Valmiki Jayanti 2019: श्रीराम-सीता का नहीं हुआ था स्वयंवर, सुपर्णखा के श्राप से हुई थी रावण की मृत्यु, वाल्मीकि रामायण से जानिए श्रीराम के जीवन के कुछ अनसुने प्रसंग
वाल्मीकि जयंती 2019 (Photo Credits: File Image)

Happy Valmiki Jayanti 2019: मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम (Shri Ram) के जीवन पर दो मुख्य महाकाव्य लिखे गये, एक ‘रामायण’ (Valmiki Ramayan) जिसे त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि (Maharishi Valmiki) ने लिखी और दूसरी कलियुग में ‘श्रीरामचरित मानस’ जिसके रचयिता थे गोस्वामी तुलसीदास. श्रीराम त्रेतायुग में थे, मान्यता है कि ‘रामायण’ लेखन के दरम्यान महर्षि वाल्मीकि श्रीराम से मिले थे. इसलिए स्वाभाविक है ‘रामायण’ के प्रसंगों की सत्यता बढ़ जाती है, लेकिन ‘रामायण’ संस्कृत में लिखी गयी और ‘श्रीरामचरित मानस’ हिंदी-अवधी में लिखी गयी थी, इसलिए ‘श्रीरामचरित मानस’ की लोकप्रियता ज्यादा है. लेकिन यहां हम ‘रामायण’ से उद्घृत उन अंशों की बात करेंगे, जो ‘श्रीरामचरित मानस’ में भी नहीं है, ना ही कहीं सुनी या पढ़ी गयी, जिसे जानकर आप भी चौंक जायेंगे.

  •  ‘श्रीरामचरित मानस’ में सीता स्वयंवर का उल्लेख बहुत नाटकीय तरीके से किया गया है, जबकि ‘रामायण’ में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है. इसके अनुसार महर्षि विश्वामित्र श्रीराम-लक्ष्मण को साथ लेकर मिथिला गये हुए थे. विश्वामित्र ने जनक जी से भगवान शिव का धनुष दिखाने के लिए कहा. धनुष देखते ही श्रीराम ने सहजता से उसे उठा लिया और ज्यों ही प्रत्यंचा चढ़ाई, धनुष टूट गया. राजा जनक यह देख हैरान रह गये, क्योंकि शिवजी का वह धनुष इतना भारी था कि किसी आम आदमी के वश में नहीं था उसे उठा पाना. जबकि एक दिन उन्होंने सीता जी को सफाई करते समय धनुष को एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखते देख लिया था. तभी उन्होंने प्रण किया था कि जो भी इंसान शिव जी का यह धनुष उठा लेगा, उसके साथ वह अपनी पुत्री सीता का विवाह करवा देंगे. इसके बाद राजा जनक ने मिथिला में ही श्रीराम सीता का विवाह करवाया था.
  • हिंदू धर्म में मान्यता है कि यहां 33 करोड़ देवी-देवता हैं. रामायण के अरण्यकांड के चौदहवें सर्ग के चौदहवें श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता बताए गए हैं. यह भी पढ़ें: Happy Valmiki Jayanti Wishes In Hindi 2019: महर्षि वाल्मीकि जयंती के शुभ अवसर पर WhatsApp Stickers, SMS और Facebook के जरिए ये मैसेजेस भेजकर दोस्तों और रिश्तेदारों को दें शुभकामनाएं
  • यह तो सभी जानते हैं कि वन में सूपर्णखा का नाक-कान लक्ष्मण जी ने काट लिया था, लेकिन वाल्मीकि रामायण में यह भी लिखा है कि सुपर्णखा ने रावण के सर्वनाश होने का श्राप दिया था. दरअसल सुपर्णखा का पति विद्योदमय कालिकेय नामक राजा के यहां सेनापति था. रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो विद्योद्मय और रावण के बीच घमासान युद्ध हुआ और विद्योद्मय इस युद्ध में मारा गया. तब सुपर्णखा ने उसे मन ही मन श्राप दिया कि मेरे ही कारण तुम्हारा वध होगा.
  • रघुवंश कुल में एक परम प्रतापी राजा थे अनरण्य. रावण जब विश्वविजय के लिए निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुआ. उस युद्ध में अनरण्य की मृत्यु हो गई, लेकिन मरते-मरते उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा.
  • रामायण के मुताबिक राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्र यथेष्टि यज्ञ करवाया था. इस यज्ञ को मुख्य रूप से श्रृंगी ऋषि ने सम्पन्न करवाया था. ऋषि श्रृंगी के पिता का नाम महर्षि विभांड था. एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे, तभी उनका वीर्यपात हो गया. उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था. इसी वजह से ऋषि श्रृंगी का जन्म हुआ था.
  • विश्व विजय के लिए निकला रावण जब स्वर्गलोक पहुंचा तो वहां उसे रंभा नामक अप्सरा दिखाई दी. अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया. इस पर रंभा अप्सरा ने कहा, कि चूंकि मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर से प्यार करती हूं, इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू समान हूं. लेकिन रावण ने उसकी कोई बात नहीं सुनी. नलकुबेर ने जब यह बात सुनी तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण जब भी किसी पराई स्त्री की इच्छा के खिलाफ उसे स्पर्श भी करेगा तो उसके मस्तक के सौ टुकड़े हो जायेंगे.
  • अमरता के नशे में चूर लंका नरेश रावण यमराज को चुनौती देने यमलोक पहुंच गया. वहां रावण और यमराज के बीच लंबे समय तक भयंकर युद्ध हुआ. रावण के मायावी युद्ध से परेशान होकर अंततः यमराज अपना कालदंड उठाया, तब भगवान ब्रह्मा ने उन्हें मना करते हुए बताया कि रावण को वरदान मिला है कि उसका वध किसी देवता के द्वारा संभव नहीं, था. ब्रह्मा जी जानते थे कि अगर यमराज का कालदंड निष्क्रिय होता है तो सृष्टि में भारी परिवर्तन आ सकता था. बाद में भगवान विष्णु ने राम के रूप में जन्म लेकर रावण का वध किया था. यह भी पढ़ें: Valmiki Jayanti 2019: वाल्मीकि जयंती पर जानिए महर्षि वाल्मीकि की एक डाकू से प्रकांड पंडित और आदिकवि बनने की प्रेरक कथा
  • जिस दिन रावण माता सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया था, उसी रात भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए. देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर अर्धचैतन्य कर दिया. उसके बाद उन्होंने माता सीता को खीर अर्पित किया था. जिसे खाने के बाद माता सीता की भूख-प्यास श्रीराम के लंका आने तक शांत थी.
  • वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण ने अपनी पत्नी मंदोदरी की बड़ी बहन माया से भी छल किया था. माया के पति वैजयंतपुर के राजा शंभर थे. एक दिन रावण शंभर के यहां पहुंचा. वहां उसने माया को अपनी बातों की जाल में फंसा लिया. यह बात जब शंभर ने सुनी तो उसने रावण को कैद कर लिया. उसी समय श्रीराम के पिता एवं अयोध्या के महाराजा दशरथ ने शंभर पर आक्रमण कर दिया, जिससे शंभर की मृत्यु हो गई. पति की मृत्यु के पश्चात जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने के लिए कहा. माया ने कहा कि तुमने मेरा सतीत्व भंग करने का प्रयास किया इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई. अब तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण से होगी.

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, लंका में राम-रावण के बीच काफी समय तक युद्ध चलता रहा. अंततः अगस्त्य मुनि ने श्रीराम से आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करके रावण पर हमला करने को कहा. श्रीराम ने वैसा ही किया, इसके बाद ही रावण का वध हो सका था.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.