Amalaki Ekadeshi 2020 Pooja Vidhi and Shubh Muhurat: सनातन धर्म में आमलकी एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. आमलकी मूलतः आमला (आंवला) शब्द से बना है. गौरतलब है कि हिंदु शास्त्रों में आंवले को श्रेष्ठ वृक्षों में गिना जाता है. मान्यता यह भी है कि श्रीहरि ने जब श्रृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया तो उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया. आंवले को श्रीहरि ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है. मान्यता है कि आंवले के वृक्ष के हर अंग में ईश्वर का वास होता है और आमलकी एकादशी के दिन आंवला के वृक्ष के साथ श्रीहरि की पूजा करने से विशेष पुण्य-लाभ के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इस दिन पूजा-अर्चना का भी ख़ास महत्त्व है. आइये जानते है कि आमलकी एकादशी में कैसे करें पूजा और क्या है शुभ मुहूर्त
पूजा-विधान
आमलकी एकादशी की प्रातःकाल स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. घर के देवालय के सामने काष्ट की चौकी को धोकर लाल आसन बिछाएं. विष्णुजी की प्रतिमा को पहले पंचामृत फिर गंगाजल से स्नान करवाकर आसन पर स्थापित करें. हाथ में तिल, कुशा, मुद्रा और जल लेकर व्रत का संकल्प लेते हुए कहें, ‘विष्णुजी की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना के साथ मैंने आमलकी एकादशी का व्रत रखा है, वह सफल हो.’ विष्णुजी के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित कर पुष्प, फल और तुलसी दल चढ़ाते. ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करते हुए विष्णुजी को भोग चढ़ाएं. आरती उतारने के पश्चात आंवला वृक्ष की पूजा करें. वृक्ष के चारों ओर की भूमि साफ कर उसे गाय के गोबर से लीपें. पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें. इसमें देवताओं, तीर्थों और सागर को आमंत्रित करते हुए पंच-रत्न डालकर उसपर आम्र-पल्लव रखें और धूप-दीप जलाएं. कलश पर श्रीखंड एवं चंदन का लेप कर वस्त्र पहनाएं. कलश पर परशुराम की मूर्ति स्थापित कर विधिवत पूजन करें. सूर्यास्त के बाद पुनः विष्णुजी की पूजा कर फलाहार लें. रात्रि में भगवत कथा और भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें. अगले दिन (द्वादशी) प्रातःकाल ब्राह्मण को भोजन-दक्षिणा देकर विदा करें. अब व्रत का पारण करें.
आमलकी एकादशी 6 मार्च 2020 शुभ मुहूर्त
सर्वार्थ सिद्धि योगः प्रातः 06.41 बजे से दिन 10. 39 बजे तक
अमृत कालः प्रातः 08.20 बजे से दिन 09.52 बजे तक
एकादशी प्रारम्भः दोपहर 01.18 बजे से (5 मार्च)
एकादशी समाप्तः दिन 11. 47 बजे तक (6 मार्च)
पौराणिक कथा
वैदिश नामक एक नगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्ण मिलजुल कर रहते थे. उस नगर में सदैव वेदों की ध्वनि गूंजती थी. नगर में कोई भी पापी, दुराचारी अथवा नास्तिक नहीं था. इस नगर में चैतरथ नामक चन्द्रवंशी राजा राज्य करते थे. वे अत्यंत विद्वान तथा धर्म-कर्म वाले थे. इस नगर में कोई भी दरिद्र अथवा कंजूस नहीं था. सभी नगरवासी भगवान विष्णु के भक्त थे. वृद्ध स्त्री-पुरुष एकादशी का व्रत किया करते थे. एक बार फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की आमलकी एकादशी आई. उस दिन राजा, प्रजा तथा बाल-वृद्ध सभी ने हर्षपूर्वक व्रत किया.
राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर कलश की स्थापना करके धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से आंवले का पूजन किया. और स्तुतिगान करने के बाद सभी ने मंदिर में रात्रि जागरण किया.