Dev Diwali 2020: देव दीपावली कब है? जानें कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले इस पर्व का शुभ मुहूर्त और महत्व
देव दिवाली 2020 (Photo Credits: Instagram)

Dev Deepawali 2020: हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली (Dev Diwali) का पर्व मनाया जाता है, जिसे देव दीपावली (Dev Deepawali) भी कहा जाता है. इस साल देव दिवाली का त्योहार 29 नवंबर 2020 (रविवार) को मनाया जाएगा. देव दिवाली के पर्व को दीपावली (Deepawali)  के 15 दिन बाद मनाया जाता है. देव दिवाली के पर्व को काशी के गंगा घाटों (Ganga Ghats) पर बड़े दिव्य एवं भव्य तरीके से मनाया जाता है. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली का पर्व मनाने के लिए देवता धरती पर भगवान शिव की नगरी काशी आते हैं. इस दिन हजारों-लाखों की तादात में भक्त गंगा में आस्था की डुबकी लगाते हैं और काशी के 84 घाटों पर शाम के वक्त लाखों दीये जलाए जाते हैं. इस दिन दीयों की रोशनी से पूरी काशी नगर रोशन हो उठती है. चलिए जानते हैं देव दिवाली का शुभ मुहूर्त और महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा.

शुभ तिथि और मुहूर्त

देव दिवाली तिथि- 29 नवंबर 2020 (रविवार)

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ- 29 नवंबर 2020 दोपहर 12.47 बजे से,

पूर्णिमा तिथि समाप्त- 30 नवंबर 2020 दोपहर 02.59 बजे तक.

पूजा का समय- 29 नवंबर शाम 05.08 बजे से शाम 07.47 बजे तक.

कुल अवधि- 2 घंटे 40 मिनट.

देव दिवाली का महत्व

दीपावली का उत्सव कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है, जबकि देव दीपावली का पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. पौराणिक धारणाओं के अनुसार, इस दिन सभी देवी-देवता देव दीपावली मनाने के लिए भगवान शिव की नगरी काशी जाते हैं. इस दिन संध्या के समय गंगा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और वाराणसी के सभी घाटों को दीयों से रोशन किया जाता है. इस दिन गंगा नदी में स्नान और दान करने का कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था, इसलिए इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व बताया जाता है.  यह भी पढ़ें: Kartik Purnima 2020: कार्तिक पूर्णिमा कब है? क्यों इस दिन दान-स्नान का होता है सबसे अधिक महत्व, जानें शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक असुर का अंत करके देवताओं को उसके आतंक से मुक्त कराया था. त्रिपुरासुर का वध करने के कारण ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का अंत हुआ था, इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है. कहा जाता है कि त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्त होने पर सभी देवी-देवताओं ने दिवाली का उत्सव मनाया था, इसलिए इस दिन काशी में देव दिवाली का भव्य उत्सव मनाया जाता है.