विजयादशमी की अंतिम कड़ी है राम-भरत मिलाप, वनवास के बाद आज ही के दिन हुआ था मिलन
राम भरत मिलाप, (फोटो क्रेडिट्स: YouTube)

नवरात्रि, दुर्गापूजा एवं विजयादशमी का पर्व सम्पन्न हुआ. धर्म की अधर्म पर विजय के पश्चात इस पर्व की अंतिम कड़ी में आज शाम दिखेगा श्रीराम-भरत मिलाप का वह संवेदनशील दृश्य जिसे देखकर किसी की भी आंखें भर आती हैं. वैसे तो देश के तमाम जगहों पर राम-भरत मिलाप का पर्व सेलीब्रेट किया जाता है, लेकिन बात अगर काशी यानी वाराणसी स्थित नाटी इमली के राम-भरत मिलाप की हो तब यह आम नहीं खास हो जाता है. वाराणसी में राम भरत मिलाप का यह पर्व पिछले 477 सालों से निरंतर मनाया जा रहा है. कुछ घंटों के इस पर्व में राम-भरत मिलाप को देखने के लिए पूरे देश से हजारों श्रद्धालु नाटी इमली स्थित विशाल ग्राउंड में पहुंचते हैं.

श्रीराम के आने की सूचना सुनते ही भरत नंगे पांव भागकर बाहर आते हैं

चित्रकूट की रामलीला में परंपरानुसार आश्विन शुक्लपक्ष की एकादशी की सायंकाल श्रीराम भरत मिलाप का अभूतपूर्व पर्व वाराणसी के नाटी इमली के मैदान पर पिछले 477 वर्षों से आयोजित किया जा रहा है. 14 वर्ष के वनवास के अंतिम चरण में श्रीराम रावण का वध कर पत्नी सीता, लक्ष्मण और पवनपुत्र हनुमान जी के साथ पुष्पक विमान से अयोध्या पहुंचते हैं. हनुमान जी अयोध्या में भरत एवं शत्रुघ्न को प्रभु श्रीराम के आने की सूचना पूर्व में ही पहुंचा चुके थे. भगवान तुल्य पूज्यनीय श्रीराम की अयोध्या वापसी की सूचना पाते ही भरत और शत्रुघ्न दीवानों की तरह नंगे पांव भागते हैं. श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता पुष्पक विमान से उतरकर गुरु वशिष्ठ के चरण स्पर्श करते हैं. उधर भरत एवं शत्रुघ्न पिता समान श्रीराम को सामने देखते ही साक्षात दंडवत हो जाते हैं. श्रीराम भरत एवं शत्रुघ्न को उठाकर गले से लगाते हैं. चारों भाइयों की आंखों से अविरल आंसू बह निकलते हैं. कहा जाता है कि इस दृश्य को लिखते समय स्वयं गोस्वामी तुलसी दास जी की आंखें भर आयी थी.

राजीव लोचन स्रवत जल तन ललित पुलकावलि बनी।

अति प्रेम हृदयँ लगाइ अनुजहि मिले प्रभु त्रिभुअन धनी॥

प्रभु मिलत अनुजहि सोह मो पहिं जाति नहिं उपमा कही।

जनु प्रेम अरु सिंगार तनु धरि मिले बर सुषमा लही॥

श्रीराम पल भर भी देरी करते तो भरत आत्मदाह कर लेते

कहते हैं कि श्रीराम के वनगमन की सूचना सुनते ही भरत उन्हें वापस लाने चित्रकूट पहुंचे थे, तब पिता के आदेश का पालन करने की बात कहकर राम ने वापस लौटने से इंकार कर दिया था. तब भरत ने कसम खाई थी कि अगर चौदहवें वर्ष के सूर्यास्त होने तक श्रीराम वापस नहीं लौटे तो वह प्राण त्याग देंगे. इसीलिए श्रीराम पुष्पक विमान से सूर्यास्त के पूर्व अयोध्या पहुंच जाते हैं. इस गोधुलि बेला में राम-लक्ष्मण-भरत-शत्रुघ्न का मिलन का अलौकिक दृश्य देखकर काशी की जनता भाव विभोर हो जाती है. सभी श्रीराम और भगवान शिव के जय जयकारे लगाने लगती है.

काशी नरेश की उपस्थिति में होता है राम भरत मिलाप

काशी (वाराणसी) की इस सैकड़ों साल पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हुए काशी नरेश नाटी इमली के विशाल मैदान में अपनी शाही सवारी के साथ पहुंचते हैं. शाही परिवार की पुरानी परंपरा के अनुरूप काशी नरेश श्रीराम, माता सीता, एवं भ्राता लक्ष्मण के पुष्पक विमान की परिक्रमा कर नेग न्योछावर करते हैं. वहां उपस्थित हजारों श्रद्धालु जय श्रीराम, सीता मइया की जय, सिया बलराम चंद की जय का उद्घोष करते हैं. 477 वर्षों से चली आ रही इस परंपरागत दृश्य को कैमरे में कैद करने के लिए विदेशी पर्यटकों के कैमरे चलने लगते हैं. यहीं पर आयोजकों द्वारा राम दरबार (श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न एवं हनुमान जी) की आरती उतारी गयी. यहां से श्रीराम अयोध्या स्थित अपने महल की ओर बढ़ते हैं, जहां उनकी मांए उनका बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही थीं.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं.