Mahashivratri 2022: भगवान शिव जितने सरल हैं, उतना ही विकट स्वरूप है उनका. गले में सर्पों की माला, बदन पर भस्म, कानों में बिच्छू के कुंडल, तन पर बाघंबर, मस्तष्क पर चंद्रमा, जटाओं में गंगा, ललाट पर त्रिनेत्र, एक हाथ में डमरू दूसरे में संहारक त्रिशूल और वाहन नंदी. इन सभी प्रतीक चिह्नों के पीछे कुछ ना कुछ गूढ़ अर्थ छिपा हुआ है, जिससे हमें शिव के शास्वत स्वरूप का पता चलता है. यहां हम उनके त्रिनेत्र यानी तीसरी आंख के रहस्य को जानने की कोशिश करेंगे, जिसके संदर्भ में तमाम कथाएं प्रचलित हैं. आइये जानते हैं महादेव की तीसरी आंख कब और कैसे निर्मित हुई तथा क्या रहस्य है इसका? यह भी पढ़ें: Mahashivratri 2022 Wishes: महाशिवरात्रि पर ये हिंदी विशेज WhatsApp Stickers, GIF Greetings और HD Images के जरिये भेजकर दें शुभकामनाएं
दिव्य दृष्टि का प्रतीक है तीसरी आंख!
भगवान शिव को त्र्यंबक, त्रैलोचन एवं त्रिनेत्र आदि के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की तीसरी आंख उनकी दिव्य दृष्टि है. इस दिव्य दृष्टि से वे संपूर्ण ब्रह्मांड की गतिविधियों पर नजर रखते हैं. यह तीसरी आंख ज्ञान-चक्षु के समान है, जिससे उन्हें आत्मज्ञान की अनुभूति होती है, उन्हें हर चीज की असीम गहराई में जानें के लिए सहायक मानी जाती है. यह उनकी शक्ति का केंद्र भी है. इससे उनकी छवि अत्यंत ही प्रभावशाली हो जाती है.
इस कारण निर्मित हुई महादेव की तीसरी आंख?
देवों के देव महादेव के संदर्भ में प्रचलित है कि जब वे किसी से बहुत ज्यादा रुष्ठ होते हैं, अपनी तीसरी आंख खोलते हैं. तीसरी आंख खुलते ही सृष्टि का विनाश सुनिश्चित हो जाता है. लेकिन प्रश्न यह उठता है कि शिवजी को तीसरी आंख कब और कैसे प्राप्त हुई? इस संदर्भ में महाभारत के छठे खंड में उल्लेखित एक कथा के अनुसार महर्षि नारद बताते हैं, कि एक बार हिमालय पर्वत पर भगवान शिव सभी देवी-देवता एवं ऋषि-महर्षियों के साथ वार्तालाप कर रहे थे. तभी माँ पार्वती ठिठोली करते हुए भगवान शिव की दोनों आंखों को अपनी हथेलियों से बंद कर दिया. उनके ऐसा करते ही समस्त ब्रह्माण्ड में अंधकार छा गया. सूर्य देव भी इस रहस्य को नहीं समझ सके कि उनकी उपस्थिति के बावजूद उनकी किरणें कमजोर क्यों पड़ गईं? समस्त सृष्टि भयाक्रांत हो गई. तभी शिवजी ने अपनी ललाट पर एक ज्योति-पुंज का निर्माण किया, जो उनकी तीसरी आंख के रूप में स्थापित हो गई. देवों की सभा सम्पन्न होने के बाद माँ पार्वती ने जब शिवजी से उनकी तीसरी आंख का रहस्य पूछा तब उन्होंने बताया कि अगर वे ऐसा नहीं करते तो सृष्टि का विनाश निश्चित था, क्योंकि मेरी आंखें ही जगत का पालन-पोषण करती हैं. इस पर माँ पार्वती ने अपनी ठिठोली के लिए शिवजी से छमा याचना की.
कब-कब और क्यों खोला शिवजी ने तीसरी आंख
शिवजी आदि योगी हैं. वे अनादि काल से ध्यान में लीन हैं. उऩकी तीसरी आंख जिसे अजनाचक्र भी कहा जाता है, वह योगिक ऊर्जा से अपार है. भगवान शिव के तीसरे नेत्र की शक्ति सब कुछ नष्ट कर सकती है. ऐसे कुछ ही अवसर थे, जब उन्हें अपना तीसरी नेत्र खोलना पड़ा. आइये संक्षिप्त में जानते हैं कि शिवजी ने कब और क्यों खोली तीसरी आंख.
* एक बार इंद्र अपनी शक्ति के घमंड में चूर थे. शिवजी ने उन्हें सबक सिखाने के लिए साधु का रूप धारण कर उऩके मार्ग में लेट गये. इंद्र जब बृहस्पति देव के साथ वहां से गुजरे तो उनके पूछने पर साधु वेषधारी शिवजी ने उनके सवाल का जवाब नहीं दिया. इससे क्रोध में आकर इंद्र ने अपने वज्र से साधु पर हमला करना चाहा, इस पर क्रोधित हो शिवजी ने अपनी तीसरी आंख खोली, मगर तभी बृहस्पति देव ने इंद्र की ओर से छमा याचना की. शिवजी ने अपने तीसरे आंखों से निकली क्रोध की ज्वाला को समुद्र की ओर घुमा दिया. इससे जल से ही असुर जालंधर का जन्म हुआ. बाद में उसका वध भी शिवजी ने ही किया.
* शिव पुराण में रुद्र संहिता पार्वती खंड के अनुसार पार्वतीजी महादेव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु वहीं जाकर कड़ी तपस्या करने लगीं, जहां शिवजी तप में लीन थे. मां पार्वती के प्रेम से विह्वल हो इंद्रदेव ने कामदेव को शिवजी की तपस्या भंग करने का आदेश दिया. कामदेव ने शिवजी की तपस्या को भंग तो कर दिया. तप भंग होने पर शिवजी कामदेव पर क्रोधित हो तीसरी आंख खोलीabd, जिससे कामदेव भस्म