Eid-al-Fitr 2020: रमजान (Ramadan) का पाक माह संपूर्णता की ओर अग्रसर है. चांद के अनुसार ईद 2020 (Eid 2020) की तिथि तय हो जाएगी और फिर बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के चेहरों पर ईद की खुशियां मुस्कान बनकर खिल उठेंगी, हालांकि इस बार कोरोना वायरस के प्रकोप (Coronavirus Outbreak) के चलते सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) और लॉकडाउन (Lockdown) जैसे प्रतिबंधों ने रमजान के रोजे से लेकर ईद की खुशियों पर तुषारापात किया है, लेकिन दुनिया भर में व्याप्त कोविड-19 (COVID-19) की विभीषिका को देखते हुए पर्व पर लगे प्रतिबंधों को स्वीकारना मजबूरी भी है और जरूरी भी, क्योंकि ईद खुशियों का त्योहार है और खुशियां परिवार व समाज से मिलती हैं.
सोशल नेटवर्क पर दें ईद की बधाइयां!
इस्लाम के पवित्र मास रमजान (Ramzan) के पूरा होने के बाद ईद का त्योहार (Festival of Eid) बड़ी धूमधाम से मनाने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. चंद्रोदय की स्थिति को देखते हुए माना जा रहा है कि इस वर्ष मीठी ईद 23 या 24 मई को मनाई जाएगी. इस्लाम धर्म में ईद को बरकतों और रहमतों का पर्व माना गया है. रमजान माह पूरा होने की खुशी में अगली सुबह होनेवाली खास नमाज के बाद घरों में मीठी सेवइयां बनाई जाती हैं और लोग एक दूसरे को ईद की बधाई देते हैं. हालांकि, इस साल कोरोना वायरस के लॉकडाउन होने के कारण, घरों में ही ईद की नमाज अदा करनी होगी, ईद की बधाइयां फोन और सोशल नेटवर्क पर ही देना होगा.
कब और क्यों मनाते हैं ईद?
इस्लाम के नौंवे महीने रमजान के बाद 10वें शव्वाल की पहली तारीख को चांद देखने के बाद ईद मनाई जाती है. साल में दो बार ईद का पर्व मनाया जाता है, पहली ईद को ‘मीठी ईद', एवं दूसरी को ‘ईद उल जुहा' यानी ‘बकरीद’ कहते हैं. इस्लाम धर्म के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद साहब द्वारा ‘जंग ए बदर' में जीत दर्ज करने के बाद से ही ईद मनाने की शुरुआत हुई. यह भी पढ़ें: Shab-e-Qadr Mubarak 2020 Wishes & Images: शब-ए-कद्र की दें अपनों को मुबारकबाद, भेजें ये आकर्षक WhatsApp Status, GIF Greetings, Quotes, Shayari, Photo SMS और एचडी वॉलपेपर्स
रमजान और जकात
ईद से पूर्व रमजान के पूरे मास मुस्लिम समुदाय निर्जल और निराहार रहकर रोजा (उपवास) रखते हैं. इस माह दान-पुण्य की भी परंपरा होती है. इस्लाम में दान को ‘जकात’ (फितरा) कहते हैं, जो मुख्यत गरीबों को दिया जाता है.
क्यों जरूरी है जकात?
रमजान में रोजा-नमाज और कुरआन की तिलावत (कुरआन पढ़ने) के साथ जकात और फितरा (दान) देने का भी काफी महत्व है. इस्लाम में रमजान के पाक माह में हर हैसियतमंद मुसलमान को जकात देना जरूरी बताया गया है. पूरे साल की आमदनी से जो बचत होती है, उसका 2.5 फीसदी हिस्सा किसी गरीब या जरूरतमंद को दिया जाता है, जिसे ‘जकात’ कहते हैं. अर्थात अगर किसी मुसलमान के पास तमाम खर्च करने के बाद 100 रुपये बचते हैं तो उसमें से 2.5 रुपये किसी गरीब को देना जरूरी होता है.