Dev Uthani Ekadashi 2019: सालभर में 24 एकादशियां मनाई जाती हैं, जिनमें से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) का विशेष महत्व है. इस पावन तिथि को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं. यह भगवान विष्णु के जागने की तिथि है इसलिए इसे देवउठनी एकादशी, प्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस के नाम से जाना जाता है. इस तिथि पर भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) और तुलसी माता (Tulsi Mata) की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा कि स्वामी आप या तो दिन-रात जागते हैं या फिर लाखों-करोड़ों वर्ष तक निद्रा में ही रहते हैं. आपके ऐसा करने पर संसार के प्राणियों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है, इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप नियम से हर साल निद्रा लिया करें.
लक्ष्मी जी की बात सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि आज से मैं हर साल 4 महीने के लिए वर्षा ऋतु में शयन करुंगा. मेरी यह अल्प निद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी सिद्ध होगी. चलिए जानते हैं देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और इसका महत्व.
देवउठनी एकादशी मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ- 7 नवबंर 2019 (गुरुवार) सुबह 09.55 बजे से,
एकादशी तिथि समाप्त- 8 नवंबर 2019 (शुक्रवार) दोपहर 12.24 बजे तक.
व्रत के पारण तिथि- 9 नवंबर 2019 (शनिवार) सुबह 06.39 बजे से सुबह 08.50 बजे तक.
व्रत कथा-
प्राचीन समय में एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत करते थे. राजा ने यह घोषणा की थी कि एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं ग्रहण करेगा और केवल फलाहार किया जा सकेगा. यहां तक कि पशुओं को भी एकादशी के दिन चारा नहीं दिया जाता था. दरअसल, राजा को एक महात्मा जी ने बताया था कि एकादशी का व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, लेकिन राजा ने महात्मा की अधूरी बात ही सुनी. राजा ने सोचा कि क्यों न एकादशी का व्रत रखकर खुद को और प्रजा को मोक्ष दिलाया जाए, इसलिए राजा ने एकादशी व्रत का कठोर नियम अपनी प्रजा और पशुओं पर लागू किया था. यह भी पढ़ें: Dev Uthani Ekadashi 2019: देवउठनी एकादशी कब है? श्रीहरि के योग निद्रा से जागते ही शुरू हो जाएंगे सभी मांगलिक कार्य, जानें महत्व, शुभ मुहूर्त, मंत्र और पूजा विधि
एक दिन दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आया और उनसे नौकरी पर रखने का आग्रह किया. दयालु राजा ने उसे नौकरी तो दे दी, लेकिन उसके सामने एक शर्त रखी कि एकादशी के दिन उसे खाने को अन्न नहीं मिलेगा. बेरोजगार व्यक्ति ने नौकरी के लिए राजा की शर्तों को मानने के लिए हामी भर दी. जब एकादशी तिथि आई और उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने पहुंचकर गिड़गिड़ाने लगा. वो बोला-महाराज इससे मेरा पेट नहीं भरेगा. मैं भूखा ही मर जाऊंगा, कृपया मुझे खाने के लिए अन्न दीजिए.
उस व्यक्ति को राजा ने अपनी शर्त याद दिलाई, लेकिन वह व्यक्ति अन्न के लिए गिड़गिड़ाता रहा और उसने राजा से कहा कि अगर वो भूख से मर गया तो राजा को इसका दोष लगेगा. मजबूरन राजा ने उसे खाने के लिए अन्न दे दिया. वह रोज की तरह नदी पर पहुंचा. स्नान करके भोजन पकाया और फिर भगवान से आग्रह करते हुए बोला कि आओ भगवान भोजन तैयार है. भगवान चतुर्भुज रूप में आए, उन्होंने प्रेम से भोजन किया और फिर अंतर्ध्यान हो गए. फिर वह आदमी अपने काम पर चला गया.
पंद्रह दिन बाद एक बार फिर से एकादशी आई. इस बार उसने राजा से दोगुने अन्न की मांग की. राजा ने कारण पूछा तो उसने राजा से कहा कि उसके साथ भगवान भी भोजन ग्रहण करते हैं, इसलिए हम दोनों के लिए सामग्री कम पड़ जाती है. उस व्यक्ति ने कहा कि वो पिछली एकादशी को भूखा ही रह गया था. उस व्यक्ति की बात सुनकर राजा को लगा कि वह बहुत बड़ा पेटू है और भगवान के नाम पर अन्न मांग रहा है. हालांकि राजा ने उसे दोगुना अन्न दे दिया. अगली बार फिर 15 दिन बाद एकादशी आई और उस व्यक्ति ने राजा से इस बार पिछली एकादशी से भी दोगुना अन्न मांगा. इस बार भी उसने यही कहा कि उसके साथ भगवान भोजन करते हैं, इसलिए उसके लिए भोजन कम पड़ जाता है.
उस व्यक्ति की बात सुनकर राजा को क्रोध आ गया. राजा व्यक्ति से बोला कि मैं मान ही नहीं सकता कि भगवान तुम्हारे साथ भोजन करते हैं. मैं भी एकादशी का व्रत करता हूं और पूजा करता हूं, लेकिन भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए और तुम जैसे पेटू के साथ भोजन करते हैं यह मैं नहीं मान सकता. राजा की बात सुनकर व्यक्ति ने कहा कि अगर आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो आप खुद ही देख लीजिए. राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया. उस व्यक्ति ने भोजन बनाया और भगवान को पुकारता रहा. पुकारते-पुकारते शाम हो गई, लेकिन भगवान नहीं आए.
उस व्यक्ति ने कहा कि भगवान अगर आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर जान दे दूंगा, फिर भी भगवान नहीं आए और उसने जान देने के लिए नदी में छलांग लगाई, लेकिन भगवान ने उसके हाथ पकड़ लिए. इसके बाद भगवान ने उसके साथ भोजन किया और वहां से जाने लगे, तभी राजा वहां पहुंचा और भगवान के पैरों में लोट गया. उसने पूछा मैं एकादशी का व्रत करता हूं और पूजा-पाठ करता हूं फिर भी आपने कभी दर्शन नहीं दिए, जबकि एकादशी के दिन अन्न खाने वाले व्यक्ति के साथ आप स्वयं भोजन करते हैं.
भगवान ने समझाया कि मुझे सुख तुम्हारे शरीर के कष्ट से नहीं मिलता है. अगर तुम शुद्ध मन से व्रत-उपवास करते हो तब मैं भी भूख की पीड़ा महसूस करता हूं और तुम्हें अन्न की कमी न हो इसका प्रबंध करता हूं. भगवान ने कहा कि अगर बंधन समझकर पूजा करोगे तो फिर मुझे इससे दूर ही रखो. भक्त मुझे बंधन में बांध सकते हैं, लेकिन बल से नहीं केवल अपने भाव से. राजा को भगवान की इस बात से बड़ी सीख मिली और वह सिर्फ तन ही नहीं, बल्कि मन से भी एकादशी का व्रत करने लगा. यह भी पढ़ें: Dev Uthani Ekadashi 2019: भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए देवउठनी एकादशी के दिन करें ये उपाय, बचें इन गलतियों से
पूजा विधि
- एकादशी तिथि को सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र पहनें.
- पूजा स्थल पर एक साफ चौकी बिछाकर उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं.
- इसके बाद उस चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्थापित करें.
- अब भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं और उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं.
- फिर उन्हें पीले फूल, नैवेद्य, पीले फल, पीली मिठाई, बेर और गन्ना अर्पित करें.
- पुष्प, धूप, दीप, चंदन इत्यादि से विधिवत भगवान विष्णु का पूजन करें.
- रात के समय पूजा स्थल और घर के बाहर एक दीपक जरूर जलाएं.
- देवउठनी एकादशी की कथा पढ़ें या सुने, मंत्रोपचार करें और अंत में उनकी आरती करें.
- देवउठनी एकादशी के दिन रात्रि जागरण कर, भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करें.
- द्वादशी तिथि को किसी ब्राह्मण को मिष्ठान्न और दक्षिणा देकर अपना व्रत खोलें.
देवउठनी एकादशी का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आषाढ मास की देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में योग निद्रा के लिए चले जाते हैं. इस दौरान सभी मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. जब चार महीने बाद भगवान विष्णु जागते हैं तभी मांगलिक कार्य शुरू होते है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं. इस दिन उपवास रखा जाता है और विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है, इसलिए उनकी पूजा और अर्पित किए जाने वाले भोग में तुलसी दल का इस्तेमाल किया जाता है.