गणेशोत्सव 2018: अष्टविनायक का मोरेश्वर स्वरूप, जहां श्री गणेश ने मोर पर सवार होकर किया था सिंधुरासुर का वध

इसी स्‍थान पर गणेश जी ने सिंधुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था. सिंधुरासुर बहुत ही भयानक राक्षस था, उसके आतंक से ऋषि मुनियों से लेकर देवता तक भयभीत रहते थे. मान्यता है भगवान गणेश ने मयूर (मोर) पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध कर उसका वध किया था.

अष्टविनायक का मोरेश्वर स्वरूप (Photo Credit- Facebook)

10 दिनों तक चलने वाले गणपति उत्सव की धूम महाराष्ट्र समेत पूरे भारत में है. प्रथम पूज्य भगवान गणपति के अष्टविनायक मंदिरों का इस दौरान विशेष महत्त्व है. अष्टविनायक यानी ‘आठ गणपति'. अष्टविनायक मंदिर की अपनी विशेषता है. इन मंदिरों को स्‍वयंभू मंदिर भी कहा जाता है. स्‍वयंभू का अर्थ है कि यहां भगवान स्‍वयं प्रकट हुए थे, किसी ने उनकी प्रतिमा बना कर स्‍थापित नहीं की थी. भगवान श्री गणेश के ये अष्टविनायक मंदिर महाराष्ट्र में हैं.

महाराष्ट्र के विख्यात अष्टविनायक मंदिरों में से एक है मोरेश्वर मंदिर. यहां भगवान गणेश को मोरेश्वर या मयूरेश्वर रूप में पूजा जाता है.

पुणे से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोरेगांव में गणपति बप्पा का यह प्राचीन मंदिर बना हुआ है. यह क्षेत्र भूस्वानंद के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है- "सुख समृद्ध भूमि".

मंदिर के चार द्वारों को सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग का प्रतीक मानते हैं. यहां गणेश जी की मूर्ती बैठी मुद्रा में है और उनकी सूंड बाईं तरफ है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं. यह भी पढ़ें- गणेशोत्सव 2018: अष्टविनायक का विघ्नेश्वर स्वरूप, जहां श्री गणेश ने किया था विघ्नासुर का वध

कहते हैं कि इसी स्‍थान पर गणेश जी ने सिंधुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था. सिंधुरासुर बहुत ही भयानक राक्षस था, उसके आतंक से ऋषि मुनियों से लेकर देवता तक भयभीत रहते थे. मान्यता है भगवान गणेश ने मयूर (मोर) पर सवार होकर सिंधुरासुर से युद्ध कर उसका वध किया था. इसलिए इस मंदिर का नाम भी मयूरेश्वर और मोरेश्वर पड़ा. यह भी पढ़ें- गणेशोत्सव 2018: महाराष्ट्र में हैं बाप्पा के ऐसे आठ मंदिर, जहां दर्शन करने से पूर्ण होती हैं सभी मनोकामनाएं

मंदिर में हैं नंदी जी का वास

मंदिर के मुख्यद्वार पर नंदी की प्रतिमा स्थापित है जिनका मुख भगवान गणेश जी की ओर है इनके साथ ही मूषक राज की प्रतिमा भी बनी हुई है. नंदी और मूषक को मंदिर का रक्षक भी माना जाता है.

नंदी की प्रतिमा के पीछे एक रोचक मान्यता भी है. मान्यताओं और दंतकथाओं के अनुसार एक बार भगवान शिव के वाहन नंदी इस मंदिर में विश्राम करने के इरादे से रूके थे लेकिन उन्हें गणेश जी का सानिध्य इतना रास आया कि वे यहां से फिर कभी वापस ही नहीं जा पाए. मान्यता है कि तब से लेकर वर्तमान तक वे यहीं स्थित हैं. यह भी पढ़ें-गणेशोत्सव 2018: हैरान करने वाला लेकिन सच- कनिपक्कम गणपति की ये मूर्ति हर दिन बदलती है आकार !

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