Narmada Jayanti 2021: कब है नर्मदा जयंती? कैसे हुआ उनका उद्गम, जानें शुभ मुहूर्त और इस पर्व का महात्म्य
नर्मदा जयंती 2021 (Photo Credits: File Image)

Narmada Jayanti 2021: हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन अमरकंटक (Amarkantak) में मां नर्मदा (Maa Narmada) का उद्भव हुआ था, इसलिए इस दिन अमरकंटक समेत पूरे मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में मां नर्मदा की जयंती (Narmada Jayanti) पूरे धूमधाम से मनायी जाती है. हिन्दू धर्म में इस जयंती का विशेष महत्व है. कहते हैं कि भगवान शिव ने देवताओं के पाप धोने के लिए मां नर्मदा को उत्पन्न किया था और इसीलिए इस नदी के पवित्र जल में स्नान करने से इंसान के सारे पाप धुल जाते हैं. हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष नर्मदा जयंती 18 फरवरी 2021 को मनाई जायेगी.

मध्य प्रदेश की लाइफ लाइन कही जानेवाली नर्मदा नदी पतित पावनी गंगा के बाद सबसे पवित्र नदी मानी जाती है. नर्मदा अपने उद्गम स्थल अमरकंटक शिखर के मैकल पर्वत से निकलकर मंडला, डिंडोरी, जबलपुर, होशंगाबाद, महेश्वर, झाबुआ, बड़वानी, ओमकारेश्वर, वडोदरा, राजपीपला, धर्मपुरी, भरूच आदि डिस्ट्रिक्ट से होते हुए अरब सागर की खंभात खाड़ी (गुजरात) में जाकर मिलती हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों में नर्मदा नदी के महात्म्य के संदर्भ में तमाम किंवदंतियां प्रचलित हैं.

नर्मदा जयंती का शुभ मुहूर्त:

सप्तमी तिथि प्रारंभ- 18 फरवरी, (गुरुवार) की प्रातः 08.17 बजे से,

सप्तमी तिथि समाप्त- 19 फरवरी, (शुक्रवार) दिन 10.58 बजे तक.

कैसे उद्गम हुआ मां नर्मदा का?

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक बार देवताओं ने आतताई अंधकासुर नामक राक्षस का वध कर दिया. इस प्रयास में देवताओं से और भी कई पाप हुए. देवताओं ने पश्चाताप करने के लिए भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी का आह्वान किया और बताया कि अंधकासुर के वध के दौरान उनसे कुछ पाप हुए हैं, इन पापों से कैसे मुक्ति पाई जा सकती है. देवताओं की बातें सुनकर ध्यान में लीन भगवान शिव ने अपने नेत्र खोले, तभी उनकी आंखों से एक प्रकाश ज्योति प्रकट हुई और अमरकंटक के मैखल पर्वत पर गिरी, जिससे एक सुंदर-सी कन्या ने जन्म लिया. भगवान शिव ने कहा, आज से दुनिया तुम्हें नर्मदा के नाम से जानेगी और तुम्हारी पूजा-अर्चना करके लोग गर्वान्वित महसूस करेंगे. बता दें कि 'नर्म' का अर्थ है- सुख और 'दा' का अर्थ देनेवाली यानी सुख देने वाली.

एक अन्य किंवदंति के अनुसार स्कंद पुराण में उल्लेखित है कि पुरातन काल में राजा-हिरण्यतेजा ने चौदह हजार वर्षों तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की. इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव हिरण्यतेजा से वरदान मांगने को कहा. हिरण्यतेजा ने भगवान शिव से नर्मदा नदी को पृथ्वी पर लाने की प्रार्थना की. तब भगवान शिव की आज्ञा से नर्मदा मगरमच्छ के आसन पर विराजमान हो उदयाचल पर्वत पर उतरीं और पश्चिम दिशा की ओर बहने लगीं. यह भी पढ़ें: Narmada Jayanti 2021 Wishes: नर्मदा जयंती पर इन हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Messages, GIF Images, Quotes के जरिए दें शुभकामनाएं

नर्मदा जयंती का महात्म्य

हिंदू धर्म में नर्मदा जयंती का बहुत महत्व है. पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि शुभ मुहूर्त में सच्ची आस्था एवं निष्ठा के साथ नर्मदा नदी में स्नान-ध्यान कर नर्मदा नदी की पूजा की जाये तो जातक के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. इस संदर्भ में एक कथा भी प्रचलित है कि एक दिन उत्तर वाहिनी गंगा तट पर नर्मदा ने कई सालों तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की.

कहते हैं कि भगवान शिव ने नर्मदा की आराधना से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा. इस पर मां नर्मदा ने कहा, मैं चिरायु रहूं, मेरा अस्तित्व प्रलय काल में भी बना रहे. मैं पृथ्वी पर एकमात्र ऐसी नदी के रूप में जानी जाऊं, जो हर किसी के पापों को धो दे. मेरी तट पर पड़ा हर पत्थर शिवलिंग का महत्व रखे, मेरे तट पर त्रिभुवन समेत सभी देवताओं का निवास रहे. कहते हैं कि इन्हीं वजहों से मां नर्मदा का महात्म्य आज भी सर्वोपरि है. आज भी नर्मदा नदी के तट पर मौजूद सारे पत्थर शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं और पूजे जाते हैं.