14 मई को मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक संभाजी महाराज जयंती (Sambhaji Maharaj Jayanti 2021) मनाई जाती है. यह दिन पूरे महाराष्ट्र और देश के अन्य हिस्सों में धूम धाम से मनाया जाता है. शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र संभाजी भोसले (Sambhaji Bhosle) अपने पिता के निधन के बाद मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक बने. संभाजी भोसले का जन्म 14 मई 1657 को हुआ था. मराठा साम्राज्य के दूसरे नेता संभाजी का जन्म छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) और साईबाई के घर में हुआ था. 2 साल की उम्र में उन्होंने उन्हीअपनी मां को खो दिया था. उनकी दादी जीजाबाई ने उनका पालन-पोषण किया था और उनमें गुणों के बीज बोए, जो उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को दिए थे. संभाजी ने 1672 में पेशवा मोरोपंत पिंगले के साथ कोलवान के मराठा कब्जे के विजय अभियान में पहली बार मराठा सेना का नेतृत्व किया था. यह भी पढ़ें: Parshuram Jayanti 2021: परशुराम जयंती कल, आखिर क्यों भगवान परशुराम ने काटी थी अपनी मां की गर्दन, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व
हर साल 14 मई को लोग संभाजी महाराज जयंती पर मराठा शासनकाल में उनके योगदान को श्रद्धांजलि के रूप में मनाते हैं. संभाजी की गद्दी की यात्रा भी चुनौतियों से भरी थी, उन्होंने राजगद्दी पर 9 साल तक शासन किया. छत्रपति संभाजी महाराज मराठा धर्म के रक्षक थे. वो अपनी निडरता के लिए जाने जाते हैं. उन्हें मुगलों ने पकड़ लिया था. उन्हें मुगलों ने 1689 में मृत्यु से पहले बहुत प्रताड़ित किया. 40 दिनों तक प्रताड़ित होने के बावजूद संभाजी ने अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया. जिसके बाद उनकी बेरहमी से हत्या कर दी गई.
1. शौर्य और पराक्रम के प्रतीक,
धर्मनिष्ठा और राष्ट्रभक्ति के प्रेरणास्त्रोत
छत्रपति संभाजी महाराज की जयंती की शुभकामनाएं
2. छत्रपति संभाजी महाराज जयंती की शुभकामनाएं
3. छत्रपति संभाजी महाराज जयंती की हार्दिक बधाई
4. संभाजी महाराज जयंती की ढेर सारी शुभकामनाएं
5. संभाजी महाराज जयंती की बहुत-बहुत बधाई
औरंगजेब ने संभाजी राजा के सामने अपना जीवन बचाने के लिए उनके द्वारा जीते गए सभी किले का समर्पण करने और धर्म परिवर्पतन की शर्नात सामने रखी. लेकिन संभाजी महाराज ने उनकी शर्त ठुकरा दी. संभाजी राजा ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया. औरंगजेब ने तब उन्हें क्रूरतापूर्वक प्रताड़ित किया और उन्हें मारने का आदेश दिया. लगभग 40 दिनों तक असहनीय यातना सहने के बावजूद संभाजी राजा ने स्वराज्य और धर्मनिष्ठा के लिए अपनी भक्ति नहीं छोड़ी. जिसके बाद 11 मार्च 1689 को भीमा और इंद्रायणी नदियों के संगम पर तुलजीपुर में संभाजी राजा की हत्या कर दी गई.