Lucknow: हुनर हाट में कश्मीर की पश्मीना शॉल का जलवा
कुन्जांग डोलमा (photo credit : file photo )

लखनऊ, 25 जनवरी : कोरोना संकट के चलते दुनिया भर में मशहूर कश्मीर की पश्मीना शॉल (Kashmiri Pashmina Shawl) का बिजनेस भले ही सुस्ती की मार झेल रहा है, लेकिन हुनर हाट में पहुंच रहे लोग इस शॉल के मुरीद हो रहे हैं. यहां लद्दाख निवासी कुन्जांग डोलमा के लगाए गए स्टाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी आरेंज कलर की पश्मीना शॉल को देखा है. इस शॉल को देखने की ललक लेकर अब हुनर हाट में पहुंच रहे अधिकांश लोग खासकर महिलाएं इस शॉल को देखते हुए पश्मीना वूल से बने अन्य उत्पाद खरीदने में उत्साह दिखा रही हैं. कुल मिलाकर हुनर हाट में कश्मीर की पश्मीना शॉल का जलवा देखते ही बन रहा है. हुनर हाट में पश्मीना शॉल और पश्मीना वूल से बने स्वेटर, शूट, मफलर, स्टोल, स्वेटर, मोज़े और ग्लब्स आदि लोग खरीद भी रहें हैं और उनकी सराहना भी रहें हैं.

यहां पश्मीना शॉल का स्टाल लगाने वाली लद्दाख निवासी कुन्जांग डोलमा इस शहर के लोगों के स्वभाव से बहुत प्रभावित हैं. कुन्जांग डोलमा के अनुसार इस शहर के लोग बहुत स्वीट हैं, विनम्र हैं. यहां के लोग असली पश्मीना शॉल देख कर बहुत खुश हैं. उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके स्टाल पर आकर पश्मीना शॉल को देखा. उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ने जिस पश्मीना शॉल को देखा था उसकी कीमत सत्तर हजार रुपये है. यहां तीन से पांच हजार रुपये में पश्‍मीना वूल के मिल रहे स्टोल की बिक्री खूब हो रही है.

कुन्जांग डोलमा के अनुसार, कश्मीर की पश्मीना शॉल किसी पहचान की मोहताज नहीं है. पश्‍मीना वूल को सबसे अच्‍छा वूल माना जाता है. यह लद्दाख में बहुत ज्‍यादा ठंडी जगहों पर पाई जाने वाली चंगथांगी बकरियों से मिलता है. चंगथांगी बकरियों को पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा के पास तिब्बती पठार के एक पश्चिमी विस्तार, चंगथांग क्षेत्र में खानाबदोश चंगपा पशुपालकों द्वारा पाला जाता है. अपने देश में इन बकरियों के बाल से बनी वूल को पश्‍मीना वूल कहते हैं लेकिन यूरोप के लोग इसे कश्मीरी वूल कहते हैं. पश्‍मीना से बनने वाली शॉल पर कश्‍मीरी एंब्रॉयडरी की जाती है. यह भी पढ़ें : Vocal for Local: उत्तर प्रदेश के रामपुर और लखनऊ में हुनर हाट का आयोजन, ई-प्लेटफॉर्म पर भी रहेगा उपलब्ध

पश्‍मीना शॉल पर आमतौर पर हाथ से डिज़ाइन की जाती है. यह पीढ़ियों पुरानी कला है. लद्दाख और श्रीनगर जिले के कई जिलों में पश्मीना शॉल पर सुई से कढ़ाई कई कारीगरों के लिए आजीविका है. वे जटिल डिज़ाइनों की बुनाई करने के लिए ऊन के धागे इस्तेमाल करते हैं. सुई से कढ़ाई करने में रेशम के धागे का उपयोग शायद ही कभी किया जाता है. इसके नाते इस तरह के शॉल की क़ीमत ज़्यादा होती है. यह शाल बेहद हल्की और गरम होती है. कश्‍मीर से इनकी सप्‍लाई सबसे ज्‍यादा दिल्‍ली और नॉर्थ इंडिया में होती है. बाहर के देशों की बात करें तो यूरोप, जर्मनी, गल्फ कंट्रीज जैसे कतर, सउदी आदि द में भी कश्‍मीर से पश्‍मीना शॉल का एक्‍सपोर्ट होता है.

कुन्जांग डोलमा आत्मनिर्भरता की एक मिशाल हैं. उनके दादा चंगथांगी बकरियों का पालन करते थे. उनके प्रेरणा लेकर कुन्जांग ने शॉल, शूट, स्टोल, स्वेटर, कैप आदि बनाने का कार्य दो महिलाओं के साथ मिलकर अपनी पाकेट मनी से शुरु किया था. आज लद्दाख से लेकर श्रीनगर में करीब पांच सौ महिलाएं पश्मीना शॉल लेकर पश्मीना वूल से बने शूट स्टोल सहित कर करीब 35 उत्पाद "ला पश्मीना" ब्रांड से बना रहें हैं. इस ब्रांड से बने उत्पाद बनाने वाले सब लोग अच्छी कमाई कर रहे हैं और खुश हैं. कुन्जांग डोलमा का कहना है कि जिस तरह से लखनऊ के लोगों ने पश्मीना वूल को लेकर उत्साह दिखाया है, उसके चलते अब वह हर साल हुनर हाट में अपना स्टाल लगाने के लिए लद्दाख से आएंगी.