Hal Shashthi 2020: हलषष्ठी कब है और क्यों मनाया जाया है यह पर्व? जानें इस दिन किन-किन बातों का रखें परहेज
हलषष्ठी 2020 (Photo Credits: File Image)

Hal Shashthi 2020: भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन हलषष्ठी (Hal Shashthi) की पूजा-अर्चना की जाती है. विभिन्न स्थानों पर इसे हलषष्ठी, हलछठ, हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, कमर छठ, अथवा खमर छठ आदि के नामों से भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण (Lord Krishna) के बड़े भाई बलराम (Balram) का जन्म हुआ था, इसीलिए इसे बलराम जयंती (Balram Jayanti) के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि यह व्रत केवल पुत्रवती मांए ही रखती हैं. पूरे दिन व्रत रखते हुए मां अपने पुत्र की लंबी आयु की कामना करती हैं. इस साल हलषष्ठी यानी बलराम जंयती 9 अगस्त को मनाई जा रही है.

धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान बलराम का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है, उनके हल धारण करने के कारण उन्हें हलधर भी कहते हैं. गौरतलब है कि कंस की जेल में भाद्रपद की सप्तमी के दिन बलराम ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया था. इस तरह वे देवकी और वासुदेव की सातवीं संतान कहे जाते हैं. हलषष्ठी का यह व्रत श्रावण की पूर्णिमा के छह दिन बाद मनाई जाती है. बहुत सी जगहों पर इस दिन किसान अपने परिवार के साथ हल, मूसल और बैलों की पूजा-अर्चना करते हैं.

इन बातों से रखें परहेज

इस व्रत की एक खास बात यह भी है कि इस दिन बैल, हल और मूसल की पूजा होने के कारण खेत से उपजे अन्न अथवा सब्जियों तथा गाय के दूध, दही अथवा मक्खन आदि का सेवन नहीं करते. उपवासी महिलाएं व्रत के दौरान तिन्नी अथवा पसाई धान के चावल और भैंस के दूध से बनी वस्तुओं का सेवन करती हैं. इसके अलावा उपवासी महुवा के दातुन से दांत साफ करती हैं. हलषष्ठी वस्तुतः निर्जला व्रत है. सूर्यास्त के पश्चात पसही के चावल अथवा महुए का लाटा बनाकर व्रत का पारण किया जाता है. लेकिन पारण से पूर्व ब्राह्मण को दान दिया जाता है. यह भी पढ़ें: krishna Janmashtami 2020: कब है कृष्ण जन्माष्टमी? जानें आखिर मध्यरात्रि में ही क्यों मनाया जाता है कान्हा का जन्मोत्सव

हलषष्ठी की व्रत कथा

प्राचीनकाल में एक ग्वालन प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी, लेकिन वह अपनी गाय का दूध-दही भी बेचने जाना चाहती थी. वह सोच रही थी कि अगर उसका प्रसव हो गया तो उसका दूध-दही घर पर ही पड़ा रह जायेगा. हिम्मत करके वह दूध-दही सर पर रखकर पास के गांव में बेचने चली गई. संयोगवश उसी दिन हलषष्ठी थी. उसने अपने छोटे से बच्चे को एक गांव के करीब एक झरबेरी के पेड़ के नीचे सुलाकर गांव में गाय भैंस के मिश्रित दूध को भैंस का दूध बताकर बेच दिया. उसके ऐसा करते ही झरबेरी के पेड़ के पास खेत जोत रहे किसान के बैल अचानक भड़क कर भागे तो हल का फल बच्चे के शरीर में घुस जाने से बच्चे की मृत्यु हो गयी. इससे किसान दुखी हो गया. उसने साहस से काम लेते हुए बच्चे के फटे पेट में झरबेरी के कांटों से टांके लगाए और घर चला गया.

कुछ देर बाद ग्वालिन दूध-दही बेचकर वहां आयी तो बच्चे की स्थिति देखते ही समझ गयी कि उसके पापों की सजा उसके बच्चे को मिली है. उसने सोचा कि उसकी गलत नियति से उपवासी स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट हुआ है. उसने अपने कृत्य का प्रायश्चित करने के लिए बच्चे को वहीं छोड़, उन गलियों में गई, जहां उसने दूध-दही बेचा था, वह घूम-घूम कर सबसे कहने लगी कि उससे अपराध हुआ है, उसकी करनी का दण्ड उसे मिलना ही चाहिए. तब उपवासी स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ की भावना से उसे क्षमा तो किया ही साथ ही आशीर्वाद भी दिया. उपवासी स्त्रियों का आशीर्वाद लेकर जब वह झरबरी के पेड़ के नीचे पहुंची तो उसका पुत्र जीवित अवस्था में मिला, तभी से उसने कभी भी झूठ नहीं बोलने की कसम खाई.