Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Punyatithi 2022 Quotes: देश के पहले उप-राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan) की आज यानी 17 अप्रैल 2022 को 47वीं पुण्यतिथि (Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Death Anniversary) मनाई जा रही है. लंबी बीमारी के कारण 17 अप्रैल 1975 को उन्होंने अंतिम सांस ली थी. वे 20वीं सदी के सबसे महान विद्वानों में से एक थे और अंग्रेजों ने उन्हें सर की उपाधि से नवाजा था, लेकिन उन्होंने कभी भी इस उपाधि को अपने नाम के साथ नहीं जोड़ा. आजाद भारत के पहले उप-राष्ट्रपति का जन्म 5 सितंबर 1888 को मद्रास में हुआ था. उनके जन्मदिवस को देशभर में शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है. साल 1954 में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के द्वारा उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया. इसके अलावा उन्हें 27 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था. उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्ण योगदान दिया था, जिसके चलते साल 1962 में उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया गया.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारतीय संस्कृति का संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद और महान दार्शनिक माना जाता है. वो जितने बड़े विद्वान थे, उनके विचार उतने ही महान थे, जो आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की पुण्यतिथि पर आप अपने दोस्तों-रिश्तेदारों और करीबियों के साथ उनके ये 10 महान विचार शेयर कर सकते हैं. उनके इन विचारों से आप अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा ले सकते हैं और इससे दूसरे भी प्रेरित हो सकते हैं.
1- ज्ञान हमें शक्ति देता है, प्रेम हमें परिपूर्णता देता है.
2- शिक्षा का परिणाम एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए, जो ऐसिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के विरुद्ध लड़ सके.
3- किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है.
4- भगवान की पूजा नहीं होती, बल्कि उन लोगों की पूजा होती है जो उनके नाम पर बोलने का दावा करते हैं.
5- शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाली कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे.
6- जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक महान जीवन का सपना है.
7- सच्चा गुरु वो होता है, जो हमें खुद के बारे में सोचने में मदद करता है.
8- पवित्र आत्मा वाले लोग इतिहास के बाहर खड़े होकर भी इतिहास रच देते हैं.
9- जब हम यह सोचते हैं कि हम सब जानते हैं तो हमारा सीखना बंद हो जाता है.
10- पुस्तकें वह माध्यम हैं, जिनके जरिए विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण किया जा सकता है.
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने हेल्पेज इंडिया के नाम से एक एनजीओ की स्थापना की थी, जिसके जरिए गरीब बुजुर्गों और जरूरतमंदों की मदद की जाती थी. कहा जाता है कि जब वो भारत के राष्ट्रपति बने तो वो अपनी 10 हजार की सैलरी में से केवल ढाई हजार की सैलरी लेते थे और बाकी के पैसे वे प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में हर महीने दान किया करते थे. वे एक मेधावी छात्र थे, इसलिए उन्हें स्कॉलरशिप मिलती रही. एमए पूरा करने के बाद उन्हें मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में नौकरी मिली और उन्होंने यहां 7 सालों तक दर्शनशास्त्र पढ़ाया. उन्होंने जिस कॉलेज से एमए की डिग्री ली थी, उसी कॉलेज में उन्हें कुलपति भी बनाया गया था.