Swami Vivekananda Punyatithi 2021: स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धर्म संसद में अपने भाषण में ऐसा क्या कहा था कि विदेशी हो गए थे उन पर मोहित
Swami Vivekananda (Photo Credits: Wikimedia Commons)

Swami Vivekananda Punyatithi 2021: स्वामी विवेकानंद एक हिंदू भिक्षु थे और भारत के सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेताओं में से एक थे. वे एक विपुल विचारक, महान वक्ता और भावुक देशभक्त थे. उन्होंने अपने गुरु, रामकृष्ण परमहंस के मुक्त-विचार दर्शन को एक नए प्रतिमान में आगे बढ़ाया. उन्होंने समाज की भलाई के लिए, गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में, अपने देश के लिए अपना सब कुछ समर्पित करने के लिए अथक प्रयास किया. वह हिंदू अध्यात्मवाद के पुनरुद्धार किया और विश्व मंच पर हिंदू धर्म को एक सम्मानित धर्म के रूप में स्थापित किया. सार्वभौमिक भाईचारे और आत्म-जागरूकता का उनका संदेश विशेष रूप से दुनिया भर में व्यापक राजनीतिक उथल-पुथल की वर्तमान पृष्ठभूमि में प्रासंगिक बना हुआ है. स्वामी विवेकानंद और उनकी शिक्षाएं कई लोगों के लिए प्रेरणा रही हैं, और उनके शब्द विशेष रूप से देश के युवाओं के लिए आत्म-सुधार का लक्ष्य बन गए हैं. यह भी पढ़ें: Swami Vivekananda Punyatithi 2021: स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि पर जानें उनके जीवन से जुड़े 5 रोचक किस्से

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

कलकत्ता में एक संपन्न बंगाली परिवार में जन्मे नरेंद्रनाथ दत्ता (Narendranath Dutta) विवेकानंद विश्वनाथ दत्ता (Vishwanath Dutta) और भुवनेश्वरी देवी (Bhuvaneshwari Devi) के आठ बच्चों में से एक थे. उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को मकर संक्रांति के दिन हुआ था. पिता विश्वनाथ समाज में काफी प्रभाव रखने वाले एक सफल वकील थे. नरेंद्रनाथ की मां भुवनेश्वरी एक मजबूत, ईश्वर से डरने वाली महिला थीं, जिनका उनके बेटे पर बहुत प्रभाव पड़ा.

शिकागो की धर्म संसद में उनका भाषण:

श्वामी विकानंद बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे. स्नातक की डिग्री प्राप्त करते करते उन्होंने विभिन्न विषयों का व्यापक ज्ञान प्राप्त कर लिया था. वो भारत भर में भ्रमण करते और ज्ञान अर्जित करते. अपने घूमने के दौरान, उन्हें 1893 में शिकागो, अमेरिका में विश्व धर्म संसद के आयोजन के बारे में पता चला. वह भारत, हिंदू धर्म और अपने गुरु श्री रामकृष्ण के दर्शन का प्रतिनिधित्व करने के लिए बैठक में भाग लिया. उन्होंने अपने शिष्यों द्वारा धन जुटाया गया और खेतड़ी के राजा अजीत सिंह और विवेकानंद 31 मई, 1893 को बॉम्बे से शिकागो के लिए रवाना हुए.

उनके भाषण ने पूरी दुनिया के सामने भारत की एक मजबूत छवि पेश की, आइये जानें वो भाषण

1. भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है. मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं. सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूं.

2. मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने यह ज़ाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है.

3. मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं.

4. मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी. मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली.

5. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है.

6. मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज़ करोड़ों लोग दोहराते हैं. ''जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं.

7. मौजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण है: ''जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं.''

8. सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है. उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है. न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए.

9. यदि ये ख़ौफ़नाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज़्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है. लेकिन उनका वक़्त अब पूरा हो चुका है. मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा. चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से.

4 जुलाई, 1902 को उनकी मृत्यु के बाद उनके सभी उपदेशों और व्याख्यानों को नौ खंडों में संकलित कर उनका प्रकाशन किया गया. स्वामी विवेकानंद को मानवता का आदर्श माना जाता है.