Veer Savarkar Jayanti 2020: विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलाने वाले तमाम क्रांतिकारियों में अकेला ऐसा सिपाही जिसने सर्वप्रथम विदेशी कपड़ों की होली जलाई. जिसे एक नहीं दो दो बार उम्र कैद की सजा हुई. जिन्हें काला पानी के दरम्यान अंग्रेज अधिकारियों की बग्घियों का घोड़ा बनकर जुतना पड़ा. जिनकी पहली पुस्तक प्रकाशित होने से पहले ही ब्रिटिश (British) हुकूमत द्वारा बैन कर दिया गया.
उसके बारे में अगर यह कहा जाए कि वह अंग्रेज हुकूमत की चाटुकारिता करता था, उसने अंग्रेज अधिकारियों के सामने नाक रगड़ कर माफी मांगी, तो अचानक विश्वास करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. फिलहाल यहां हम वीर सावरकर के जीवन के कुछ खास अंश रख रहे हैं.
वानर सेना का निर्माण
वीर सावरकर का जन्म 28 मई, 1883 में नासिक (महाराष्ट्र) के भगुर गांव में हुआ था. मां का नाम राधाबाई सावरकर (Radhabai Savarkar) और पिता दामोदर पंत सावरकर थे, उनके माता-पिता की चार संतानें थीं, जिसमें तीन भाई और एक बहन थीं. उनकी प्रारंभिक शिक्षा नासिक स्थित शिवाजी स्कूल से हुई थी. वे जब मात्र 9 साल के थे, पहले उनकी मां का फिर पिता का भी स्वर्गवास हो गया. सावरकर बचपन से ही बागी प्रवृत्ति के थे. 11 वर्ष की आयु में उन्होंने ̔वानर सेना बनाई थी.
सावरकर हाई स्कूल के दौरान बाल गंगाधर तिलक द्वारा शुरू किए गए ̔शिवाजी उत्सव ̕और ̔गणेश उत्सव का आयोजन करते थे. वह तिलक को अपना गुरु मानते थे. 1901 मार्च में उनका विवाह ̔यमुनाबाई से हुआ.
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गतिविधियां
पुणे में सावरकर ने ̔अभिनव भारत सोसाइटी ̕का गठन किया और यहीं वो स्वदेशी आंदोलनों से जुड़े. बाद में गंगाधर तिलक के साथ ̔स्वराज दल ̕में शामिल हो गए. उनके देश भक्ति से ओजस्वी भाषण और ब्रिटिश हुकूमत विरोधी गतिविधियों के अंग्रेज सरकार ने उनकी स्नातक की डिग्री छीन ली.1906 में बैरिस्टर बनने हेतु इंग्लैंड चले गए. वहां उन्होंने भारतीय छात्रों को भारत में हो रहे ब्रिटिश शासन के खिलाफ इकट्ठा कर ̔आजाद भारत सोसाइटी का गठन किया, और हथियारों के इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया.
̔द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस 1857’ का गुपचुप प्रकाशन
इसी दौरान उन्होंने एक पुस्तक ̔द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस 1857’ लिखी. इस पुस्तक में 1857 के ̔सिपाही विद्रोह' को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई बताया था. ब्रिटिश सरकार ने उसके प्रकाशन पर रोक लगा दी. लेकिन मैडम भीकाजी कामा̕ के सहयोग से हॉलैंड चोरी छिपे पुस्तक प्रकाशित हुई और इसकी प्रतियां फ्रांस होते हुए भारत पहुंची.
काला पानी की सजा
1909 में सावरकर के सहयोगी मदनलाल धिंगरा, ने सर विएली को गोली मार दी. उसी दौरान नासिक के तत्कालीन ब्रिटिश कलेक्टर ए.एम.टी जैक्सन की भी गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी. इस हत्या के बाद सावरकर पूरी तरह ब्रिटिश सरकार के चंगुल में फंस चुके थे. 13 मार्च 1910 को लंदन में उन्हें कैद कर लिया गया. उनपर गंभीर आरोप लगाये गए, और 50 साल की सजा सुनाकर अंडमान के सेलुलर जेलभेज दिया गया. यहां उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गईं.
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सशर्त रिहाई!
2 मई 1921 को उन्हें पहले रत्नागिरी जेल भेजा फिर यरवदा जेल भेज दिया गया. 1924 में उन्हें सशर्त रिहाई मिली कि वे पांच साल तक कोई राजनीति कार्य कर सकते थे, लेकिन रिहा होने के बाद उन्होंने 23 जनवरी 1924 को ̔रत्नागिरी हिंदू सभा’ का गठन किया और भारतीय संस्कृति और समाज कल्याण के लिए काम करना शुरू किया. इसके बाद सावरकर तिलक की स्वराज पार्टी में शामिल हो गए और बाद में हिंदू महासभा नाम की एक अलग पार्टी बना ली. 1937 में वे अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष चुने गए. इसके बाद भारत छोड़ो आंदोलन’ ̕का हिस्सा भी बने.
गांधीजी की हत्या और जेल!
सावरकर ने पाकिस्तान निर्माण का विरोध किया और गांधीजी को ऐसा नहीं होने देने के लिए निवेदन किया. उसी दौरान नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी जिसमें सावरकर का भी नाम आया. सावरकर को एक बार फिर जेल जाना पड़ा, परंतु साक्ष्यों के अभाव में उन्हें रिहा कर दिया गया. तिरंगे में धर्म चक्र लगाने का सुझाव सर्वप्रथम उन्होंने ही दिया था. 1 फरवरी 1966 को उन्होंने मृत्यु पर्यन्त उपवास का निर्णय लिया था. 26 फरवरी 1966 को उन्होंने मुम्बई में वे चिरनिद्रा में लीन हो गए.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है.