Guru Purnima 2020: गुरु पूर्णिमा का हिंदू धर्म में है खास महत्व, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि के साथ जानें  5 सर्वश्रेष्ठ गुरु-शिष्य की जोड़ियों के बारे में
गुरु पूर्णिमा 2020 (Photo Credits: File Image)

Guru Purnima 2020: कोरोना संकट (Corona Crisis) के बीच देशभर में 5 जुलाई 2020 को गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) का पर्व मनाया जा रहा है. हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. इस दिवस का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया जाता है, क्योंकि इस दिन गुरुओं (Guru) की पूजा की जाती है. दरअसल, अज्ञानता के अंधेरे से ज्ञान के उजाले तक लाने में एक गुरू की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और हिंदू धर्म में गुरुओं को भगवान का दर्जा दिया गया है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा को महर्षि कृष्ण व्यास अर्थात महर्षि वेद व्यास जी (Maharishi Ved Vyas) का जन्म हुआ था, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा (Vyas Purnima) के तौर पर भी जाना जाता है. महर्षि व्यास संस्कृति के महान विद्वान थे और उन्होंने महाभारत, चार वेद और 18 पुराणों की रचना की थी. इस साल गुरु पूर्णिमा के साथ साल का तीसरा चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) भी लग रहा है. चलिए जानते हैं गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और गुरु-शिष्य की 5 प्रचलित जोड़ियों के बारे में...

गुरु पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

गुरु पूर्णिमा तिथि- 5 जुलाई 2020 (रविवार)

पूर्णिमा प्रारंभ- 4 जुलाई 2020 को सुबह 11:33 बजे से,

पूर्णिमा समाप्त- 5 जुलाई 2020 की सुबह 10:13 बजे तक.

पूजा विधि-

  • गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए.
  • पूजा स्थल पर चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाओं का एक व्यास पीठ बनाएं.
  • 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र का जप करते हुए अपने गुरु या उनकी प्रतिमा की पूजा करें.
  • अगर गुरु आपके सामने हैं तो उनके चरण धोएं, माथे पर तिलक करें और फूल अर्पित कर उनके चरण स्पर्श करें.
  • अगर आपके गुरु की प्रतिमा है तो विधि-विधान से अपने गुरु की पूजा करें. यह भी पढ़ें: Chandra Grahan July 2020: साल का तीसरा चंद्र ग्रहण 5 जुलाई को, जानें गुरु पूर्णिमा पर लग रहे उपछाया ग्रहण के बारे में सब कुछ

गुरु-शिष्य की 5 जोड़ियां-

1- सांदिपनी ऋषि और श्रीकृष्ण

मथुरा में कंस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण और बलराम को अध्ययन के लिए उज्जैनी में सांदिपनी ऋषि के आश्रम में भेजा गया. जहां उन्होंने 64 दिन में 64 कलाएं सीखीं. सांदिपनी ऋषि ने वेद-उपनिषदों का ज्ञान देकर श्रीकृष्ण को युगपुरुष बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था.

2- द्रोणाचार्य और अर्जुन

द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरु थे, लेकिन उनके सबसे प्रिय शिष्य अर्जुन थे. द्रोणाचार्य ने ही अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाया था.

3- चाणक्य और चंद्रगुप्त

भारत के महान राजाओं में शुमार चंद्रगुप्त मौर्य ने गुरु चाणक्य से शौर्य, पराक्रम और युद्ध कौशल की शिक्षा ली थी. आगे चलकर चंद्रगुप्त और चाणक्य ने अखंड भारत की स्थापना की थी.

4- रामदास समर्थ और शिवाजी

स्वामी रामदास समर्थ एक संन्यासी थे, जिन्होंने मुगल शासकों के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाने के लिए शिवाजी को अपने शिष्य के रूप में चुना. हिंदवी स्वराज्य की स्थापना के लिए उन्होंने ही शिवाजी को प्रेरित किया. गुरु रामदास समर्थ के मार्गदर्शन में शिवाजी एक छात्र से छत्रपति शिवाजी महाराज कहलाए.

5- रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद ने भारत के पुनरुत्थान और विश्व के उद्धार के लिए जो भी कार्य किया, उसकी प्रेरणा उन्हें अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मिली थी. रामकृष्ण परमहंस के मार्गदर्शन में ही स्वामी विवेकानंद को ऐसा ज्ञान मिला, जिससे भारत को विश्व गुरु का दर्जा मिला. यह भी पढ़ें: July 2020 Festival Calendar: देवशयनी एकादशी से हो रही है जुलाई की शुरुआत, शिवभक्तों के लिए भी खास है यह महीना, देखें इस माह के व्रत और त्योहारों की पूरी लिस्ट

गुरु पूर्णिमा का महत्व

हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया जाता है. इस दिन गुरुओं की पूजा की जाती है, क्योंकि गुरु के बिना किसी भी व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है. अज्ञानता से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाने वाले गुरु को भगवान से ऊपर का दर्जा दिया गया है. इस दिन केवल गुरु की ही पूजा नहीं की जाती है, बल्कि घर के बड़े सदस्यों जैसे- माता-पिता, भाई-बहन का आशीर्वाद भी लिया जाता है.