Jyeshtha Gauri Pujan 2020: जानें भगवान गणेश की माता ज्येष्ठा गौरी के आह्वान का पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और इस उत्सव का महत्व
ज्येष्ठा गौरी पूजन 2020 (Photo Credits: File Image)

Jyeshtha Gauri Pujan 2020 in Ganeshotsav: कोरोना संकट (Corona Crisis) के बीच पूरे देश में दस दिवसीय गणेशोत्सव (Ganeshotsav) की धूम मची हुई है, लेकिन महाराष्ट्र (Maharashtra) में इस पर्व को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. हालांकि इस साल कोरोना महामारी के प्रकोप (Coronavirus Pandemic) के चलते गणेशोत्सव की रौनक भी फीकी पड़ गई है और इस उत्सव को सादगी के साथ मनाया जा रहा है. गणेशोत्सव के दौरान भगवान गणेश की माता गौरी (Mata Gauri) का भी आह्वान किया जाता है. गौरी माता पार्वती (Mata Parvati) का ही दूसरा नाम है, जिनका गणेशोत्सव के दौरान भाद्रपद शुक्ल की अष्टमी तिथि को आह्वान किया जाता है और विधि पूर्वक उनकी पूजा-अर्चना की जाती है. चलिए जानते हैं ज्येष्ठा गौरी आह्वान (Jyeshtha Gauri Avahana) का शुभ मुहूर्त, गौरी पूजन की विधि, गौरी विसर्जन की तिथि और इस उत्सव का महत्व.

ज्येष्ठा गौरी आह्वान 2020 तिथि, शुभ मुहूर्त और गौरी विसर्जन तिथि

ज्येष्ठा गौरी का आह्वान इस साल 26 अगस्त को किया जाएगा. दृक पंचांग के अनुसार, अनुराधा नक्षत्र को अष्टमी तिथि भी कहा जाता है. यह पावन तिथि 25 अगस्त की दोपहर 1.59 से शुरु हो रही है और 26 अगस्त दोपहर 1.04 बजे यह तिथि समाप्त होगी. ऐसे में ज्येष्ठा गौरी का आह्वान 26 अगस्त की सुबह 6.14 बजे से दोपहर 1.04 बजे तक किया जाएगा, जबकि ज्येष्ठा गौरी का विसर्जन 27 अगस्त 2020 को किया जाएगा. यह भी पढ़ें: Mahalakshmi Vrat 2020: महालक्ष्मी व्रत आज से शुरू, देवी लक्ष्मी की लगातार 16 दिनों तक की जाएगी पूजा-अर्चना, जानें पूजा विधि और इसका महत्व

ज्येष्ठा गौरी पूजन विधि

  • गौरी पूजन के दिन देवी की प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिए.
  • तत्पश्चात पंचामृत और शुद्ध जल से माता गौरी का अभिषेक कराना चाहिए.
  • एक चौकी पर स्वच्छ वस्त्र बिछाकर उस पर उनकी प्रतिमा स्थापित करें.
  • माता गौरी को साड़ी पहनाकर उनका सोलह श्रृंगार किया जाता है.
  • अब उनके माथे पर हल्दी-कुमकुम और अक्षत लगातर उन्हें प्रणाम करें.
  • गौरी पूजन के दौरान उन्हें 16 प्रकार के व्यंजन और मिठाइयों का भोग लगाएं.
  • माता गौरी के मंत्रों का जप करें, कथा पढ़े या सुनें और अंत में उनकी आरती उतारें.

ज्येष्ठा गौरी पूजन और इसका महत्व

महाराष्ट्र में विवाहित महिलाओं द्वारा ज्येष्ठा गौरी पूजन का यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. तीन दिनों तक विवाहित महिलाओं द्वारा गौरी माता की पूजा की जाती है और उनका विशेष साज-श्रृंगार किया जाता है. देवी शक्ति यानी भगवान गणेश की माता गौरी की कृपा प्राप्त करने के लिए महिलाएं इसका व्रत रखती हैं. मान्यता है कि माता गौरी की पूजा करने से सुहागन स्त्रियों का वैवाहिक जीवन खुशहाल होता है, इसलिए इस व्रत का पालन अधिकांश महिलाएं करती हैं. हालांकि ज्येष्ठा गौरी पूजन कुंवारी कन्याएं भी करती हैं, ताकि माता गौरी की कृपा से उन्हें एक अच्छा जीवनसाथी मिल सके. यह भी पढ़ें: Radha Ashtami 2020 Wishes & Images: राधा रानी के इन मनमोहक हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Messages, HD Photos, Greetings, Wallpapers के जरिए दें प्रियजनों को राधाष्टमी की शुभकामनाएं

गौरी पूजन के पहले दिन दो विवाहित महिलाओं द्वारा मूर्तियों का घर में स्वागत किया जाता है. ज्येष्ठा गौरी की मूर्तियों को जोड़े में लाया जाता है, जिन्हें ज्येष्ठा और कनिष्ठा कहा जाता है. प्रतिमा का स्वागत करते समय हल्दी और सिंदूर से देवी गौरी के पैरों के चिह्न बनाए जाते हैं. ज्येष्ठा गौरी आह्वान के लिए उनकी प्रतिमा पर हल्दी-कुमकुम और अक्षत अर्पित किया जाता है, इसके साथ ही माता गौरी के मंत्रों का जप किया जाता है. अगले दिन 16 प्रकार के व्यंजनों और मिठाइयों का भव्य भोज तैयार किया जाता है. ज्येष्ठा गौरी का आह्वान या गौरी पूजा गणेश चतुर्थी के चौथे या पांचवें दिन किया जाता है. प्रतिमाओं को तीन दिन के लिए रखा जाता है और तीसरे दिन गौरी विसर्जन किया जाता है.