Kartik Purnima 2019: कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है देव दीपावली, जानें शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा
कार्तिक पूर्णिमा 2019 (Photo Credits: File Image)

Kartik Purnima 2019: कार्तिक मास (Kartik Month) की अमावस्या तिथि को देशभर में दीपावली (Diwali) का त्योहार मनाया गया था. अब उसके ठीक 15 दिन बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव दीपावली (Dev Diwali) मनाई जाएगी. कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) की यह पावन तिथि 12 नवंबर 2019 को पड़ रही है. कार्तिक पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया जाता है. मान्यता है कि कार्तिक महीने में पूजा-पाठ, स्नान, दान, दीपदान जैसे धार्मिक कार्यों को करने से व्यक्ति को पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान, त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन पतित पावनी गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाने से पूरे वर्ष भर गंगा स्नान करने के बराबर फल मिलता है.

मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही भगवान शिव (Lord Shiva) ने त्रिपुरासुर (Tripurasur) नामक असुर का संहार किया था. उसके वध की खुशी में देवताओं ने इसी दिन दीप प्रज्जवलित करके देव दीपावली मनाई थी. चलिए जानते हैं देव दीपावली का शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी पौराणिक कथा.

शुभ तिथि और मुहूर्त

कार्तिक पूर्णिमा तिथि- 12 नवंबर 2019.

पूर्णिमा तिथि आरंभ- 11 नवंबर 2019 को शाम 06.02 बजे से,

पूर्णिमा तिथि समाप्त- 12 नवंबर 2019 की शाम 07.04 बजे तक. यह भी पढ़ें: Kartik Purnima 2019: कार्तिक पूर्णिमा कब है? इस दिन गंगा स्नान और दीपदान से नष्ट होते हैं सारे पाप, जानें इसका महत्व

कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा

कार्तिक पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय तारकासुर के आतंक से सभी देवता भयभीत थे और भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करके देवताओं को उसके आतंक से मुक्त किया. जब तारकासुर के मौत की खबर उसके तीनों पुत्र तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली को लगी तो वो तीनों बहुत दुखी हुए. इसका प्रतिशोध लेने के लिए तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी की घोर तपस्या की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने कहा कि मांगो क्या वरदान मांगना चाहते हो. इसके बाद तीनों ने भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वर मांगने के लिए कहा.

तीनों भाईयों ने सोच-समझकर ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर पृथ्वी और आकाश में घूम सकें. एक हजार साल बाद जब हम तीनों भाई मिलें तो हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं. उन्होंने कहा कि जो देवता इन तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, उसी के हाथों हमारी मृत्यु हो. ब्राह्मा जी से इस वरदान को प्राप्त करके तीनों बेहद खुश हुए. वरदान के अनुसार, तारकक्ष के लिए सोने का, कमलाक्ष के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया. फिर तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य जमा लिया. देवराज इंद्र समेत सभी देवता इन असुरों से भयभीत होकर मदद के लिए भगवान शिव की शरण में पहुंचे.

देवताओं द्वारा मदद के लिए प्रार्थना किए जाने के बाद भगवान शिव ने इन तीनों दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया. सूर्य और चंद्र से उस रथ के पहिए बने. इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चार घोड़े बनें. हिमालय धनुष और शेषनाग प्रत्यंचा बनें. भगवान शिव खुद बाण बनें और अग्निदेव बाण की नोक. इसके बाद स्वयं महादेव इस रथ पर सवार होकर तीनों असुरों का अंत करने के लिए निकल पड़े. यह भी पढ़ें: Dev Diwali 2019: इस दिन बनारस में धूमधाम से मनाई जाएगी देव दीपावली, दीयों की रोशनी से जगमगा उठेगी भगवान शिव की नगरी, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

भगवानों से बने इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. युद्ध के दौरान जैसे ही तीनों भाइयों के नगर एक सीध में आए भगवान शिव ने दिव्य बाण छोड़कर तीनों असुरों यानी त्रिपुरासुर का अंत किया. त्रिपुरासुर के वध के कारण शिव जी को त्रिपुरारी कहा जाने लगा. उन्होंने त्रिपुरासुर का वध कार्तिक पूर्णिमा को किया था, इसलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है.

गौरतलब है कि त्रिपुरासुर के अंत के बाद देवताओं ने खुशी मनाई. महादेव की नगरी काशी में दीप जलाए और इसे विजय दिवस के रूप में मनाया. तब से हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर काशी (बनारस) में धूमधाम से देव दिवाली मनाने की परंपरा का पालन किया जा रहा है. इस दिन गंगा स्नान के बाद जरूरतमंदों को दान करना चाहिए. इस दिन मौसमी फलों, उड़द, चावल का दान और दीपदान करना शुभ माना जाता है.