Dholkal Ganesh Temple: आज पूरे देश में गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) का उत्सव मनाया जा रहा है. इस दस दिवसीय गणेशोत्सव (Ganeshotsav) का समापन 2 सितंबर को अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) के दिन गणपति विसर्जन (Ganpati Visarjan) के साथ होगा. गणेश चतुर्थी पर भक्त अपने घरों में भगवान गणेश (Lord Ganesha) की प्रतिमाओं को स्थापित करते हैं और दस दिनों तक उनकी उपासना करते हैं. इस दौरान कई भक्त गणपति के विभिन्न मंदिरों में दर्शन के लिए भी जाते हैं और प्रथम पूजनीय गणेश की महिमा का इस उत्सव के दौरान गुणगान किया जाता है. गणेश चतुर्थी के इस पावन अवसर पर हम आपको 10वीं शताब्दी के एक प्राचीन गणेश मंदिर की महिमा से बारे में बताते हैं, जिसे ढोलकल गणेश (Dholkal Ganesh) कहा जाता है और इसकी कथा एकदंत से जुड़ी हुई है.
भारतीव वन सेवा अधिकारी प्रवीण कास्वां (Parveen Kaswan) ने गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर ढोलकल गणेश की तस्वीर शेयर की है. इसके साथ ही कैप्शन लिखा है- जहां भगवान गणेश शांत वातावरण में बैठते हैं. बस्तर वन में 11 सौ साल पुरानी गणेश की मूर्ति नागवंशी राजवंश के समय बनाई गई थी. प्रतिमा ढोल के आकार की है और पहाड़ की चोटी पर स्थित है, जो कि जंगल के भीतर करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
देखें तस्वीर
Where the lord #Ganesha sits in calm atmosphere. 1100 year old Ganesha idol in Bastar #forest. The idol, made during the time of Nagvanshi dynasty, is placed atop a ‘dhol’ shaped hill that lies 14 km inside the forest. #GaneshChaturthi pic.twitter.com/jYYYeUUB5k
— Parveen Kaswan, IFS (@ParveenKaswan) August 22, 2020
3 हजार फीट की ऊंचाई पर है स्थित
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दंतेवाड़ा जिले (Dantewara) में स्थित भगवान गणपति का यह प्राचीन मंदिर बैलाडिला की ढोलकल पहाड़ी पर स्थित है. कहा जाता है कि समुद्र तल से करीब तीन हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद इस प्राचीन मंदिर में विराजमान गणेश जी की प्रतिमा ढोलक के आकार की है, इसलिए इस पहाड़ी का नाम ढोलकल पड़ा. यह भी पढ़ें: Ganesh Chaturthi 2020 Celebrations: श्री सिद्धिविनायक मंदिर की आरती से लेकर ड्राई फ्रूट से बने गणपति बप्पा तक, देखें देश में कैसे मनाया जा रहा है गणेशोत्सव (Watch Pics & Videos)
परशुराम-गणेश के बीच हुआ था युद्ध
इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी पहाड़ी पर भगवान गणेश और परशुराम जी के बीच युद्ध हुआ था. इस युद्ध में परशुराम जी के फरसे से गणेश जी का एक दांत टूट गया था, जिसके चलते वे एकदंत कहलाए. इस पहाड़ी के शिखर के नीचे स्थित गांव का नाम परशुराम जी के फरसे के आधार पर फरसपाल रखा गया.
10 वीं शताब्दी में बना था यह मंदिर
पुरातत्व विभाग के मुताबिक, ढोलकल पर ललितासन मुद्रा में विराजमान गणेश जी की दुर्लभ प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है. कहा जाता है कि 10वीं और 11वीं शताब्दी के बीच छिंदक नागवंशी राजाओं ने ढोलकल गणेश मंदिर का निर्माण कराया था. जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से 13 किमी दूर स्थित यह खूबसूरत जगह उन प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग है जो हरी भरी पहाड़ियों के बीच ट्रेकिंग करना पसंद करते हैं.