Basant Panchami / Saraswati Puja 2020: सर्द मौसम के बाद वातावरण में जब सूर्य देव अपनी सुनहरी किरणें पृथ्वी पर बिखेरते हैं, खेतों में सरसों के पीले फूल प्रकृति में चार चांद लगाते हैं, वृक्षों पर कोयल की कूक, आसमान में पक्षियों की चहचहाहट और रंग-बिरंगे फूलों पर तितलियां मंडराने लगती है तो समझ लीजिए बसंत ऋतु (Spring Season) का आगमन हो चुका है. बसंत पंचमी (Basant Panchami) के साथ माता सरस्वती (Maa Saraswati) का भी गहरा संबंध है. ब्रह्म पुराण के अनुसार इसी दिन वीणावादिनी मां सरस्वती का उद्भव हुआ था. उस समय प्रकृति ने उनका स्वागत बसंती पीले रंगों के साथ किया था. आखिर मां सरस्वती की पूजा-वंदना में पीले परिधान (Yellow Color) और पीले भोजन करने की परंपरा क्यों निभाई जाती है. आइये जानते हैं, बसंती रंग की महिमा क्या दर्शाती है.
बसंत पंचमी के दिन स्त्री, बच्चे, पुरुष सभी पीले रंग के कपड़े पहनते हैं. इन्हीं वस्त्रों में हम सभी विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं. वस्तुतः इस दिन पीले वस्त्र धारण करने की परंपरा बहुत पुरानी है. बसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है. विद्वानों का मानना है कि पीला रंग मौसम के खिलने का प्रतिनिधित्व करता है. यह भी पढ़ें: Basant Panchami/Saraswati Puja 2020: मां सरस्वती की आराधना का पर्व है बसंत पंचमी, इस मुहूर्त में विधि-विधान से करें विद्या की देवी का पूजन, जानें इस पर्व का महत्व
पीला रंग होता है शुभता का प्रतीक
हिंदू धर्म में वैसे भी पीला रंग सर्वाधिक शुभ माना जाता है. जहां तक बसंत पंचमी की बात है तो इस दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है. विद्यार्थी अच्छी शिक्षा प्राप्त करने और सफलता हासिल करने के लिए मां सरस्वती की पूजा-वंदना करते हैं. ज्ञान की देवी सरस्वती बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वाग्देवी, वीणावादनी आदि के नाम से भी जानी जाती हैं. मान्यता है कि प्रकृति को सुर माता सरस्वती की वीणा की झंकार से प्राप्त हुआ था, इसीलिए इन्हें संगीत की देवी भी कहा जाता है. बसंत पंचमी के दिन छात्र-छात्राएं मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं. मान्यता है कि पीले वस्त्र धारण करने से मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं.
मौसम के संतुलन का प्रतीक है बसंत पंचमी
पहले हम बसंत ऋतु की बात करेंगे. बसंत ऋतु चिलचिलाती गर्मी, ठिठुरन भरी सर्दी और भारी बारिश के बीच एक खूबसूरत संतुलन होता है. इस मौसम में पेड़ों पर ताजे फल-फूल खिलते हैं. खेत-खलिहान पीले सरसों के फूलों से भर जाते हैं. मान्यता है कि इससे मन में ऊर्जा का संचार होता है. पीला रंग समृद्धि, भाग्य और सकारात्मकता का प्रतीक भी माना जाता है. इसके अलावा ऐसी भी मान्यता है कि चूंकि बसंत पंचमी पर सूर्य उत्तरायण होता है और इस दौरान पृथ्वी पर पड़ने वाली सूर्य की पीली किरणें पृथ्वी पर समृद्धि बिखेरती हैं. ये किरणें हमें सूर्य की तरह प्रचंड होना सिखाती हैं. इसीलिए वसंत पंचमी पर पीले रंग को बहुत प्रमुखता दिया जाता है. यह भी पढ़ें: Basant Panchami 2020: सिद्धि और सर्वार्थ सिद्धि योग में खास बना बसंत पंचमी! 30 नहीं 29 जनवरी को मनाएं ये त्योहार, जानें क्यों?
आज से ही शुरु होता है मथुरा में रंगोत्सव
बसंत पंचमी के दिन से ही मथुरा में बांके बिहारी मंदिर में रंगोत्सव का भी आयोजन शुरू हो जाता है. जहां टेसू के फूलों से बना बसंती पूरे मथुरा को बसंती रंग से सराबोर कर देता है. बसंत पंचमी के दिन लोग गंगा अथवा अन्य किसी पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद पीले वस्त्र धारण कर सूर्य को जल अर्पित करते हैं, और माता सरस्वती की आराधना करते हैं. उन्हें पीले रंग के मिष्ठानों का भोग लगाया जाता है. मान्यता है कि पीले रंग का भोजन ग्रहण कर ज्ञान की देवी अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाती हैं.