Ramadan 2020: जानें कब शुरू हो रहा है ये पाक महिना, रोजे-सहरी और इफ्तार क्यों है महत्वपूर्ण और कब मनाई जायेगी ईद

रोजा को अरबी में सौम कहते हैं, जिसका आशय परहेज करना है. यहां परहेज केवल खान-पान तक ही नहीं बल्कि बुरे काम, बुरी सोच, किसी से घृणा करने से भी है. रमजान के दरम्यान किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए, किसी पराई वस्तु को छूना नही चाहिए. किसी नापाक स्थानों पर न जाएं.

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Ramazan 2020: मुस्लिम समाज का सर्वाधिक पाक मास रमजान (रमदान) के रूप में शीघ्र शुरु होने वाला है. वस्तुतः हिजरी या इस्लामी चन्द्र कैलेंडर के नौवें मास को ‘रमदान-अल-मुबारक’ या रमदान कहते हैं. इस पूरे माह दुनिया भर में मुस्लिम परिवारों में रोजे रखे जाते हैं. इस दौरान पूरे दिन बिना कुछ खाये-पीये रहना होता है. रोज़ा रखने से आत्मा की शुद्धि के साथ-साथ अल्लाह की ओर पूरा ध्यान और कुर्बानी का अभ्यास होता है. इस दरम्यान इंसान किसी भी तरह के लोभ-लालच इत्यादि से दूर रहकर केवल अल्लाह को याद करता है, उसकी इबादत करता है. आइये जानें क्या है रमजान का महत्व!

कब शुरु हो रहे हैं रोज़े

इस साल 23 अप्रैल 2020 को अगर चांद का दीदार होने के बाद 24 अप्रैल को पहला रोजा रखा जायेगा. बता दें कि इस्लामिक महीने चांद पर निर्भर होते हैं. यदि 24 को चांद का दीदार हुआ तो 25 को पहला रोजा होगा. 24/25 मई को ईद-उल-फितर का त्यौहार मनाया जायेगा. रोजे के दौरान तय वक्त पर सुबह लगभग 4.31 बजे सहरी होगा और शाम 7 बजे से इफ्तखार शुरू होगा. रोजे में सहरी और इफ्तार दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. गौरतलब है कि प्रातः सूर्योदय से पहले सहरी के समय रोजा रखने वाले खाते-पीते हैं. इसके बाद फज्र की अजान के साथ रोजा शुरू होता है और सूर्यास्त के बाद मगरिब की अजान होने पर रोजा खोला जाता है.

रमदान का महात्म्य

इस्लाम में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि रमदान के समय सभी मुसलमानों को अपनी ज़िन्दगी के मक़सद को नये सिरे से समझने की कोशिश करनी चाहिए. अगर किसी ने हमारे साथ गलत काम किया है अथवा कर रहा है तो उसे भी माफ कर देना चाहिए. नाते-रिश्तेदारों एवं मित्रों के साथ रिश्तों को और ज्यादा माधुर्य बनाने की कोशिश करनी चाहिए. कोई बुरी आदत है तो उसका तुरंत त्याग कर खुद को भलाई का कामों में लगाना चाहिए.

क्यों रखते हैं रोज़ा?

रोजा को अरबी में सौम कहते हैं, जिसका आशय परहेज करना है. यहां परहेज केवल खान-पान तक ही नहीं बल्कि बुरे काम, बुरी सोच, किसी से घृणा करने से भी है. रमजान के दरम्यान किसी की चुगली नहीं करनी चाहिए, किसी पराई वस्तु को छूना नही चाहिए. किसी नापाक स्थानों पर न जाएं. इस तरह से मन कर्म और वचन से गलत बातों से परहेज रखना ही रोजे का असली मकसद होता है. रोजे सिर्फ शारीरिक परहेज तक नहीं बल्कि इंसान के शरीर और रुह यानी आत्मा के प्रति भी एक जिम्मेदारी होती है.

रमजान में होते हैं तीन अशरे, जानें इनका आशय

इस्लाम धर्म के मुताबिक रमजान के महीने में 3 अशरे होते हैं. पहला अशरा ‘रहमत’ का होता है, दूसरा अशरा ‘मगफिरत’ यानी गुनाहों की माफी का और तीसरा अशरा ‘जहन्नम’ की आग से खुद को बचाने के लिए होता है. ऐसी मान्यता है कि रमजान के पाक माह के संदर्भ में पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा था कि रमजान की शुरुआत में रहमत है, बीच में मगफिरत यानी माफी है और इसके अंत में जहन्नम की आग से बचाव है.

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