Jivitputrika Vrat 2022 Messages in Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है. यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और उनकी अच्छी सेहत की कामना से करती हैं. जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) को देश के विभिन्न हिस्सों में जिउतिया (Jiutiya), जितिया (Jitiya), जीवित्पुत्रिका, जीमूतवाहन व्रत जैसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh), बिहार (Bihar) और झारखंड (Jharkhand) जैसे राज्यों में इस त्योहार को पूरे श्रद्धाभाव से मनाया जाता है. आज यानी 18 सितंबर 2022 को जितिया व्रत का यह पावन पर्व मनाया जा रहा है. आमतौर पर यह व्रत तीन दिनों तक मनाया जाता है. जो इस साल 17 सितंबर से शुरु होकर 19 सितंबर तक चलेगा. व्रत के पहले दिन यानी सप्तमी तिथि को नहाय खाय होता है, फिर अष्टमी तिथि को निर्जल व्रत रखा जाता है और नवमी तिथि को व्रत का पारण किया जाता है.
जितिया व्रत का पालन करने वाली माताओं की संतानों को दीर्घायु, उत्तम आरोग्य और खुशहाल जीवन का वरदान मिलता है. साथ ही जीवन में आनेवाले सभी संकटों से उनकी रक्षा होती है, इसलिए इस पर्व का विशेष महत्व है. ऐसे में इस शुभ अवसर पर लोग जीवित्पुत्रिका व्रत के मैसेजेस, कोट्स, फोटो एसएमएस, वॉट्सऐप विशेज, जीआईएफ ग्रीटिंग्स को भेजकर लोग एक-दूसरे को शुभ जितिया व्रत कहकर बधाई भी देते हैं.
1-आज जितिया का पावन दिन है आया,
मां ने रखा है लाडले के लिए निर्जला व्रत,
लंबी हो उम्र उसकी, रहे खुशहाल और निरोग,
यही कामना करतीं मां हर वर्ष...
हैप्पी जितिया व्रत
2- अश्वत्थामा की गलती को,
कृष्ण ने था सुधारा,
एक अभागी मां को,
मिला था सहारा.
हैप्पी जितिया व्रत
3- मनचाही मुराद पूरी हो आपकी,
संतान को मिले लंबी उम्र,
सुख, सौभाग्य और संतति दें,
हरे लें सारे दुख और क्लेश.
हैप्पी जितिया व्रत
4- आपको जितिया व्रत की बहुत-बहुत बधाई,
आप और आपका परिवार स्वस्थ और सुखी रहे,
सभी कष्टों और संकटों का नाश हो,
जग में यश और कीर्ति चारों ओर फैले.
हैप्पी जितिया व्रत
5- तुम सलामत रहो, यही हैं मां की आस,
तुम्हें भी करनी होगी, पूरी मां की आस,
बढ़ते जाना आगे, प्रगति के पथ पर,
शर्मिंदा न करना, किसी भी कीमत पर,
देश के आना काम, यही है मां का पैगाम.
हैप्पी जितिया व्रत
गौरतलब है कि नहाय खाय के अगले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर महिलाएं व्रत का संकल्प लेती हैं, फिर विधि-विधान से जीमूतवाहन, गौरी और गणेश की पूजा की जाती है. इस दौरान कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है. इसके अलावा इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की प्रतिमा भी बनाई जाती है. पूजा के दौरान जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा पढ़ी या सुनी जाती है और अगले दिन यानी नवमी तिथि को सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जाता है.