Vasu Baras 2021: कब है वासु बरस का पर्व? जानें इसकी पूजा-विधान एवं महत्व!
Vasu Baras 2021 (File Photo)

महाराष्ट्र में दीपावली महापर्व की शुरुआत ‘वासु बरस’ के रूप में होती है. कार्तिक मास की द्वाद्वसी के दिन मनाये जानेवाले इस पर्व को गुजरात एवं आंध्र प्रदेश में ‘वाघ बरस’, तथा देश के अन्य हिस्सों में ‘गुरु द्वाद्वशी’ या ‘गोवत्स द्वाद्वसी’ के नाम से भी मनाया जाता है. इस पर्व को मनाने का मुख्य औचित्य हमारे कृषि-धन का आधार यानी हमारी गायों को सम्मानित करना है. हिंदू धर्म में गायों को मानव जाति को पोषण के लिए बहुत पवित्र और माँ समान माना जाता है. Diwali 2021 Date & Schedule: धनतेरस से लेकर लक्ष्मी पूजन और भाईदूज तक, देखें पांच दिवसीय दिवाली उत्सव की महत्वपूर्ण तिथियों की पूरी लिस्ट.

इस दिन विवाहित महिलाएं अपने परिवार के अच्छी सेहत एवं ऐश्वर्य के लिए श्रीकृष्ण के साथ-साथ गायों की पूजा-अर्चना करती हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार वासु बरस का पर्व 2 नवंबर को मनाया जायेगा.

वासु बरस की पूजा-विधान

कार्तिक कृष्णपक्ष की द्वाद्वशी के दिन प्रातःकाल गाय और बछड़े को स्नान कराया जाता है. यह पूजा मुख्य रूप से गोधुली बेला में की जाती है, जब सूर्य देवता पूरी तरह अस्त नहीं हुए हों. पूजा से पूर्व उन्हें रंग-बिरंगे कपड़े एवं फूलों की माला पहनाई जाती है. उनके मस्तक पर सिंदूर अथवा हल्दी का तिलक लगाया जाता कहै. कुछ स्थानों पर गाय एवं बछड़े की मूर्ति रखी जाती है.

उन्हें भोग स्वरूप गेहूँ के उत्पाद, चना और मूंग की फलियाँ खिलाई जाती हैं. इसके बाद आरती उतारी जाती है, चूंकि गाय भारत के कई गांवों में मातृत्व और आजीविका का मुख्य स्त्रोत हैं, इसलिए इस पूजा का विशेष महत्व है. इस दिन महिलाएं अपने बच्चों की भलाई के लिए व्रत रखती हैं.

वासु बरस का महत्व

भविष्य पुराण में वासु बरस (गोवत्स द्वादशी) का महात्म्य उल्लेखित है. इसे बछ बारस का पर्व भी कहते हैं. इस पर्व को नंदिनी व्रत के नाम से भी मनाया जाता है, क्योंकि नंदिनी और नंदी (बैल) दोनों को शैव परंपरा में काफी पवित्र माना जाता है. यह पर्व मूलतः मानव जीवन के प्रति गौ-वंशों को आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है. इसीलिए इस दिन गाय और बछियों की संयुक्त पूजा की जाती है. पूजा के दरम्यान गेहूं से तैयार उत्पादों को उन्हें खिलाया जाता है.

मान्यता है कि गोवत्स द्वाद्वशी की सबसे पहली पूजा राजा उत्तानपाद (स्वयंभु मनु के पुत्र) एवं उनकी पत्नी सुनीति ने उपवास रखकर मनाया था. उनकी प्रार्थना एवं उपवास के कारण उन्हें ध्रूव नामक सुपुत्र प्राप्त हुआ था.

इस दिन पूजा करनेवाले गेहूं और दूध से बने उत्पादों का सेवन नहीं करते. कुछ उत्तरी राज्यों में इस दिन को वाघ के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिसका अर्थ है वित्तीय ऋणों को चुकाना. इस दिन व्यवसायी अपने खातों की साफ-सफाई करते हैं. इस दिन नए खातों में लेन-देन नहीं करते. मान्यता है कि इन व्रत और पूजा से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.