Mahalaya 2023: क्या है महालया का महात्म्य? सर्वपितृ अमावस्या के बाद और नवरात्रि पूर्व आदिशक्ति के पृथ्वी-अवतरण का क्या है संबंध?
हिंदू पंचांगों के अनुसार पितृ पक्ष (सर्व पितृ अमावस्या) के समापन और आश्विन मास नवरात्रि के बीच की कड़ी है, महालया. हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि-विधान से देवी दुर्गा का स्तुतिगान कर उन्हें पृथ्वी पर आगमन के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रार्थना की जाती है, पितरों को जल-तिल अर्पित कर विदाई दी जाती है...
हिंदू पंचांगों के अनुसार पितृ पक्ष (सर्व पितृ अमावस्या) के समापन और आश्विन मास नवरात्रि के बीच की कड़ी है, महालया. हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधि-विधान से देवी दुर्गा का स्तुतिगान कर उन्हें पृथ्वी पर आगमन के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रार्थना की जाती है, पितरों को जल-तिल अर्पित कर विदाई दी जाती है. देवी दुर्गा के आगमन हेतु जो स्तुतिगान होता है, उसे महालया कहते हैं. इसके बाद 9 दिनों तक देवी दुर्गा की विधिवत पूजा अनुष्ठान कर दसवें दिन उनका विसर्जन करते हुए प्रार्थना करते हैं कि पृथ्वी वासियों की सुरक्षार्थ वह इसी तरह पृथ्वी पर अवतरित होती रहें. इस वर्ष महालया 15 अक्टूबर 2023 रविवार को मनाया जाएगा. आइये जानते हैं महालया के बारे में विस्तार से...यह भी पढ़ें: Durga Puja 2023: कब शुरू होगा दुर्गा पूजा? जानें पांच दिवसीय पूजा-अनुष्ठान कार्यक्रम, और धुनुची नृत्य का दुर्गा पूजा में महत्व?
महालय अमावस्या की तिथि और समय
महालया प्रारंभः 09.50 PM (13 अक्टूबर 2023) से
महालया समाप्तः 11.24 PM (14 अक्टूबर 2023) तक
क्या है महालया
महालया वह तिथि है, जब सभी हिंदू विशेष रूप से बंगलाभाषी भोर से ही चंडी पाठ (गायक वीरेंद्र कृष्ण भद्र) का श्रवण करते हैं. बहुत सारे लोग इस दिन सुबह-सवेरे गंगा अथवा किसी पवित्र नदी तट पर स्नान-ध्यान कर अपने-अपने पितरों को तर्पण करते हैं. गरुड़ पुराण के अनुसार यह पितरों की विदाई का अंतिम दिन होता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार देवी दुर्गा ने महिषासुर का संहार कर पृथ्वी पर अवतरण की शुरुआत की थी. इस आयोजन का महज आध्यात्मिक महत्व ही नहीं बल्कि हमें सत्य और साहस की शक्ति की भी स्मृति करवाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों ना हो, सत्य और साहस से भरी अच्छाई एक दिन उस पर विजय हासिल ही करती है.
महालया की पौराणिक कथा
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश (भगवान शिव) अत्याचारी राक्षस महिषासुर के संहार हेतु माँ दुर्गा का सृजन किया था. वस्तुतः महिषासुर ने कठोर तप कर किसी भी देवी, देवता एवं मनुष्य द्वारा नहीं मारे जाने का वरदान प्राप्त कर लिया था. वरदान प्राप्त करते ही वह निरंकुश हो देवताओं पर आक्रमण कर स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया. उसके आतंक से पीड़ित सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की. महिषासुर के कृत्यों से ब्रह्मा, विष्णु और शिव क्रोधित हो उठे, उनके शरीर से एक ज्वाला उत्पन्न हो एक दिव्य महिला प्रकट हुई, यह आदिशक्ति का प्रतीक माँ दुर्गा थीं.
तत्पश्चात त्रिदेव समेत सभी देवताओं ने उन्हें अपने-अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्र भेंट किया. सर्वशक्तिमान दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक युद्ध चला. दसवें दिन दुर्गा जी ने महिषासुर का संहार किया. दरअसल महालया मां दुर्गा के पृथ्वी पर आगमन पर स्वागत की प्रक्रिया है.