चाणक्य नीति या चाणक्य नीतिशास्त्र (4 से 3 शताब्दी ई॰पु॰ मध्य) चाणक्य द्वारा रचित एक नीति ग्रन्थ है. संस्कृत-साहित्य में नीतिपरक ग्रन्थों की कोटि में चाणक्य नीति का महत्त्वपूर्ण स्थान है. इसमें श्लोक शैली में जीवन को सुखमय एवं सफल बनाने के लिए तमाम किस्म के उपयोगी सुझाव उल्लेखित हैं. निम्न श्लोक में हम जानने की कोशिश करेंगे कि एक चोर क्यों चंद्रमा को अपना दुश्मन समझता है, और चाणक्य इस श्लोक के जरिये क्या कहना चाहते हैं.
लुब्धानां याचकः शत्रुः मूर्खाणां बोधको रिपुः।
जारस्त्रीणां पतिः शत्रुश्चौराणां चंद्रमाः रिपुः।।
अर्थात एक चोर के लिए उसका सबसे बड़ा शत्रु चंद्रमा होता है, क्योंकि वह चोरी के लिए हमेशा अंधेरा होने की चाहत रखत है, ताकि उसे कोई पहचान ना सके. उसकी पहचान उजागर न हो, लेकिन चंद्रमा की रोशनी तो अंधकार को दूर करती है. यह भी पढ़ें : Shri Ram Shlokas In Sanskrit: अयोध्या धाम की पहली वर्षगांठ पर श्रीराम की भक्ति में हो जाएं लीन, शेयर करें ये WhatsApp Messages, Quotes और Facebook Greetings
इस श्लोक द्वारा चाणक्य स्पष्ट करना चाहते हैं कि सन्मार्ग की ओर अग्रसर रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को दुर्जन अपना शत्रु मानते हैं; लेकिन फिर भी सज्जन व्यक्ति सन्मार्ग को छोड़ते नहीं हैं. याचक को धन देते समय लोभी को अत्यंत कष्ट होता है, इसलिए उसकी दृष्टि में दान, भिक्षा या चंदा मांगनेवाला प्रत्येक व्यक्ति उसका शत्रु है. इसी प्रकार ज्ञानयुक्त उपदेश देनेवाले मूर्खों की बात को काटकर उन्हें ज्ञानी बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं, इसलिए मूर्ख उन्हें अपना शत्रु मानते हैं. व्यभिचारिणी पत्नी के लिए उसका पति शत्रु के समान होता है, क्योंकि वह उसकी स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाने का प्रयास करता है. चांद के प्रकाश में चोर चोरी करने में असमर्थ होते हैं, इसलिए वे उसे अपना शत्रु मानते हैं.
आचार्य चाणक्य के अनुसार एक भ्रष्ट और बुरे चरित्र वाली महिला के लिए कहा है कि ऐसी महिला कभी भी भरोसे के लायक नहीं होती. वो हमेशा दूसरे पुरुषों के प्रति आकर्षित होती है. ऐसे में उसके लिए उसका पति ही सबसे बड़ा दुश्मन होता है, क्योंकि वहीं उसकी मंशा के बीच में बाधा बनता है.













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