International Nurses Day 2023: कब है अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस? कौन है फ्लोरेंस नाइटिंगेल? जानें अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस का महत्व एवं इतिहास!

स्वास्थ्य सेवा उद्योग में जितनी महत्वपूर्ण भूमिका डॉक्टर की होती है, उससे कम नर्स की नहीं होती. हर मरीज के इलाज में उसकी निस्वार्थ सेवा भाव और समर्पण को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. उनकी इसी सेवा भावना के सम्मान में 12 मई का दिन उन्हें समर्पित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है...

International Nurses Day (Photo: File Image)

International Nurses Day: स्वास्थ्य सेवा उद्योग में जितनी महत्वपूर्ण भूमिका डॉक्टर की होती है, उससे कम नर्स की नहीं होती. हर मरीज के इलाज में उसकी निस्वार्थ सेवा भाव और समर्पण को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. उनकी इसी सेवा भावना के सम्मान में 12 मई का दिन उन्हें समर्पित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है. दरअसल इसी दिन नर्सिंग जीवन को प्रोफेशनल आयाम देने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म हुआ था, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस सेलिब्रेट करने के लिए इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स ने इस तिथि को चुना. आइये जानते हैं, अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस के अवसर पर इसके महत्व, इतिहास एवं इस दिवस से संबंध रखने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल के संदर्भ में रोचक जानकारी. यह भी पढ़ें: Mothers Day 2023: इस वर्ष कब मनाया जाएगा मातृत्व दिवस? जानें इस दिवस का इतिहास एवं महत्व!

अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस का इतिहास

मरीजों के प्रति उनकी सेवा, साहस और सराहनीय कार्यों के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से साल 12 मई 1974 के दिन पहली बार अंतर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस मनाया गया था. यह दिवस विश्वविख्यात नर्स फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म दिन यानी 12 मई के दिन मनाया जाता है. फ्लोरेंस नाइटिंगेल नर्सिंग सेवा के साथ-साथ समाज सुधारक भी थीं. क्रीमिया युद्ध के दौरान फ्लोरेंस ने जिस तरह से रात-रात भर जागकर घूमते हुए घायलों की पूरे त्याग और सेवा भाव से कार्य किया, वह वाकई सराहनीय था. इसीलिए उन्हें ‘द लेडी विद द लैंप’ भी कहा जाता है. वह फ्लोरेंस ही थीं, जिन्होंने नर्सिंग सेवा को प्रोफेशनल बनाया.

अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस का महत्व

सेहत संबधी किसी भी समस्या से मुक्ति दिलाने में डॉक्टर की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन डॉक्टर की सफलता नर्स की सेवाभाव और तत्परता के बिना संभव नहीं है. वह नर्स ही है, जो मरीजों को समय-समय पर दवा देने से लेकर उसकी हर तरह से सेवा करती है. कोरोना महामारी के दरम्यान उनकी भूमिकाएं बहुत ज्यादा जोखिम भरी रही है. खतरनाक संक्रमण काल में उन्होंने 12-12 घंटे कार्य करते हुए अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों की सेवा की. इस दरम्यान बहुत सी नर्सों ने जान भी गंवाई, लेकिन अपने कर्तव्य भाव से वे कभी विचलित नहीं हुईं. इसलिए नर्स ही नहीं मरीज के लिए भी इस दिन का विशेष महत्व है.

कौन थीं फ्लोरेंस नाइटिंगेल?

ताउम्र रोगियों की सेवा करने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल का अपना बचपन रोगों एवं शारीरिक रूप से कमजोर रहा है. फ्लोरेंस का जन्म 12 मई 1820 को हुआ था. 22 साल की उम्र में उन्होंने नर्सिंग को अपना करियर बनाने का फैसला किया. संपन्न परिवार की फ्लोरेंस का यह फैसला उनके परिवार को पसंद नहीं आया. 1854 में ब्रिटेन, फ्रांस और तुर्की ने रूस के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. भारी संख्या में सैनिक हताहत हुए, लेकिन घायलों के उपचार की कोई सुविधाएं नहीं थी. अस्पताल गंदे थे, और घायलों के लिए पट्टियां तक नहीं उपलब्‍ध थी. सैनिकों की यह दुर्दशा फ्लोरेंस से देखा नहीं गया.

उधर सेना महिला नर्स नियुक्त करने के पक्ष में नहीं थी. अंततः फ्लोरेंस महिला नर्सों के साथ युद्ध स्थल पर पहुंचकर सेवा-सुश्रुषा शुरू कर दी. इसी बीच रूस के जवाबी हमले से छह घंटे में 2500 सैनिक घायल हो गये, अस्पतालों की हालत और खराब हो गई. लेकिन फ्लोरेंस अपनी साथी नर्सों के साथ जख्मी सैनिकों के उपचार से लेकर अस्पताल एवं बेड की साफ-सफाई तथा घायलों के लिए खाना भी बनाती रहीं. जबकि उनके लिए सोने का कमरा तक नहीं था. 1858 में उनकी काम की सराहना रानी विक्टोरिया और प्रिंस अल्बर्ट ने की.

1860 में फ्लोरेंस ने आर्मी मेडिकल स्कूल की स्थापना की. रोगियों की सेवा करने वाली फ्लोरेंस स्वयं एक खतरनाक रोग की शिकार हो गईं, अंततः 90 वर्ष की आयु में 13 अगस्त 1910 को उनका निधन हो गया.

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