Holi 2019: विश्व प्रसिद्ध है बरसाने की 'लट्ठमार होली', द्वापर युग में जहां श्रीकृष्ण और राधा साथ मिलकर मनाते थे यह पर्व

भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा की जन्मस्थली बरसाने का सबसे रंगीन पर्व ‘लट्ठमार होली’ अपने अनूठेपन के लिए न केवल संपूर्ण भारत में मशहूर है, बल्कि इसे देखने विदशों से भी लोग यहां बड़ी तादात में पहुंचते हैं.

बरसाना की लट्ठमार होली (Photo Credits: Facebook)

Holi 2019 भगवान श्रीकृष्ण (Shri Krishna) की प्रेमिका राधा (Radha) की जन्मस्थली बरसाने (Barsana) का सबसे रंगीन पर्व ‘लट्ठमार होली’ (Lathmar Holi) अपने अनूठेपन के लिए न केवल संपूर्ण भारत में मशहूर है, बल्कि इसे देखने विदशों से भी लोग यहां बड़ी तादात में पहुंचते हैं. प्रत्यक्षादर्शी बताते हैं कि जिसने एक बार बरसाने की लट्टमार होली देख ली, वह हर साल इस खूबसूरत पर्व का आनंद लेना चाहेगा.बरसाने में लट्ठमार होली फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन मनाई जाती है. वस्तुतः मथुरा के निकट स्थित बरसाना कृष्ण-प्रेमिका राधारानी की जन्मस्थली मानी जाती है, जो आज भी बरकरार है.

कहा जाता है कि राधा के साथ पहली बार होली श्रीकृष्ण ने ही खेली थी, यहीं से रंगों की होली की परंपरा शुरु हुई थी. उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए आज भी नंदगांव के होरियारों (पुरुषों) की टोली कमर में फेंटा बांधे बरसाने की युवतियों के साथ होली खेलने पहुंचते हैं. वहां विभिन्न मंदिरों में राधा-कृष्ण की पूजा अर्चना के पश्चात लोग रंगों एवं फूलों की होली खेलते हैं. इसके बाद ‘लट्ठमार होली’ शुरु होती है. यह भी पढ़ें: Brij Holi 2019 Dates: उत्तर प्रदेश के बरसाना, मथुरा और वृंदावन में होली महोत्सव की धूम, जानिए यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों की तिथि और पूरी लिस्ट

बरसाने की होली खेलने के पश्चात बरसाने के हुरियार अगले दिन यानी फाल्गुन शुक्ल दशमी के दिन नंदगांव की हुरियारिनों (महिलाओ) से होली खेलने पहुंचते हैं. नाचते-गाते-झूमते हुरियारे जब हुरियारिनों पर रंग फेंकते हैं तो वे उन्हें लाठियों से पीटना शुरु करती हैं. हुरियारे लाठियों से बचने का प्रयास करते हुए हुरियारिनों पर रंगों की बौछार करने का मौका नहीं चूकते. होली की यह ठिठोली बड़े ही सौहार्दपूर्ण माहौल में होती है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हुरियारिनें अपने गांव के पुरुषोँ अथवा दूर-दराज से आये अतिथियों पर लाठियां नहीं बरसातीं. इस तरह पूरे दिन नंदगांव के नंदभवन में होली की धूम मची रहती है.

द्वापर युग से जारी है ‘लट्ठमार होली’ की परंपरा

मान्यता है कि ‘लट्ठमार होली’ की परंपरा भगवान कृष्ण के समय से चली आ रही है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण कमर में फेंटा बांधे अपने ग्वालबालों के साथ नाचते-झूमते राधा और उनकी सखियों से होली खेलने बरसाने पहुंचते थे. वहां वे राधा और उनकी सखियों के साथ होली खेलते हैं। इस दौरान जब कृष्ण राधा संग ठिठोली करते तो वहां की सारी गोपियां उन पर डंडे (लाठियां) बरसाती थीं. यह भी पढ़ें: Holi 2019: देश के अलग-अलग हिस्सों की 'अनूठी होली का अनोखा अंदाज'

गोपियों के डंडे की मार से बचने के लिए नंदगांव के ग्वाले ढ़ालों के सहारे खुद को बचाते हैं. गौरतलब है कि गोकुल को छोड़ने के पश्चात नंदबाबा श्रीकृष्ण और सभी गांव वालों को लेकर नंदगांव आ गए थे. धीरे-धीरे बरसाने और नंदगांव की यह परंपरा बन गयी, जो आज तक जारी है.

इस दो दिवसीय पर्व को देखने के लिए हजारों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक मथुरा (बरसाने) पहुंचते हैं. विदेशी पर्यटकों के लिए होली का यह पर्व बहुत अजूबा होता है, यद्यपि वे भी इस पर्व में शामिल होते हैं. और राधा-रानी के संग होली सेलीब्रेट करते हैं.

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