Navratri 2018: पश्चिम बंगाल में ऐसे मनाया जाता है दुर्गापूजा का महापर्व, जानें पंडालों की खास बातें
कोलकाता में देवी पंडाल (Photo Credit- Wikimedia Commons)

नवरात्रि हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक इस त्योहार को उत्साह से मनाया जाता है. इस दौरान पूरे देशभर में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की बड़ी धूम-धाम से पूजा-अर्चना की जाती है. दुर्गा पूजा की दृष्टी से कोलकाता का विशेष स्थान है. देश के अन्य राज्यों से कुछ हटकर यहां देवी की पूजा की जाती है. बंगाली समुदाय इस त्योहार को खासे उत्साह के साथ मनाता है. दुर्गा पूजा के दौरान सजे पंडालों की खूबसूरती देखते ही बनती है. देवी के पंडालों की अलौकिक छटा और पूजा के विशेष तरीके कोलकाता को नवरात्रि के दौरान खास बनाते हैं.

कोलकता में 10 दिन तक चलने वाला यह त्योहार बंगाली हिंदुओं प्रमुख त्योहार है. इस त्योहार के दौरान वहां का पूरा माहौल शक्ति की देवी दुर्गा के रंग में रंग जाता है. बंगाली हिंदुओं के लिए दुर्गा पूजा से बड़ा कोई उत्सव नहीं है.

जाने बंगाल में क्या है दुर्गा पंडाल की विशेषता

देवी की मूर्ती: कोलकाता में नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरुप को पूजा जाता है. दुर्गा पूजा पंडालों में दुर्गा की प्रतिमा महिसासुर का वद्ध करते हुए बनाई जाती है. दुर्गा के साथ अन्य देवी-देवाताओं की प्रतिमाएं भी बनाई जाती हैं. देवी की इस प्रतिमा के साथ ही अन्य देवताओं की प्रतिमा भी बनाई जाती है, इस पूरे नमूने को चाला कहा जाता है. देवी त्रिशूल को पकड़े हुए होती हैं और उनके चरणों में महिषासुर नाम का असुर होता है.

देवी के पीछे उनका वाहन शेर भी होता है. इसके साथ ही दाईं ओर होती हैं सरस्वती और कार्तिका, और बाईं ओर लक्ष्मी गणेश होते हैं. साथ ही छाल पर शिव की प्रतिमा या तस्वीर भी होती है. यह भी पढ़ें- Happy Navratri 2018: नवरात्रि के 9 खास भोग, जानें किस दिन क्या अर्पित करने से प्रसन्न होती हैं मां

चोखूदान: कोलकाता में दुर्गा पूजा के लिए चली आ रही परंपराओं में चोखूदान सबसे पुरानी परंपरा है. 'चोखूदान' के दौरान दूर्गा की आखों को चढ़ावा दिया जाता है. बता दें कि 'चाला' बनाने में 3 से 4 महीने का समय लगता है. वहीं इसमें दुर्गा की आखों को अंत में बनाया जाता है.

अष्टमी का महत्व: कोलकाता में अष्टमी के दिन अष्टमी पुष्पांजलि का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन सभी लोग दुर्गा को फूल अर्पित करते हैं. कहा जाता है कि इस दिन सभी बंगाली मां दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं. वे चाहे किसी भी कोने में रहे, पर अष्टमी के दिन सुबह सुबह उठ कर दुर्गा को फूल जरूर अर्पित करते हैं.

दो पूजा: कोलकाता में दुर्गा का त्योहार केवल पंडालों तक ही सीमित नहीं है. यहां लोग दो तरह की दुर्गा पूजा करते हैं. दो अलग अलग दुर्गा पूजा से अर्थ है एक जो बहुत बड़े स्तर पर दुर्गा पूजा मनाई जाती है, जिसे पारा कहा जाता है और दूसरा बारिर जो घर में मनाई जाती है. पारा का आयोजन पंडालों और बड़े-बड़े सामुदायिक केंद्रों में किया जाता है. वहीं दूसरा बारिर का आयोजन कोलकाता के उत्तर और दक्षिण के क्षेत्रों में किया जाता है. यह भी पढ़ें- Navratri 2018: 10 अक्टूबर से शुरू हो रही है नवरात्रि, जानें कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि 

कुमारी पूजा: कोलकाता में संपूर्ण पूजा के दौरान देवी दुर्गा की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है. इन रूपों में सबसे प्रसिद्ध रूप है- कुमारी. इस दौरान देवी के सामने कुमारी की पूजा की जाती है. यह देवी की पूजा का सबसे शुद्ध और पवित्र रूप माना जाता है. देवी के इस रूप की पूजा के लिए 1 से 16 वर्ष की लड़कियों का चयन किया जाता है और उनकी पूजा आरती की जाती है.

संध्या आरती: दुर्गा पूजा को हालांकि किसी घड़ी का लग्न की आवश्यकता नहीं है, फिर भी संध्या आरती का इस दौरान खास महत्त्व है. कोलकाता में संध्या आरती की रौनक इतनी चकाचौंध और खूबसूरत होती है कि लोग इसे देखने दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं. बंगाली पारंपरिक कपड़ों में सजे धजे लोग इस पूजा की रौनक और बढ़ा देते हैं. चारों ओर उत्सव का माहौल पूरे वातावरण में नई रौनक डाल देता है. यह नौ दिनों तक चलने वाले त्योहार के दौरान रोज शाम को की जाती है. संगीत, ढोल, घंटियों और नाच गाने के बीच सांधा आरती की रसम पूरी की जाती है.

सिंदूर खेला: दशमी के दिन पूजा के आखिरी दिन महिलाएं सिंदूर खेला खेलती हैं. इसमें वह एक दूसरे पर सिंदूर से एक दूसरे को रंग लगाती हैं. और इसी के साथ अंत होता है इस पूरे उत्सव का, जिसकी तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती हैं. यह भी पढ़ें- Happy Navratri 2018: नवरात्रि में करें मां दुर्गा के इन नौ स्वरूपों की आराधना, समस्त कामनाओं की होगी पूर्ति

विजय दशमी:  नवरात्रि त्योहार का आखिरी दिन दशमी होता है. इस दिन बंगाल की सड़कों में हर तरफ केवल भीड़ ही भीड़ दिखती है. इस दिन यहां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, और इस तरह वह हिमाजय में अपने परिवार के पास वापस लौट जाती हैं. इस दिन पूजा करने वाले सभी लोग एक दूसरे के घर जाते हैं. शूभकामनाएं और मिठाईयां देते हैं.