Durva Ashtami 2020: देवताओं में प्रथम पूजनीय भगवान गणेश (Lord Ganesha) की उपासना का दस दिवसीय उत्सव गणेशोत्सव (Ganeshotsav) मनाया जा रहा है. पूरे दस दिन तक भक्त गणपति बप्पा (Ganpati Bappa) की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और भगवान गणेश भी अपने भक्तों के सभी संकटों को दूर कर उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं. गणेशोत्सव के दौरान जहां गणेश जी की माता ज्येष्ठा गौरी (Jyeshtha Gauri) का आह्वान किया जाता है तो वहीं भाद्रपद शुक्ल की अष्टमी तिथि को दूर्वा अष्टमी (Durva Ashtami) भी मनाई जाती है. दूर्वा घास (Durva Grass) भगवान गणेश को अतिप्रिय है, इसलिए उनके पूजन में दूर्वा घास का उपयोग किया जाता है. इस साल दूर्वा अष्टमी का पर्व 25 अगस्त 2020 (आज) मनाया जा रहा है. चलिए जानते हैं दूर्वा अष्टमी का शुभ मुहूर्त, पूजा अनुष्ठान और इस दिवस का महत्व.
दूर्वा अष्टमी तिथि और शुभ मुहूर्त
दूर्वा अष्टमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है और इस साल यह पावन तिथि 25 अगस्त 2020 को पड़ रही है. दृक पंचांग के अनुसार अष्टमी तिथि 25 अगस्त यानी आज दोपहर 12.21 बजे से शुरू हो रही है और 26 अगस्त को सुबह 10.39 बजे इस तिथि का समापन होगा.
अष्टमी तिथि प्रारंभ- 25 अगस्त दोपहर 12:21 बजे से,
अष्टमी तिथि समाप्त- 26 अगस्त सुबह 10.39 बजे तक.
पूजा का शुभ मुहूर्त- 25 अगस्त दोपहर 12.21 बजे से शाम 06.50 बजे तक.
कुल अवधि- 6 घंटे 30 मिनट यह भी पढ़ें: Jyeshtha Gauri Pujan 2020: जानें भगवान गणेश की माता ज्येष्ठा गौरी के आह्वान का पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और इस उत्सव का महत्व
दूर्वा अष्टमी का महत्व
हिंदू संस्कृति में दूर्वा घास का धार्मिक महत्व बताया जाता है. भगवान गणेश के अतिप्रिय दूर्वा घास को समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इससे जुड़ी प्रचलित मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु की भुजा से गिरे बालों की कुछ किस्में दूर्वा घास बन गईं. दूर्वा के बारे में कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के बाद देवता अमृत ले जा रहे थे, तब अमृत की कुछ बूंदे दूर्वा पर गिरी थीं. मान्यता है कि दूर्वा अष्टमी के दिन दूर्वा की पूजा करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस दिन लोग कच्चे आहार लेते हैं, ताकि वे सभी पापों से मुक्त हो सकें. इस दिन महिलाएं भी व्रत रखकर दूर्वा अष्टमी की पूजा करती हैं.
दूर्वा घास के लिए विशेष अनुष्ठान और पूजा का आयोजन किया जाता है. दूर्वा अष्टमी के दिन फूल, फल, अक्षत, दही, धूप-दीप इत्यादि से दूर्वा की पूजा की जाती है. महिलाएं अपने सुखी वैवाहिक जीवन और संतान की लंबी उम्र की कामना से इस दिन व्रत रखकर दूर्वा पूजन करती हैं. कहा जाता है कि जो धार्मिक रूप से दूर्वा अष्टमी पूजा का पालन करता है, उसे अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए युगों-युगों तक सम्मानित किया जाता रहा है.