Diwali 2019 Narak Chaturdashi: श्रीकृष्ण की 14 हजार पटरानियों का राज! क्यों करती हैं इस दिन स्त्रियां सोलह श्रृंगार!
नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व चंद्रोदय या अरुणोदय होने पर तेल अभ्यंग (मालिश)और यम तर्पण करने की परंपरा है. (Photo Credits: Pixabay)

Diwali Narak Chaturdashi 2019: मुख्य दीपावली से एक दिन पूर्व यानी कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है. इसे छोटी दीपावली के रूप में भी देखा जाता है. मान्यतानुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण, यमराज और बजरंगबली हनुमान जी की भी पूजा-अर्चना होती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 26 अक्टूबर शनिवार के दिन नरक चतुर्दशी सम्पन्न होगी. कहा जाता है कि इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करने मनुष्य नरक में मिलने वाले कष्टों के भय से मुक्त हो जाता है. आइये जानें नरक चतुर्दशी से जुड़ी कुछ अन्य बातें

नरक चतुर्दशी को मुक्ति पर्व के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का संहार कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन किया था, इसीलिए यह दिन नरक चतुर्दशी के नाम से लोकप्रिय हुआ. पुराणों के अनुसार इस दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने का विशेष महात्म्य है. ऐसा करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता.

नरकासुर की यातना से देव-दैत्य सभी थे त्रस्त:

श्रीविष्णु पुराण के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस की असीमित एवं मायावी शक्ति के दुरुपयोग से देवी, देवता, ऋषि-मुनियों के साथ-साथ मानव भी दुःखी थे. कहा जाता है कि नरकासुर ने छल-बल से ऋषि-मुनियों की 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बना रखा था. जब उसकी प्रताड़ना बहुत ज्यादा बढ़ गयी तो ऋषि-मुनियों और सभी देवतागण त्राहिमाम्-त्राहिमाम् करते हुए भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे. श्रीकृष्ण को पता था कि नरकासुर का वध केवल एक स्त्री ही कर सकती है. अंततः श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और नरकासुर से युद्ध कर उसका वध किया. कहा जाता है कि जिस दिन नरकासुर श्रीकृष्ण को कोशिशों से मारा गया था, उस दिन कार्तिक मास का कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का दिन था.

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कहां से आईं श्रीकृष्ण की 16 हजार पटरानियां:

नरकासुर का संहार करने के पश्चात श्रीकृष्ण ने ऋषि-मुनियों की 16 हजार स्त्रियों को नरकासुर की कैद मुक्त करवाया. मुक्ति के बाद उन स्त्रियों ने श्रीकृष्ण से कहा कि नरकासुर की कैद से निकलने के बाद उनका समाज उन्हें स्वीकारेगा नहीं तो अब वे कहां जाएं. आप कृपया करके हमें हमारा सम्मान दिलवाएं. तब श्रीकृष्ण ने सत्यभामा की स्वीकृति लेकर उन सभी 16 हजार स्त्रियों से विवाह कर लिया. नरकासुर के वध और सोहल हजार कन्याओं की मुक्ति की खुशी के उपलक्ष्य में घर-घर दीपदान की परंपरा की शुरुआत हुई.

क्यों करती हैं महिलाएं सोलह श्रृंगार:

श्रीकृष्ण ने 16 हजार कन्याओं को अपनी पटरानियां बनाकर उनका उद्धार किया था, इस खुशी में इस दिन सभी स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं. इस दिन को रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन जल में सौंदर्य औषधि मिलाकर स्नान करने और 16 श्रृंगार करने से सौंदर्य एवं सौभाग्य में वृद्धि होती है.

तो नरक का भय खत्म हो जाता है:

नरक चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान करने का विशेष महत्व है. मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता. ऐसी धारणा है कि पूरे कार्तिक मास तक शरीर पर किसी भी तरह का तेल नहीं लगाना चाहिए. लेकिन इसके बावजूद नरकासुर के दिन तेल लगाकर स्नान की परंपरा बहुत पुरानी है. स्नान के पश्चात धुले हुए अथवा नये वस्त्र पहनकर दक्षिण की ओर मुंह करके निम्नलिखित मंत्रोच्चारण करते हुए प्रत्येक नाम से तिलयुक्त 3-3 तिलांजलि देते हुए यम का तर्पण करना चाहिए. ऐसा करने से वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं.

कृपया मंत्रों का जाप इसी क्रम में करें:

ॐ यमाय नमः, ॐ धर्मराजाय नमः, ॐ मृत्यवे नमः, ॐ अन्तकाय नमः, ॐ वैवस्वताय नमः, ॐ कालाय नमः, ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः, ॐ औदुम्बराय नमः, ॐ दध्नाय नमः, ॐ नीलाय नमः, ॐ परमेष्ठिने नमः ॐ वृकोदराय नमः, ॐ चित्राय नमः, ॐ चित्रगुप्ताय नमः

नरक चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व तिल्ली के तेल से शरीर में मालिश की जाती है और पानी में चिचड़ी (एक आयुर्वेदिक पत्ती) का पत्ता डालकर स्नान करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से छुटकारा मिलता है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस बार नरक चतुर्दशी 26 अक्टूबर 2019 को पड़ रहा है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.