भगवान गणेश को हिन्दू धर्म में प्रथम पूज्य माना जाता है. इसीलिए हर पूजा व शुभ कार्यों में सर्वप्रथम भगवान गणेश को पूजा जाता है. उन्हें रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि का देवता कहा जाता है. भगवान गणेश के आगमन का त्योहार गणेश चतुर्थी इस साल 13 सितंबर को है, 10 दिन तक चलने वाला यह उत्सव 23 सितंबर तक मनाया जाएगा.
देशभर में भगवान गणपति की पूजा के लिए कई मंदिर हैं, पर गणपति उत्सव के समय पुणे के अष्टविनायक का विशेष स्थान है. इन मंदिरों को स्वयंभू मंदिर भी कहा जाता है. स्वयंभू का अर्थ है कि यहां भगवान स्वयं प्रकट हुए थे किसी ने उनकी प्रतिमा बना कर स्थापित नहीं की थी. यह भी पढ़ें-गणेशोत्सव 2018: ऐसे करें बप्पा की स्थापना, जानिए पूजन विधि
इन्हें आठ शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है. दरअसल अष्टविनायक का अर्थ होता है आठ गणपति. यह आठ मंदिर अति प्राचीन मंदिर है जहां भगवान गणेश की प्राचीन प्रतिमाएं विराजमान हैं. इन आठ मंदिरों का उल्लेख हिंदू धर्म पवित्र ग्रंथों में भी मिलता है. अष्टविनायक दर्शन करने मनोकामना जरूर पूरी होती है. इन मंदिरों की दर्शन यात्रा को अष्टविनायक तीर्थ यात्रा भी कहा जाता है. ये हैं वो आठ मंदिर.
मयूरेश्वर या मोरेश्वर मंदिर
पुणे से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोरेगाँव में गणपति बप्पा का यह प्राचीन मंदिर बना हुआ है. यह क्षेत्र भूस्वानंद के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है- "सुख समृद्ध भूमि" . मंदिर के चार द्वारों को सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग चारों युग का प्रतीक मानते हैं. यहां गणेश जी की मूर्ती बैठी मुद्रा में है और उनकी सूंड बाईं तरफ है तथा उनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र हैं. यहां नंदी की भी मूर्ती है. कहते हैं कि इसी स्थान पर गणेश जी ने सिंधुरासुर नाम के राक्षस का वध मोर पर सवार होकर उससे युद्ध करते हुए किया था. इसी कारण उनको मयूरेश्वर कहा जाता है. यह भी पढ़ें- घर पर बप्पा के आगमन के बाद जरूर करें ये काम, मिलेगा मनचाहा वरदान
सिद्धिविनायक मंदिर
यह मंदिर करजत तहसील, अहमदनगर में भीम नदी के किनारे पर स्थित है. यह मंदिर करीब 200 साल पुराना बताया जाता है. इस मंदिर की परिक्रमा करने के लिए पहाड़ की यात्रा करनी होती है. सिद्धिविनायक मंदिर में गणेशजी की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी है. यहां गणेश जी की सूंड सीधे हाथ की ओर है. कहते हैं कि सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है. वह अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. यह भी पढ़ें- Ganesh Chaturthi 2018: जानिए गणेश भगवान के 108 नाम और उनके अर्थ
बल्लालेश्वर मंदिर
यह मंदिर पाली गांव, रायगढ़ में है. इस मंदिर का नाम गणेश जी के भक्त बल्लाल के नाम पर रखा गया है. ये मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर पाली से टोयन और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किलोमीटर दूर स्थित है.बल्लाल की कथा के बारे में कहते हैं कि इस परम भक्त को उसके परिवार ने गणेश जी की भक्ति के चलते उनकी मूर्ती सहित जंगल में फेंक दिया था. जहां उसने केवल गणपति का स्मरण करते हुए समय बिता दिया था. इससे प्रसन्न गणेश जी ने उसे इस स्थान पर दर्शन दिया.
वरदविनायक मंदिर
यह मंदिर रायगढ़ के कोल्हापुर में हैं. मान्यता के अनुसार वरदविनायक भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण होने का वरदान देते हैं.
चिंतामणी मंदिर
यह मंदिर तीन नदियों भीम, मुला और मुथा के संगम पर थेऊर गांव में स्थित है. ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा से भगवान गणपति मन की उलझनों को दूर कर शांति प्रदान करते हैं. एक कथा के अनुसार यहां स्वयं भगवान ब्रह्मा ने अपने विचलित मन को शांत करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी. यह भी पढ़ें- गणेशोत्सव 2018: हैरान करने वाला लेकिन सच- कनिपक्कम गणपति की ये मूर्ति हर दिन बदलती है आकार !
गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर
गिरिजात्मज का अर्थ है गिरिजा के आत्मज, यानी मां पार्वती के पुत्र. यह मंदिर यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित लेण्याद्री गांव में है. यह लेण्याद्री पहाड़ पर बौद्ध गुफाओं में है. इस पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाएं हैं जिसमें से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है. इन् गुफाओं को गणेश गुफा भी कहा जाता है.
विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिर
यह मंदिर पुणे-नासिक रोड पर करीब 85 किलोमीटर दूरी पर ओझर जिले के जूनर क्षेत्र में स्थित है. मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान गणेश ने विघनासुर नाम के असुर का वध किया था. तभी से यह मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहार के रूप में जाना जाता है. यह भी पढ़ें- गणपति बाप्पा के आगमन का इंतजार मुंबई में ही नहीं विदेशों में भी, भेजी जा रहीं है बाप्पा की मूर्तियां
महागणपति मंदिर
यह मंदिर पुणे के राजणगांव में स्थित है. महागणपति जी मंदिर का इतिहास 9वीं व 10वीं सदी के बीच का माना जाता है. महागणपति जी के मंदिर का प्रवेश द्वार कि बहुत विशाल और सुन्दर है. भगवान श्री गणपति की मूर्ति को माहोतक नाम से भी जाना जाता है क्योंकि भगवान श्री गणपति जी की मूर्ति के 10 सूंड़ और 20 हाथ हैं. श्री अष्टविनायक गणपति स्वरूपों में महागणपति गणेश जी का सबसे शक्तिशाली स्वरूप है.