Paush Putrada Ekadashi 2020: पौष महीने की शुक्ल पक्ष एकादशी को पुत्रदा एकदशी कहते हैं. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार 11वीं तिथि को एकादशी (Ekadashi) कहते हैं. यह तिथि एक महीने में दो बार आती है. पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद. पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष एकादशी कहते हैं. अंग्रेजी माह के कैलेंडर के अनुसार पुत्रदा एकादशी दिसंबर या जनवरी में आती है, इस बार यह जनवरी महीने में पड़ी है. एकादशी का त्योहार भगवान विष्णु को समर्पित है. पुत्रदा एकादशी का व्रत साल में दो दिन मनाया जाता है. आज 6 जनवरी को पुत्रदा एकदशी का त्योहार मनाया जा रहा है. इस दिन भगवान विष्णु के बाल स्वरुप की पूजा होती है.
इस दिन विधि विधान से व्रत रख पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है. यह व्रत ज्यादातर लोग पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए रखते हैं, ऐसा कहा जाता है कि इस दिन व्रत और विधि विधान से पूजा करने से अच्छे गुणों वाले संतान की प्राप्ति होती है. जिन लोगों को संतान है वो इस दिन उनकी दीर्घ आयु के लिए व्रत रखते हैं. यह भी पढ़ें: Paush Putrada Ekadashi 2020: जब होती है विष्णु के बाल रूप की पूजा! जानें व्रत के नियम, पूजा मुहूर्त एवं पौराणिक कथा
शुभ मुहूर्त:
एकादशी तिथि प्रारम्भ: 6 जनवरी 2020 को सुबह 3 बजकर 6 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 7 जनवरी 2020 को सुबह 4 बजकर 2 मिनट तक
पारण तिथि: 7 जनवरी 2020 को दोपहर 1 बजकर 30 मिनट से दोपहर 3 बजकर 55 मिनट तक
पूजा विधि:
इस दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु का स्मरण करें.
स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें.
घर के मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने दिया जलाकार व्रत का संकल्प लें.
भगवान विष्णु की प्रतिमा या फोटो को गंगाजल से स्नान कराएं और वस्त्र पहनाएं.
भगवान विष्णु को नैवेद्य और फलों का भोग लगाएं.
विधिवत पूजा-अर्चना कर, आरती उतारें.
पूरे दिन व्रत रखें शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार करें.
दूसरे दिन ब्राह्मणों को खाना खिलाएं और अपनी शक्ति अनुसार दान देकर व्रत का पारण करें.
व्रत कथा:
पौराणिक कथा अनुसार भद्रावती नाम के नगर में सुकेतुमान नाम का राजा राज करता था. उनके कोई संतान नहीं थी. संतान न होने के कारण राजा और उनकी पत्नी शैव्या बहुत चिंतित रहा करते थे. राजा के पितर भी बहुत चिंतित थे कि इसके बाद हमें पिंडदान कौन करेगा? चिंता से परेशान होकर एक बार राजा ने आत्महत्या करने की ठान ली और जंगल की ओर चल पड़े. चलते-चलते राजा को एक आश्रम दिखा वहां ऋषियों को देख राजा ने उन्हें प्रणाम किया और उनसे पूछा आप कौन हैं और यहां क्या करने आए हैं. ऋषियों ने राजा से कहा राजन हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने आए हैं. ऋषियों ने राजा से कहा आज हम बहुत प्रसन्न हैं आप जो वरदान मांगना चाहते हैं, मांग सकते हैं. राजा ने उनसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा. ऋषियों ने उन्हें पुत्र एकादशी का व्रत करने को कहा. राजा ने एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी का पारण कर महल में वापस आ गए. 9 महीने बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.
पौष पुत्रदा एकादशी उन जोड़ों के लिए के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें संतान नहीं है. पौष पुत्रदा एकादशी उत्तर भारत में बहुत ज्यादा मनाया जाता है, जबकि श्रावण पुत्रदा एकादशी भारत के अन्य हिस्सों में अधिक प्रचलित है.