Sri GuruArjun Dev Ji Martyrdom Day 2021: जानें बादशाह जहांगीर ने गुरुअर्जुन देव जी को क्यों और कैसे यातना देकर हत्या करवाई?
सिखों के पांचवे गुरु अर्जुन देव जी मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत स्वभाव के सर्वमान्य लोकनायक थे. उनका अधिकांश समय संगत की सेवा में बीतता था, और हर धर्म के प्रति उनके मन में अथाह सम्मान था. हर वर्ष 16 जून को उनकी शहादत दिवस के रूप में याद किया जाता है. यह दिन उन्हें सम्मानित करने के लिए चिह्नित किया गया है.
सिखों के पांचवे गुरु अर्जुन देव (GuruArjun Dev Ji) जी मानवता के सच्चे सेवक, धर्म के रक्षक, शांत स्वभाव के सर्वमान्य लोकनायक थे. उनका अधिकांश समय संगत की सेवा में बीतता था, और हर धर्म के प्रति उनके मन में अथाह सम्मान था. हर वर्ष 16 जून को उनकी शहादत दिवस के रूप में याद किया जाता है. यह दिन उन्हें सम्मानित करने के लिए चिह्नित किया गया है. गौरतलब है कि 16 जून 1606 में मुगल बादशाह जहांगीर ने उनकी जघन्य तरीके से यातना देकर हत्या करवा दी थी. गुरु अर्जुन देव जी की शहादत सिख धर्म के इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था. यहां हम गुरु अर्जुन देव जी के जीवन के महत्वपूर्ण अंशों एवं शहादत की मर्म गाथा पर बात करेंगे. यह भी पढ़ें: Guru Arjan Dev Ji Shaheedi Purab 2021 Quotes and Messages: पांचवें सिख गुरु के शहीदी दिवस पर ये Images और Wallpapers भेजकर गुरु अर्जन देव जी का करें नमन
कौन थे गुरु अर्जुन देव जी?
गुरु अर्जुन देव जी का जन्म वैशाख बदी 7 (सम्वत 1620) यानी 15 अप्रैल 1563 में गोइंदवाल साहिब में श्री गुरु रामदास के घर में बीबी भानी की कोख से हुआ था. पिता गुरु रामदास सिखों के चौथे गुरू थे. गुरु अर्जुन देव जी की परवरिश गुरु अमरदास जी एवं गुरु बाबा बुड्ढा जैसे महापुरुषों की छत्रसाय में हुई थी. वे बचपन से ही बड़े शांत, गंभीर और पूजा-पाठ में रमे रहते थे. गुरु अमरदास जी ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक आगे चलकर तमाम वाणी की रक्षा करेगा.
धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक थे गुरु अर्जुन देव
1581 में पिता गुरु रामदास जी की मृत्यु के बाद अर्जुन देव जी को पांचवां गुरु बनाया गया. गुरू की गद्दी संभालने के पश्चात उन्होंने लोक भलाई एवं धर्म प्रचार के कार्यों में तेजी लाई. उन्होंने सिख संस्कृति को घर-घर पहुंचाया. वे गुरुवाणी में कीर्तन करते थे. उन्होंने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) की नींव रखी. संतोषखर तथा अमृत सरोवर का कार्य करवाया. अमृत सरोवर के मध्य हरिमंदिर साहब जी का निर्माण कराया. इसका शिलान्यास एक मुस्लिम फकीर साईं मिया मीर जी से करवाकर धर्म निरपेक्षता का प्रमाण दिया. गुरु अर्जुन देव जी तरन तारन साहिब, करतार पुर साहिब, छेहर्टा साहब एवं श्री हरगोविंद साहब जैसे नगर बसाये. इसके बगल में कुष्ठ रोगियों के लिए दवाखाना बनवाया, जो आज भी मौजूद है. गुरु अर्जुन देव जी ने गांव-गांव में कुओं का निर्माण करवाया, और घोषणा करवाई कि सभी सिखों को अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान में देना चाहिए.
क्या है ‘यासा और सियास्त’ कानून? जिसके तहत गुरु जी की हत्या की गई
साल 1662 में बादशाह अकबर की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र जहांगीर ने राजपाट संभाला. जहांगीर को गुरु अर्जुन देव जी की लोकप्रियता रास नहीं आ रही थी. खासकर गुरु जी का उसके भाई अमीर खुसरो की मदद करना जरा भी अच्छा नहीं लगा था. उसने गुरुजी को शहीद करने का फैसला कर लिया. यह बात जहांगीर की जीवनी ‘तुजके जहांगीरी’ में दर्ज है. जहांगीर ने गुरु जी पर दो लाख रूपये का जुर्माना लगाने के साथ-साथ गुरु जी की पाठ से कुछ भजनों को मिटाने का आदेश दिया, जिसे गुरु जी ने साफ मना कर दिया. इस पर खफा होकर जहांगीर ने गुरु जी को मृत्यु की सजा सुनाई. उसने ज्येष्ठ मास की तपती गर्मी में ‘यासा और सियास्त’ कानून के तहत लोहे के गर्म तवे पर बिठाया गया. वस्तुतः ‘यासा और सियास्त’ के कानून में व्यक्ति का रक्त जमीन पर गिरे बिना यातनाएं देकर मार दिया जाता है. गरम तवे पर बिठाने के बाद गुरुजी पर ऊपर से गरम-गरम रेत डाला गया. गुरु जी का शरीर जब झुलस गया तो उन्हें ठंडे पानी वाले रावी नदी में नहाने के लिए भेजा गया. कहते हैं कि गुरुजी ने रावी नदी मे ही जल समाधि ले कर शहादत दे दी.