कप पीने से वृद्ध लोगों का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उनकी सोचने की क्षमता भी तेज होती है.