Dr. Babasaheb Ambedkar Jayanti 2023: डॉ. भीमराव अम्बेडकर को ‘दलित’ से ‘देवता’ बनाने वाले उनके जीवन के 5 महत्वपूर्ण सूत्र!
Students' Day 2022 (Photo Credits: File Image)

सामाजिक विसंगतियों, कुसंस्कारों और ऊंच-नीच के थपेड़ों को सहता-जूझता व्यक्ति समाज का निर्माता बन जाये तो यह किसी चमत्कार से कम नहीं होगा. यह चमत्कार कर दिखाया डॉ भीमराव बाबा साहेब अंबेडकर ने. बाबा साहेब का जन्म इंदौर स्थित महू में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था. भीमराव जाति से दलित थे, इसलिए उनका बचपन, स्कूल शिक्षा आदि कठिन संघर्षों से गुजरा. कदम-कदम पर सामाजिक बहिष्कार, अपमान, तिरस्कार और भेदभाव का सामना करना पड़ा. इसका उनके जीवन पर गहरा असर पड़ा. उन्होंने ठान लिया कि समूचा सामाजिक ढांचा बदल कर रहेंगे. तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए अंततः वह दलित से देवता के पोजीशन पर पहुंचे, उन्हें आजाद भारत का संविधान लिखने और देश का पहला कानून मंत्री बनने अवसर मिला. 14 अप्रैल 2023 को बाबा साहेब की 162 वीं जयंती मनाई जाएगी. आज बात करेंगे बाबा साहेब के जीवन के उन 5 महत्वपूर्ण सूत्रों की, जिसने उन्हें ‘अछूत’ से ‘समाज निर्माणक’ बना दिया.

शिक्षा की इच्छा!

बाबा साहेब उच्च शिक्षा के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी गये, तो पक्के पढ़ाकू थे. कोलंबिया यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में पुस्तकों के चयन और देर तक पढ़ने की लालच में लाइब्रेरी के चपरासी से पहले पहुंच जाते थे, और लाइब्रेरियन से रिक्वेस्ट करते, कि थोड़ी देर और लाइब्रेरी खोलें. वह 18-19 घंटे प्रतिदिन पढ़ाई करते थे. पढ़ने और सीखने की उसमें प्रबल इच्छा शक्ति थी. एक बार चपरासी ने पूछा, आप यहां पूरे दिन पढ़ते हैं, दोस्तों से मिलने की इच्छा नहीं करती. वे कहते, अगर मैं भी मस्ती करने लगा, तो उनका ख्याल कौन करेगा. बाबा साहब की सफलता के लिए जो अहम है, वह है शिक्षा. बाबा साहब की अपनी लाइब्रेरी ‘राजगृह’ थी, जिसमें 50 हजार पुस्तकें थीं, और तब वह दुनिया की सबसे बड़ी प्राइवेट लाइब्रेरी थी. यह भी पढ़ें : World Health Day 2023 Messages: वर्ल्ड हेल्थ डे की बधाई! शेयर करें ये हिंदी WhatsApp Wishes, Slogan, GIF Greetings और Photo SMS

आत्म विश्वास!

जीवन में आत्मविश्वास बहुत जरूरी है. बाबा साहेब का कहना था कि आप में एक बार आत्मविश्वास आ जाये, तो उस पर भी काम करेंगे, जो खायेंगे, जो पियेंगे, जो पहनेंगे, वह सब आपको ज्यादा रास आयेगा. गांधी की कई बातों का आंबेडकर साहब विरोध करते थे, उन्हें लिखकर बताते थे, कि आपकी फलां बात का विरोध करता हूं. इतना विरोध सहने के बाद भी गांधीजी को अवसर मिलता तो बाबा साहेब की पुरजोर प्रशंसा करते नहीं. एक बार गांधीजी किसी कॉन्फ्रेंस में वक्तव्य देते हुए कहा था कि एक तरफ आप दुनिया के सारे विद्वानों को रख दीजिये, और एक तरफ बाबा साहेब को खड़ा कर दो, ये बाकी से ज्यादा ही विद्वान रहेंगे. इसलिए जब देश की पहली कैबिनेट बन रही थी, तब कानून मंत्री के लिए बाबा साहेब का नाम महात्मा गांधी ने ही सुझाया था, और वे आजाद भारत के पहले कानून मंत्री बने थे, ये सारा कमाल उनके आत्मविश्वास का ही था.

संपूर्ण समाज की सोच

बाबा साहेब हमेशा कहते थे कि जिंदगी केवल अपना मत सोचिये, समाज के प्रति भी कुछ जिम्मेदार बनिये. यही वजह थी, कि जब उन्हें आजाद भारत के लिए संविधान लिखने की बड़ी जिम्मेदारी रखी, तब उन्होंने 60 देशों के संविधान का अध्ययन किया. उसके बाद उन्होंने संविधान लिखा. संविधान लिखते समय इस बात का ध्यान रखा गया कि सब को बराबरी का अधिकार मिले. क्योंकि बाबा साहेब वह व्यक्ति थे, जिनसे पढ़ाई का हक छीना गया, जिन्हें प्यास लगने पर ऊंची जाति का आदमी ऊपर से पानी पिलाता था, तो उन्होंने उन सारे संकटों एवं मुसीबतों को करीब से देखा था, इसलिए वह चाहते थे कि आजाद भारत में समाज के निचले से निचले हिस्से में रहने वाले तक सारी सुविधाएं सारे अधिकार प्राप्त हों. इन सारी बातों को ध्यान में रखकर भारत का संविधान लिखा गया.

जीवन का उद्देश्य!

अकसर लोग अपनी जिंदगी के बारे में सोचते हैं कि अभी तो बहुत समय है. इस संदर्भ में बाबा साहेब कहते थे, जिंदगी बहुत लंबी है इस बात पर ध्यान देने की बजाय इस पर ध्यान दिजिये कि आप जिंदगी जी कैसे रहे हैं. जिंदगी का एक लक्ष्य एक उद्देश्य होना चाहिए. बाबा साहेब के जीवन का उद्देश्य था, कि समाज के हर वर्ग को बराबरी का हक मिले. जो हक उनसे छीना गया, वह सारे हक उसे मिले. उन्होंने कोशिश की कि वे पढ़ाई करें, और पढ़ाई के दम पर इस सिस्टम को बदलें, और उन्होंने उस उद्देश्य को पूरा भी किया. उन्हें नहीं पता था कि वे आजाद भारत का संविधान लिखेंगे, या देश के पहले कानून मंत्री बनेंगे, लेकिन जो काम वह अच्छे से कर सकते थे, उसे किया. शिक्षा हासिल की और उस शिक्षा से सिस्टम को बदल कर दिखाया.

जिंदगी में विजन होना चाहिए!

बाबा अंबेडकर साहब ने आज से सौ साल पहले वीमेन इन पावर की बात की थी, उन्होंने मातृत्व अवकाश की बात की थी, मातृत्व लाभ की बात की थी, यह उस समय की बात है, जब महिलाओं के बारे में सोचने की किसी को जरूरत ही नहीं लगती थी. उन्होंने कहा था कि मजदूरों को सिर्फ आ घंटे ही मजदूरी करनी चाहिए. वरना पहले 10 से 12 कभी-कभी 14 घंटे तक काम लिया जाता था. सबके अधिकारों के बारे में सोचने वाले थे बाबा साहेब आंबेडकर. उन्होंने मध्य प्रदेश और बिहार के बारे में भी कहा था कि इसका विभाजन होना चाहिए, तब इस संदर्भ में किसी ने गंभीरता नहीं दिखाई. बाद में साल 2000 में छत्तीसगढ़ और झारखंड का निर्माण हुआ. तब सुन ली जाती तो तभी डिवीजन हो चुका होता. जिंदगी में आज और कल के साथ-साथ आने वाले कल के बारे में भी सोचें.