आम धारणा है कि शत्रु घर के बाहर ही होते हैं, लेकिन आचार्य चाणक्य की सोच इससे कुछ अलग है. उनकी एक नीति के तहत शत्रु घर में भी हो सकते हैं, वह भी माता, पिता और पत्नी के रूप में.. चौंक गये ना! आइये जानते हैं, आचार्य चाणक्य घर के अहम सदस्यों को शत्रु क्यों कहना चाह रहे हैं...
ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी।
भार्या रूपवती शत्रुः पुत्र शत्रु र्न पंडितः।।
आचार्य ज्ञानी पंडित होने के साथ-साथ अच्छे नीतिकार भी हैं, उन्होंने मनुष्य जीवन को सुखमय बनाने के लिए तमाम नीतियां बनाई, जिनका पालन करने से जीवन सहज हो जाता है. उनकी नीतियां व्यवहारिक और सामयिक हैं, और जीवन के हर मोड़ पर उपयोगी हैं. आचार्य चाणक्य की एक नीति के तहत चार लोगों के बारे में बताया है, जो आपकी उम्मीद के विपरीत आपके लिए शत्रु साबित हो सकते हैं.
पिता कब शत्रु होता है?
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ऋण करनेवाला पिता शत्रु होता है. पुत्र के लिए कर्ज छोड़ने वाला पिता शत्रु के समान होता है. उसकी मृत्यु के पश्चात उसके कर्ज की अदायगी उसकी संतान को करना पड़ता है. इसलिए पिता को भी चाहिए कि वह किसी भी काम के लिए कर्ज सोच समझ कर लेना चाहिए.
मां कब बनती है शत्रु?
अगर मां व्यभिचारिणी है तो वह भी शत्रु के रूप में निन्दनीय और छोड़ने योग्य है, क्योंकि वह अपने धर्म से गिरकर पिता और पति के कुल को कलंकित करती है. ऐसी मां के पुत्र को सामाजिक अपमान सहना पड़ता है, जिससे उसका मान-सम्मान प्रभावित होता है, लोग उसके ऊपर भी शक की ऊंगलियां उठाते हैं.
पत्नी भी पति की दुश्मन हो सकती है
सुंदर स्त्री को अकसर अपने सौंदर्य पर गुमान होता है. इस कारण से वह अपने पति और परिवार का अपमान करने से भी नहीं चूकती. उसे लगता है कि वह अपने सौंदर्य के दम पर बहुत कुछ हासिल कर सकती है. इसलिए जीवन संगिनी की तलाश कर रहे हैं, तो रूपवती नहीं गुणवती को प्रार्थमिकता दीजिएं
मूर्ख पुत्र
आचार्य चाणक्य के अनुसार मानव का सबसे बड़ा दुश्मन उसकी मूर्खता हो सकती है. अगर आपका पुत्र मूर्ख है, तो उससे संभल कर रहने की जरूरत है, क्योंकि उसकी मूर्खता पूर्ण हरकतें आपको कभी भी संकट में डाल सकती हैं. ऐसे पुत्र को त्याग देना ही समझदारी होगी.