Chhath Puja 2019 Vrat: यदि कहा जाये कि हिंदुओं का साल का अंतिम बड़ा पर्व छठ है तो गलत नहीं होगा. छठ का यह पर्व कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी के दिन मनाया जाता है. चार दिनों तक चलने वाले पर्व छठ-पूजा के व्रत में जो अधिकांशतया महिलाएं ही करती हैं, सूर्यदेव की पूजा-अर्चना की जाती है. एक समय था, जब यह बिहार प्रदेश का स्थानीय पर्व समझा जाता था, लेकिन ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में आज संपूर्ण भारत में छठ का यह पर्व काफी वृहद पैमाने पर मनाया जाता है. इसकी धूम कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से ही दिखने लगती है. सप्तमी के दिन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही छठ का यह पर्व सम्पन्न होता है. पौराणिक ग्रंथों में छठ माता को सूर्यदेव की बहन बताया जाता है. इसलिए ऐसा विश्वास है कि इस पर्व में सूर्यदेव की पूजा करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं और घर- परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है. हालांकि यह व्रत पुत्र के लिए किया जाता है.
सूर्योपासना का यह पर्व वास्तव में साल में दो बार सेलीब्रेट किया जाता है. पहला छठ चैत्र मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी को मनाते हैं और दूसरा कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी को. यद्यपि कार्तिक मास में मनाया जाने वाला छठ ही मुख्य पर्व माना जाता है. ‘छठ पूजा’ की जगह कहीं ‘छठी माई’ तो कहीं ‘छठ माई’ और कहीं सूर्य षष्ठी’ कहा जाता है. संभवतया ऐसा विभिन्न स्थानों की भाषा में हुए परिवर्तन से अपभ्रंश के कारण ऐसा होता है.
कौन हैं छठ माई
छठ माता के संदर्भ में कुछ भ्रांतियां है. कुछ लोग उन्हें सूर्यदेव की बहन मानते हैं तो छठ की पारंपरिक कहानी में छठ को सूर्य की बेटी बताया गया है, जिनका नाम देवसेना उल्लेखित है. पारंपरिक कथा के एक प्रसंग में देवसेना कहती हैं कि यदि आप संतान चाहते हैं तो तो आप मेरी पूरे विधि-विधान के साथ आऱाधना कीजिये, आपको संतान की प्राप्ति अवश्य होगी. हांलाकि छठ पूजा को त्रेतायुग में श्रीराम के अयोध्या वापसी के पश्चात माता सीता कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना करती हैं,’ के नजरिये से भी देखा जाता है, वहीं द्वापर युग में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना से पुत्र (कर्ण) की प्राप्ति के संदर्भ से भी इसे देखा जाता है. क्योंकि कर्ण भी सूर्यदेव के कट्टर उपासक थे. वे भी प्रातःकाल उठकर काफी देर देर तक जल में खड़े होकर सूर्य की पूजा करते थे. सूर्य का भी कर्ण के प्रति मोह भी कुछ ज्यादा था, इसलिए अकसर वे कर्ण की सहायता करते थे. इसीलिए छठ पूजा में भी व्रती नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं.
चार दिनों का है पर्व
छठ पूजा का यह पर्व चार दिनों तक चलता है. पहले दिन यानी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी के दिन ‘नहाय खाय’ के नाम से लोकप्रिय है. कहा जाता है कि चतुर्थी के दिन उपवासी महिलाएं स्नानादि कर नये वस्त्र पहनती हैं, और शाकाहारी भोजन ही करती हैं. चतुर्थी के दिन भी पहला भोजन उपवास रखने वाली महिला करती हैं बाद में घर के बाकी सदस्य भोजन करते हैं. छठ पूजा के दूसरे दिन अर्थात पंचमी को पूरे दिन उपवासी महिला व्रत रखती हैं. सायंकाल सूर्योदय के पश्चात बखीर (गुड़ और चावल की खीर) ‘खाकर’ उपवास तोड़ा जाता है. इस दिन किसी भी तरह का नमक और शक्कर का सेवन वर्जित होता है. कहीं-कहीं पारंपरिक रूप से रोटी में घी लगाकर प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है. इसे खरना कहा जाता है. इसके पश्चात षष्ठी के दिन मुख्य पर्व छठ का प्रसाद बनाया जाता है. इसमें आटे और शक्कर का बना ‘ठेकुआ’ (टिकरी) बहुत लोकप्रिय प्रसाद होता है. इसके अलावा चावल के लड्डू भी बनाये जाते हैं. ठेकुआ, चावल के लड्डू, केला, सेब, गन्ना ये सभी प्रसाद के तौर पर बांस से बनी टोकरी में सजा कर नदी किनारे ले जाया जाता है. आजकल छठ के लिए आर्टिफीसियल सरोवर भी बनाए जाते हैं, ताकि कम से कम गंदगी हो. इस समय व्रती महिलाएं सूर्यास्त से पूर्व नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं और सूर्य की पूजा-अर्चना की जाती है.
इसके अगले दिन यानी सप्तमी की सूबह सूर्योदय से पूर्व व्रती नदी अथवा सरोवर में जाकर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस पूजा में महिलाएं पूरे मांग में पीले रंग का सिंदूर भरती हैं. इसके पश्चात टोकरी में जो प्रसाद ले जाया गया होता है उसे लोगों में बांट दिया जाता है. और इस तरह छठ मइया का यह उत्सव यहीं सम्पन्न होता है.
छठ पूजा पर्व तिथि व शुभ मुहूर्त 2019
छठ पूजा 2 नवंबर, 2019
षष्ठी के दिन सूर्योदय – 06:33
षष्ठी के दिन सूर्यास्त – 17:35
षष्ठी तिथि आरंभ – 00:51 (2 नवंबर 2019)
षष्ठी तिथि समाप्त – 01:31 (3 नवंबर 2019)
पारंपरिक कथा
प्राचीनकाल में प्रियव्रत नाम के एक राजा थे. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. विवाह के लंबे समय तक संतान नहीं होने से वे पति-पत्नी बहुत दुःखी रहते थे. एक दिन संतान की चाहत के लिए महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया गया. इसके बाद रानी गर्भवती हो गईं.
लेकिन नौ माह बाद रानी को मृत संतान पैदा हुई. यह जानकर राजा और रानी दोनों को बहुत दुःख हुआ. संतान के शोक में राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की, तभी उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं. देवी ने कहा कि मैं षष्टी देवी हूं. मेरी कृपा से निसंतानों को संतान सुख प्राप्त होता है, यही नहीं अगर मेरी सच्ची पूजा की जाये तो मैं भक्त की हर मनोकामनाएं पूरी करती हूं. यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें भी पुत्र-रत्न प्रदान करूंगी. देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया.
राजा-रानी ने कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी को षष्ठी पूरे विधि-विधान से पूजा की. परिणामस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई. तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा. एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा. इसके प्रभाव से उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया.