Vaikuntha Chaturdashi 2020: हिंदी पंचांग के अनुसार वैकुंठ चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) (Vaikuntha Chaturdashi) कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है. मान्यता है कि इस दिन जो भी श्रद्धालु श्रीहरि (भगवान विष्णु) की पूजा एवं व्रत करते हैं, उन्हें बैकुंठ धाम (Baikunth Chaturdashi) की प्राप्ति होती है. शिव पुराण में उल्लेखित है कि देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के दिन योग-निद्रा से जागने के बाद श्रीहरि ने सर्वप्रथम भगवान शिव की आराधना किया था, तब भगवान शिव ने श्रीहरि की पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें अचूक सुदर्शन चक्र प्रदान किया था. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष बैकुंठ चतुर्दशी 28 नवंबर को पड़ रही है. आइये जानें इस व्रत का महात्म्य, पूजा विधान, शुभ मुहूर्त और वैकुंठ चतुर्दशी की पारंपरिक व्रत कथा.
वैकुंठ चतुर्दशी का महात्म्य
हिंदू शास्त्रों में बैकुंठ चतुदर्शी का विशेष महात्म्य माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन देह त्यागने वाले व्यक्ति को सीधे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान शिव और श्रीहरि की साथ-साथ पूजा की परंपरा है. विद्वानों का मानना है कि ऐसा करने से सभी प्रकार के पाप और कष्ट नष्ट हो जाते हैं. मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव और श्रीहरि दोनों एकाकार रूप में होते हैं. इस दिन श्रीहरि की 1000 कमल पुष्पों से पूजा करनेवाला व्यक्ति मृत्योपरांत सपरिवार बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त करता है.
ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में भी श्रीकृष्ण ने युद्ध में मारे गए योद्धाओं का श्राद्ध बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही कराया था, इसलिए भी इस दिन श्राद्ध और तर्पण करना पुण्यकारी माना जाता है. बैकुंठ धाम की प्राप्ति केवल सद्गुणी, दिव्य पुरुष या सतकर्म करने वाले व्यक्ति को ही प्राप्त होता है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत एवं पूजा-अनुष्ठान पूरी श्रद्धा और निष्ठा से करता है तो उसे भी आसानी से बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें: Dev Diwali 2020: देव दीपावली कब है? जानें कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले इस पर्व का शुभ मुहूर्त और महत्व
शुभ मुहूर्त
बैकुंठ चतुर्दशी आरंभः रात्रि 10.22 बजे से (28 नवंबर 2020)
बैकुंठ चतुर्दशी समाप्तः 12.48 बजे (29 नवंबर 2020)
बैकुंठ चतुर्दशी निशीथ कालः रात्रि 11.39 बजे से 12.32 बजे तक
पूजा विधान
इस दिन व्रत के साथ पूजा अनुष्ठान करने वाला व्यक्ति प्रातःकाल उठकर गंगा जी अथवा किसी अन्य पवित्र नदी या सरोवर में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. इसके पश्चात शुभ मुहूर्त पर एक चौकी को धोकर उस पर गंगाजल छिड़कें, और उस पर पीले रंग का आसन बिछाएं. अब इस आसन पर सर्वप्रथम श्रीगणेश, भगवान शिव एवं श्रीहरि की प्रतिमा स्थापित करें. तीनों प्रतिमा को पहले पंचामृत फिर गंगाजल से स्नान कराएं. अब धूप दीप प्रज्जवलित कर सर्वप्रथम गणेश स्तुति के साथ गणेश जी का आह्ववान करें. अब श्रीहरि को 1000 कमल पुष्प अर्पित करें. अगर इतनी मात्रा में कमल पुष्प उपलब्ध नहीं हो रहा हो तो कम से कम एक कमल अवश्य चढ़ाएं.
इसके बाद उनका चंदन से तिलक करें, साथ ही आवश्यक रूप से श्रीहरि को तुलसीदल भी अर्पित करें. ध्यान रहे श्रीगणेश एवं भगवान शिव को तुलसी दल भूल कर भी न चढ़ाएं. अब विधिवत तरीके से भगवान शिव एवं श्रीहरि की पूजा अर्चना करें. प्रसाद में खिचड़ी, घी और आम के अचार का भोग लगाएं. अब हाथ में लाल पुष्प एवं अक्षत लेकर वैकुंठ चतुर्दशी की पारंपरिक कथा का वाचन अथवा श्रवण करें. अंत में श्रीगणेश, भगवान शिव एवं श्रीहरि की आरती उतारें. यह भी पढ़ें: Kartik Purnima 2020: कार्तिक पूर्णिमा कब है? क्यों इस दिन दान-स्नान का होता है सबसे अधिक महत्व, जानें शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा
बैकुंठ चतुर्दशी की पारंपरिक कथा
एक बार श्रीहरि भगवान शिव की पूजा के लिए काशी नगरी में आए. काशी के मणिकर्णिका घाट पर भगवान विष्णु ने शिवजी को 1000 कमल पुष्पों से भगवान शिव की पूजा करनी शुरू की. भगवान शिव ने श्रीहरि की परीक्षा के लिए 1000 स्वर्ण कमल पुष्पों में से एक पुष्प कम कर दिया. श्रीहरि ने जब उन पुष्पों को चढ़ाना शुरु किया तो उसमें से एक पुष्प कम निकला. श्रीहरि को ध्यान आया कि लोग उन्हें कमल नयन के नाम से भी पूजते हैं. श्रीहरि एक कमल पुष्प की जगह अपनी एक आंख शिवजी को अर्पित करने के लिए आगे बढ़े, तभी शिव जी ने उन्हें ऐसा करने से रोका.
वे श्रीहरि की भक्ति भाव से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें करोड़ों कांति से सुसज्ज सुदर्शन चक्र भेंट किया. संयोग से वह दिन कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी का दिन था. शिवजी ने श्रीहरि को यह वरदान भी दिया कि जो भी व्यक्ति जो इस दिन बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत एवं पूजा करेगा, उसे मृत्यु के पश्चात बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होगी. मान्यता है कि सभी पुण्य अर्जित करने वाले भक्तों के लिए बैकुंठ धाम की प्राप्ति सर्वश्रेष्ठ मुक्ति होती है.