Chaitra Navratri 2020: आज करें रौद्र रूपा मां कालरात्रि की पूजा! विधिवत साधना से मिलती है तंत्र साधना की सिद्धी
प्रतीकात्मक तस्वीर

Maa Kalratri Puja: चैत्र शुक्लपक्ष की सप्तमी को माँ दुर्गा के सातवें स्वरूप माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है. माँ कालरात्रि का रंग घना काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा गया है. देवी पुराण में उल्लेखित है कि असुरों के राजा रक्तबीज का वध करने के लिए माँ दुर्गा ने अपने तेज-पुंज से कालरात्रि को प्रकाट्य किया था. मान्यता है कि माता कालरात्रि की पूजा करके मनुष्य समस्त सिद्धियां प्राप्त करता है. माता कालरात्रि पराशक्तियों (काला जादू) की साधना करने वालों के बीच बहुत प्रसिद्ध हैं. इनकी पूजा-अर्चना से दुष्टों का नाश होता है और बुरे ग्रह एवं बाधाएं दूर होती हैं. इस बार 31 मार्च 2020 यानि आज के दिन माँ कालरात्रि की पूजा होगी. जानें कौन हैं माँ कालरात्रि!

माँ कालरात्रि का स्वरूप

देवी पुराण के अनुसार माँ कालरात्रि के तीन नेत्र हैं, जो ब्रह्मांड की तरह गोल माने जाते हैं. इनका स्वरूप काल को भी भयभीत करने वाला होता है. कालरात्रि के गले में विद्युत की माला है तथा इनके केश खुले होते हैं. ये गर्दभ की सवारी करती हैं. इऩके एक हाथ में मानव का कटा हुआ सिर है, जिससे निरंतर रक्त टपकता है. देवी कालरात्रि दुष्टों का विनाश करती हैं.

महात्म्य

मान्यता है कि भूत, प्रेत एवं राक्षस आदि इनके स्मरण मात्र से भयभीत होकर भाग जाते हैं. माँ कालरात्रि की पूजा करने वालों को अग्नि, जल जंतु, शत्रु, तथा रात्रि आदि से भय नहीं लगता. कालरात्रि का स्वरूप हमारी कर्मेन्द्रियों व ज्ञानेन्द्रियों को नियंत्रण में रखकर सृजनात्मक कार्यों में उद्यत रहने का संदेश प्रदान करता है, और पवित्र व संस्कारमय जीवन जीने की प्रेरणा जगाता है. ये हमारी मेधाशक्ति का विकास करके प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होने, हमारी वासना व तृष्णा को नियंत्रित करने और शांति व समृद्धि प्रदान करने वाली देवी हैं.

पूजा विधि

चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर मां कालरात्रि का स्मरण करे. पूजा करते समय माता को श्रद्धापूर्वक अक्षत, धूप, गंध, पुष्प और गुड़ का नैवेद्य चढ़ाएं. मां कालरात्रि का प्रिय पुष्प रातरानी है, यह फूल उन्हें जरूर अर्पित करें. इसके बाद मां कालरात्रि के निम्नलिखित मंत्रों का जाप अवश्य करें तथा अंत में इनकी आरती करें. मां कालरात्रि की पूजा करने से सारे संकट दूर होते हैं. ध्यान रहे कि आरती और पूजा के समय आपका सिर खुला न रहे, उसे किसी साफ कपड़े से ढंक लें.

मंत्र

1. ओम देवी कालरात्र्यै नमः

2. ज्वाला कराल अति उग्रम शेषा सुर सूदनम।

त्रिशूलम पातु नो भीते भद्रकाली नमोस्तुते।।

पारंपरिक कथा

मां कालरात्रि की उत्पत्ति की कथाकथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था. इससे चिंतित होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास गए. शिवजी माता पार्वती से राक्षसों का वध कर भक्तों की रक्षा करने को कहा. शिवजी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया. परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए. यह देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को प्रकट किया. माँ दुर्गा ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और तुरंत उसका गला काटकर उसका वध कर दिया.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.