2024 में लोकतंत्र ने झेले हमले, लेकिन हौसला बरकरार
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

2024 में दुनिया की लगभग आधी आबादी ने मतदान किया. इन चुनावों में कई जगह हिंसा और राजनीतिक उथल-पुथल हुई, लेकिन लोकतांत्रिक प्रणाली ने अपनी मजबूती भी दिखाई.2024 को चुनावी सुपर ईयर कहा गया था जब दुनिया की लगभग आधी आबादी ने अपनी-अपनी सरकारों को चुना. इनमें अमेरिका से लेकर भारत तक दर्जनों लोकतांत्रिक देश शामिल थे. अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर राष्ट्रपति चुनाव के दौरान दो बार जानलेवा हमले हुए. फिर भी उन्होंने चुनाव में स्पष्ट जीत हासिल की और अगले महीने सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की उम्मीद है. ट्रंप के चुनाव के बाद कुछ हलकों में अशांति की आशंका थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

मेक्सिको में 2024 में हुआ राष्ट्रपति चुनाव देश के इतिहास का सबसे हिंसक चुनाव साबित हुआ. चुनाव से पहले 37 उम्मीदवारों की हत्या हुई. इसके बावजूद, देश ने पहली महिला राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम को चुना.

चार महाद्वीपों में सत्ता का बदलाव

2024 में चार महाद्वीपों में कई मौजूदा नेताओं को सत्ता से हटाया गया. कई बार ये बदलाव हिंसक थे, लेकिन अंततः लोकतंत्र के एक मूल सिद्धांत, जनता की मर्जी से सत्ता हस्तांतरण का पालन हुआ.

भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में लंबे समय से शासन कर रहीं पार्टियों ने अपनी सत्ता तो बचाई, लेकिन बहुमत खो दिया. दक्षिण कोरिया के हालिया राजनीतिक संकट ने लोकतंत्र के स्वास्थ्य की अहमियत को रेखांकित किया.

देश के राष्ट्रपति यून सुक योल ने एक शाम टीवी पर आपातकाल लागू करने की घोषणा की. लेकिन सांसदों और बड़ी संख्या में जनता के विरोध के कारण उन्हें अपना फैसला पलटना पड़ा.

संसद ने बाद में राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाया. हालांकि यून ने इस्तीफे की मांग ठुकरा दी और कहा कि वह संवैधानिक अदालत के फैसले का इंतजार करेंगे. इस घटना ने बाजारों और दक्षिण कोरिया के सहयोगी देशों को हिला दिया, जो परमाणु हथियारों से लैस उत्तर कोरिया को लेकर चिंतित हैं.

यूरोप में दक्षिणपंथ का उभार

2024 में यूरोप के कई हिस्सों में दक्षिणपंथी पार्टियों ने बढ़त हासिल की. जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, यूरोपीय संसद और रोमानिया में दक्षिणपंथी ताकतें मजबूत हुईं.

रोमानिया में राष्ट्रपति चुनाव दोबारा होगा. इस पर रूसी हस्तक्षेप के आरोप लगे हैं. इन घटनाओं ने "क्या यूरोप 1930 के दशक की स्थिति की ओर बढ़ रहा है?" जैसी बहस छेड़ दी है. उस दौर में फासीवाद ने जोर पकड़ा था.

जॉर्जिया और मोल्दोवा में रूस समर्थक पार्टियों का प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा. फ्रीडम हाउस संस्था की रिपोर्ट में कहा गया है, "2024 में कोई भी ऐसा प्रयास नहीं हुआ जिसने सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण को रोका हो."

फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के अनुसार, "यह केवल इतना नहीं है कि लोकतंत्र कमजोर हो रहा है; तानाशाही और ज्यादा दमनकारी हो रही है."

रूस, ईरान और वेनेजुएला में चुनाव महज दिखावा साबित हुए. रिपोर्ट कहती है कि 2024 में हुए 62 चुनावों में से 25 फीसदी में मतदाताओं के पास कोई असली विकल्प नहीं था.

2025 की चुनौतियां और संभावनाएं

2025 में कुछ ही देशों में बड़े चुनाव होंगे. जर्मनी में 23 फरवरी को संसदीय चुनाव होंगे. यह देखना अहम होगा कि दक्षिणपंथी दल यहां कैसा प्रदर्शन करते हैं. फ्रीडम हाउस के मुताबिक 2025 में लोकतांत्रिक संस्थाओं जैसे स्वतंत्र प्रेस और न्यायपालिका पर नए नेताओं का प्रभाव दिखेगा.

अमेरिका में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में उनकी नीतियों पर नजर रहेगी. उन्होंने पहले ही मुख्यधारा की प्रेस को "भ्रष्ट" बताया है और कहा है कि वह अपने राजनीतिक विरोधियों, जासूसी अधिकारियों और जांचकर्ताओं की जांच कर सकते हैं.

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने विरोध प्रदर्शनों के बीच इस्तीफा दिया और भारत भाग गईं. नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार का कार्यभार संभाला. उन्होंने कहा है, "यदि चुनावी सुधार पूरे हुए, तो 2025 के अंत तक चुनाव हो सकते हैं."

सीरिया में विद्रोहियों ने राजधानी दमिश्क पर कब्जा कर लिया. राष्ट्रपति बशर अल-असद रूस भाग गए. अब देश का बड़ा हिस्सा हयात तहरीर अल-शाम नामक विद्रोही संगठन के नियंत्रण में है. यह संगठन पश्चिमी देशों द्वारा आतंकवादी करार दिया गया है. हालांकि, नए शासकों ने चुनावों पर अब तक कोई घोषणा नहीं की है.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)