भारतीय इतिहास के महाविद्वान कहे जाने वाले आचार्य चाणक्य ऐसे युगदृष्टा थे, जिनकी दी हुई सीख आज भी लोगों का मार्गदर्शन कर रही है. आचार्य चाणक्य ने राजनीति व अर्थशास्त्र के अलावा सामाजिक व पारिवारिक जीवन पर भी कई बातें कही हैं, जो आज भी लोगों के लिए पथ प्रदर्शक साबित होती है. आचार्य ने वैवाहिक जीवन पर, जीवन में सफलता पर, नौकरी, दोस्ती आदि को लेकर गहराई से विचार किया था. यहां जाने आचार्य चाणक्य का एक ऐसा श्लोक जिसका मूल सार यही है कि अगर बात आपकी आत्म सम्मान पर आ जाए तो आपको किस-किस का त्याग करना चाहिए और किसे स्वीकार्यता देनी चाहिए. आइये जानते हैं क्या है यह श्लोक एवं क्या कहना चाहा है आचार्य चाणक्य ने... यह भी पढ़ें : Sharad Navratri 2024 Rangoli Designs: शारदीय नवरात्रि पर खूबसूरत रंगोली बनाकर करें मां दुर्गा का स्वागत, देखें कलरफुल डिजाइन्स
आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेध्दनैरपि।
नआत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि ।।
आचार्य चाणक्य ने इस श्लोक के माध्यम से कहना चाहा है कि भविष्य में आने वाली आपदा से सुरक्षा के लिए ज्यादा से ज्यादा धन संपत्ति बचाकर रखते हुए अपने घर द्वार की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन अगर बात आपकी पत्नी की सुरक्षा एवं संरक्षा की हो तो सारा धन खर्च कर भी पत्नी की सुरक्षा करनी चाहिए, क्योंकि आपकी पत्नी की सुरक्षा का सबसे बड़ा दायित्व आपने ही ले रखा है. वह आपकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. लेकिन अगर बात आपके आत्म-सम्मान, आपके अहम, आपकी आत्मा की सुरक्षा सर्वोपरि है. धन संचय और पत्नी दोनों से ज्यादा जरूरी है आपके मान-मर्यादा की रक्षा करना. समाज में आप की प्रतिष्ठा है, तभी आपके धन एवं पत्नी का सही मूल्यांकन होता है.