
भगवान गणेश की कृपा पाने और जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने हेतु वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को एकदंत संकष्टी चतुर्थी का व्रत एवं उपासना की जाती है. इस व्रत की कथा भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी के विवाह पर गणेश जी के अपमान से जुड़ी है. एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा-अनुष्ठान करने से जातक के जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है. इस वर्ष एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत-पूजा 16 मई 2025 को सम्पन्न होगा. आइये जानें इसका महत्व, मूल तिथि, मंत्र, पूजा-विधि एवं व्रत-पूजा की महत्वपूर्ण पौराणिक कथा
एकदंत चतुर्थी का महत्व
जातक के हर विघ्नों को हरने वाले देव होने के कारण गणेशजी को विघ्नहर्ता भी कहते हैं. इस दिन भगवान गणेश के चंक्र राजा एकदंत महा गणपतिपीठ श्रीचक्र पीठ स्वरूप की पूजा की जाती है. हिंदी माह की प्रत्येक चौथी तिथि चतुर्थी कहलाती है. यह दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश को समर्पित है. वैशाख चतुर्थी को एकदंत चतुर्थी भी कहते हैं. यह दिन जब शनिवार को पड़ता है तो इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है. तब इसे अंगारकी संकष्टि चतुर्थी कहते हैं. शिव पुराण के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश को ‘प्रथम पूज्य’ देव घोषित किया गया था. इस दिन भगवान गणेश की पूजा-व्रत से जीवन के सारे संकट नष्ट होते हैं, और जीवन में खुशहाली आती है. यह भी पढ़ें : Narada Jayanti 2025 Messages: हैप्पी नारद जयंती! प्रियजनों संग शेयर करें ये हिंदी WhatsApp Wishes, GIF Greetings, Quotes और HD Images
एकदंत चतुर्थी मूल तिथि एवं पूजा मूहूर्त
चतुर्थी प्रारंभः 04.02 AM (16 मई 2025)
चतुर्थी समाप्तः 05.13 AM (17 मई 2025)
उदया तिथि के नियमों के अनुसार 16 मई 2025 को एकदंत चतुर्थी को व्रत-पूजन जायेगा.
इस दिन चंद्रोदय पर चंद्र-दर्शन एवं अर्घ्य आवश्यक है
पारण काल 17 मई को प्रातःकाल
एकदंत संकष्टी चतुर्थी की पूजा एवं व्रत के नियम
मान्यता है कि इस दिन पूरे दिन फलाहारी व्रत रखते हुए गणेश जी की पूजा करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं. इस दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. संध्याकाल में मुहूर्त के अनुरूप भगवान गणेश के मंदिर को दूर्वा एवं लाल पुष्प से अलंकृत करें. गणेश जी की प्रतिमा पर गंगाजल छिड़ककर प्रतीकात्मक स्नान कराएं. धूप दीप प्रज्वलित कर भगवान गणेश का आह्वान मंत्र का जाप करते हुए पूजा प्रारंभ करें.
ॐ गं गणपतये नमःगणेश जी को रोली-अक्षत का तिलक कर दूर्वा एवं लाल पुष्प चढ़ाएं. भोग में नारियल और गुड़ से बना मोदक चढ़ाएं. गणेश चालीसा का पाठ करें. सुलभ हो तो एकदंत चतुर्थी व्रत की कथा सुनें तत्पश्चात गणेश जी की आरती उतारें. चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा सम्पन्न करें.
एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु का विवाह जब देवी लक्ष्मी से होने वाला था, तो सभी देवताओं को निमंत्रण-पत्र भेजे गये, लेकिन भूलवश गणेश जी को निमंत्रण नहीं मिला. विष्णु जी की जब बारात निकलने को हुई, तो अन्य देवताओं ने पाया कि बारात में गणेश जी नजर नहीं आ रहे हैं. नारद जी ने कहा, यह गणेश जी का अपमान है. वे तो प्रथम पूज्य देव हैं. सभी ने लक्ष्मी-विष्णु जी के विवाह की पूर्णता पर संदेह जताया. अचानक भगवान विष्णु के रथ का पहिया जमीन में धंस गया. तमाम कोशिशों के बाद भी जब रथ का पहिया जड़ रहा, तब भगवान शिव ने नंदी को भेजकर सविनय गणेश जी को आमंत्रित होने की प्रार्थना की. गणेश जी के आगमन पर उनका भव्य आदर-सत्कार हुआ. इसके बाद ही रथ अपनी जगह से हिल सका, और विष्णु जी का लक्ष्मी से निर्विघ्न विवाह सम्पन्न हुआ.