Happy Hanuman Jayanti 2019: हनुमान जी (Hanuman Ji) के संदर्भ में अक्सर प्रश्न उठता है कि 'क्या वे वानर (Apes) थे?' रामायण जैसे ग्रंथों में उल्लेखित हनुमान जी और उनके सजातीय भाई सुग्रीव और अंगद आदि के नाम के साथ 'वानर, कपि, शाखामृग, प्लवंगम' आदि विशेषण पढ़कर उनके वानर होने का अंदाजा लगाया जाता है. तस्वीरों में भी पूंछ देखकर उनके वानर होने की पुष्टि होती है. महाकवि वाल्मिकी (Maharshi Valmiki) ने भी रामायण में उन्हें महाबलशाली, प्रकाण्ड पंडित, श्रीराम भक्त (Ram Bhakt) आदि रूपों में प्रस्तुत करने के साथ साथ उन्हें पूंछधारी भी बताया है, लेकिन पौराणिक कथाओं विशेषकर रामायण (Ramayana) व रामचरित मानस (RamcharitManas) में उनकी विशिष्ठताओं को देखते हुए उनके वानर होने पर सहजता से विश्वास नहीं होता.
तमाम शोध बताते हैं कि लगभग 9 लाख वर्ष पूर्व मानवों की एक ऐसी जाति थी, जो मुख और पूंछ से वानर जैसी दिखती थी, लेकिन वे शक्ति और बुद्धिमता में मानव से बेहतर थे. हालांकि अब वह जाति भारत में खत्म हो चुकी है, लेकिन बाली द्वीप में आज भी पूंछधारी जंगली मानव यदा-कदा दिख जाते हैं. यह भी पढ़ें: Hanuman Jayanti 2019: आज भी सशरीर जीवित हैं बजरंगबली, जानिए किस स्थान पर कर रहे हैं निवास
रामायण के चित्रों में सुग्रीव, बालि आदि की पूंछ दिखाई जाती है, लेकिन उनकी पत्नियों की पूंछें नहीं दिखती. इससे स्पष्ट है कि हनुमान, सुग्रीव व अंगद आदि की पूंछ चित्रकार की कल्पना भी हो सकती है.
सुंदरकांड में वर्णित, अशोक वाटिका में बैठी सीता जी को अपना परिचय देने से पूर्व हनुमान जी सोचते हैं -‘यदि मैं संस्कृत भाषा का प्रयोग करूंगा तो माता सीता मुझे रावण समझकर भयभीत हो जाएंगी, इसलिए मैं सामान्य नागरिक की भाषा प्रयोग करूंगा.’ इससे सिद्ध होता हैं कि हनुमान जी चारों वेद, व्याकरण और संस्कृत समेत कई भाषाओं के ज्ञाता थे.
किष्किंधा कांड में ही हनुमान जी के अलावा बालिपुत्र अंगद को भी अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चारों प्रकार के बलों साम-दाम-दण्ड-भेद से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त माना गया है. इतने गुणों से युक्त कोई व्यक्ति वानर कैसे हो सकता है?
रामचरित मानस के एक प्रसंग में हनुमान जी को उड़ते हुए समुद्र पार कर लंका पहुंचने का जिक्र है. आखिर कोई वानर या व्यक्ति बिना पंखों के कैसे उड़ सकता है? यहां सच्चाई यह है कि हनुमान जी उड़कर नहीं बल्कि तैरते हुए समुद्र पारकर लंका पहुंचे थे.
इस संदर्भ में भी किष्किन्धा कांड के अंत उल्लेखित है. ‘अंगद आदि सभी योद्धा लंका पहुंचने के सुग्रीव के आदेश के पश्चात समुद्र तट पर पहुंचने पर जब समुद्र का वेग देखा, तो सभी परेशान हो गये. अंगद ने सौ योजन के समुद्र को पार करने का आह्वान किया, लेकिन वहां उपस्थित वानरों ने 100 योजन के समुद्र को पार करने में असमर्थता दिखाई. तब अंगद ने भी माना था, कि वह 100 योजन का समुद्र तैर कर उस पार तो पहुंच जायेंगे. मगर वापस लौटने की शक्ति नहीं रहेगी. तब जाम्बवान ने कहा था कि हम आपको नहीं जाने देंगे. परेशान होकर अंगद ने कहा, अगर हम ऐसा नहीं करते तो हमारा मर जाना ही उचित होगा, क्योंकि कार्य किये बिना महाराजा सुग्रीव के राज्य में जाना भी मरने समान ही होगा. यह भी पढ़ें: Hanuman Jayanti 2019: साल में दो बार मनाया जाता है हनुमान जयंती का पावन पर्व, जानिए इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं
तब जाम्बवान ने बताया कि यह कार्य हनुमान जी कर सकते हैं. उनमें वह शक्ति है, बस उन्हें प्रेरित करने की आवश्यकता है. उन्होंने हनुमान जी को उनकी शक्तियों का स्मरण कराया. ‘का चुप साधि रहे बलवाना’ तब हनुमान जी बोले- मैं इस समुद्र को पार कर सकता हूं. मैं उस पार जाकर पृथ्वी पर बिना पांव धरे उसी वेग से वापस आ सकता हूं.
(इसका वर्णन किष्किन्धा काण्ड के श्लोक 67/26 में किया गया है.)
इसके पश्चात ही हनुमान समुद्र में उतरने के लिए एक पर्वत के शिखर पर चढ़कर समुद्र में कूद गये. हनुमान जी के समुद्र में प्रविष्ट होते ही समुद्र में बादल गरजने जैसा शोर हुआ. हनुमान जी ने वायु वेग से उस महासमुद्र को पार कर लिया. उनके ‘वायु वेग’ के अलंकरण से यह भ्रान्ति हुई कि उन्होंने हवा में उड़कर समुद्र पार किया था.
इस तरह एक अन्य प्रंसग में - अशोक वाटिका में पकड़े जाने के पश्चात हनुमान जी को जब रावण के समक्ष प्रस्तुत किया गया तो उनका उपहास करने के लिए सैनिकों ने उन्हें जंगली जानवर जैसा दिखाने के लिए उनका पूंछ लगाकर उपहास करना चाहा था. तब हनुमान जी ने इस उपहास का जवाब देते हुए उसी आग लगी पूंछ से पूरी लंका को भस्म कर दिया था.
किष्किन्धा कांड में ही वर्णित एक प्रसंग में अपनी पत्नी तारा के विषय में मरने से पूर्व बालि ने कहा था कि- “सुषेन की पुत्री यह तारा सूक्ष्म विषयों का निर्णय करने तथा नाना प्रकार के चिह्नों को समझने में निपुण है, जिस कार्य को यह अच्छा बताए, उसे निश्चंत होकर करना. तारा की किसी सम्मति का परिणाम अन्यथा नहीं होता. ऐसे गुण विशेषया मनुष्यों में ही हो सकते हैं. यह भी पढ़ें: Hanuman Jayanti 2019: जानिए क्यों बाल ब्रह्मचारी होते हुए भी हनुमान जी को करना पड़ा विवाह, सूर्य पुत्री से हुई थी उनकी शादी
किष्किन्धा कांड में ही यह भी वर्णित है कि बालि के अंतिम संस्कार के समय भाई सुग्रीव ने आज्ञा दी कि मेरे ज्येष्ठ बन्धु बालि का संस्कार राजकीय नियमों के अनुसार शास्त्रों के अनुरूप किया जाये. इसके पश्चात सुग्रीव का राजतिलक भी हवन और मन्त्रादि के साथ विद्वानों ने किया. इस तरह के कार्य मनुष्यों में ही संभव हो सकता है, इससे यह कहा जा सकता है कि रामायण में वर्णित बालि, सुग्रीव, अंगद के साथ महावीर हनुमान वानर नहीं थे.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.