कश्मीर के पश्मीना शॉल (Pashmina Shawl) का व्यवसाय करने वालों के चाहरे पर मुस्कान फिर से लौट आई है. जी हां, जीआई टैग की वजह से दोबारा से पश्मीना शॉल का काम करने वाले मेहनतकश लोगों को उनकी असल पहचान देने में मदद मिल रही है. पश्मीना शॉल में नक़ल बाज़ारी से असल कामगारों को उनका हक़ नहीं मिल पा रहा था.
पश्मीना कारोबारियों को निराशा के बीच मिली आशा की किरण श्रीनगर ओल्ड सिटी में पश्मीना कारोबारी शौक़त को निराशा के बीच आशा की एक किरण जगी जब जीआइ टैग के बारे में उन्हें पता चला. दरअसल, मशीन के काम और पश्मीना डुप्लिकेसी ने उनके इस परम्परागत व्यवसाय को चौपट कर दिया था. मशीन वर्क और नकली पश्मीना के चलते इनकी हाथ के काम और सौ फीसद असली पश्मीना के उत्पादों की ख़रीद महंगा होने की वजह से कम हो गई थी क्योंकि पश्मीना के नाम पर कई वराइयटी सस्ते दामों पर बाज़ार में आ गई. लेकिन अब जी आइ टैग ने इनकी समस्या का समाधान कर दिया है.
इस संबंध में पश्मीना कारोबारी शौकत बताते हैं कि अब यह 'मेक इन इंडिया' का हिस्सा है. अब यहां के कारीगर जो भी पश्मीना बनाते हैं वह मेक इन इंडिया के तहत ही आता है. इसमें कोई बाहर की चीज नहीं आ रही है. वे कहते हैं कि अब केवल जीआई टैग के बारे में लोगों को और अधिक जागरूक करने की जरूरत है.
इन्हीं के जैसे दूसरे व्यवसायी भी सरकार के इस कदम से बेहद खुश हैं. वे कहते हैं कि नकली या बिलो ग्रेडेड पश्मीना से असली पश्मीना व्यपारियों की छवी भी खराब हो रही थी. ग्राहक कई गुना सस्ता माल बाजार से उठा तो रहे थे लेकिन क्वालिटी न मिलने से नाराज भी थे. इससे कश्मीर का नाम बेहद खराब हो रहा था सो अलग. ऐसे में सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम कश्मीर के पश्मीना कारोबारियों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो रहा है. इससे पश्मीना कारोबारी भी बेहद खुश हैं.
कारोबारियों का कहना है कि सरकार को जीआई टैग के प्रचार में और तेजी लानी चाहिए, जिससे ग्राहकों की जानकारी उन तक पहुंचे और सही पश्मीना भी. पश्मीना व्यवसाली फैज़ अहमद खान कहते हैं कि जब से जीआई टैग आया है तब से पश्मीना के कारोबार में एक नई जान आ गई है.