Swami Dayananda Saraswati Jayanti 2024 Wishes in Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी की जयंती (Swami Dayananda Saraswati Jayanti) मनाई जाती है, जिसके हिसाब से इस साल 5 मार्च को स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती मनाई जा रही है. महर्षि दयानंद सरस्वती (Maharishi Dayananda Saraswati) भारत के उन महान हस्तियों में शुमार हैं, जिन्होंने पशु बलि, जाति व्यवस्था, बाल विवाह, सती प्रथा और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव जैसी सामाजिक बुराइयों का खुलकर विरोध किया. उन्होंने मूर्ति पूजा और तीर्थयात्राओं की भी निंदा की थी. अपने जीवनकाल में स्वामी दयानंद सरस्वती ने 60 से अधिक रचनाएं लिखीं, जिनमें 'सत्यार्थ प्रकाश' सबसे लोकप्रिय रही और यह पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अभिन्न अंग भी बनी.
महर्षि दयानंद सरस्वती ने वेदों को सर्वोच्च माना और वेदों का प्रमाण देकर उन्होंने हिंदू समाज में फैली कुरीतियों का जमकर विरोध किया. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, उनका जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के काठियावाड़ जिले के टंकारा गांव में हुआ था. स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती के इस अवसर पर आप इन हिंदी विशेज, वॉट्सऐप मैसेजेस, जीआईएफ ग्रीटिंग्स, फोटो एसएमएस के जरिए शुभकामनाएं दे सकते हैं.
1- भारत के महापुरुष स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने,
पाखंड और सामाजिक कुरीतियों का मान- मर्दन कर,
राष्ट्र में एक नई चेतना जागृत की,
ऐसे राष्ट्रपुरुष को कोटि-कोटि नमन.
महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती की शुभकामनाएं
2- बाल विवाह के खिलाफ रहे,
विधवा विवाह की किया समर्थन,
समाज-सुधारक महर्षि दयानंद सरस्वती जी,
की जयंती पर उन्हें सादर नमन.
महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती की शुभकामनाएं
3- आर्य समाज के संस्थापक,
महान समाज सुधारक,
स्वामी दयानंद सरस्वती जी की,
जयंती पर कोटि-कोटि नमन.
महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती की शुभकामनाएं
4- आप दूसरों को बदलना चाहते हैं,
ताकि आप आज़ाद रह सकें,
लेकिन ये कभी ऐसे काम नहीं करता,
दूसरों को स्वीकार करिए और आप मुक्त हैं.
महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती की शुभकामनाएं
5- मानवता के लिए सर्वस्व समर्पित करने वाले,
सत्यपथ के अविरल पथिक,
मूर्धन्य विचारक व महान समाज सुधारक,
स्वामी दयानन्द सरस्वती जी को सादर नमन.
महर्षि दयानंद सरस्वती जयंती की शुभकामनाएं
स्वामी दयानंद सरस्वती को बचपन में मूलशंकर के नाम से जाना जाता था, उन्होंने बचपन की एक घटना के बाद शिव की खोज में अपना घर छोड़ दिया था. सत्य की तलाश में करीब 15 साल तक भटकने के बाद उन्होंने स्वामी पूर्णानंद सरस्वती से दीक्षा ली और बाद में स्वामी दयानंद सरस्वती कहलाए. स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में समाज में व्याप्त कुरीतियों और रूढ़िवादी परंपराओं के खिलाफ आवाज उठाने के लिए आर्य समाज की स्थापना की थी. उन्होंने रूढ़िवादिता, जातिगत कठोरता, अस्पृश्यता, मूर्तिपूजा, पुरोहितवाद जैसी चीजों की कड़ी आलोचना की थी.