Chanakya Niti: ऐसे व्यक्ति के पास लक्ष्मी नहीं ठहरतीं! वे ताउम्र दरिद्र बने रहते हैं! जानें आचार्य चाणक्य किनकी बात कर रहे हैं!

आचार्य चाणक्य अपने समय के महान विद्वान, ज्ञानी और कूटनीतिज्ञ थे. सारी दुनिया उनकी विद्वता से परिचित है. अपने व्यस्ततम जीवन में भी उन्होंने मानव समाज से जुड़े लगभग हर क्षेत्र हर विषय को अपनी नीति शास्त्र में उल्लेख किया है. जिसे कई खंडों में संकलित कर चाणक्य नीति ग्रंथ तैयार किया गया है. उनकी विद्वता का अहसा इसी से किया जा सकता है कि सैकड़ों से पहले उनकी लिखी बातें आज भी कितनी प्रासंगिक और सामयिक लगती है. यहां उनके एक ऐसे ही श्लोक की बात करेंगे, जिसमें उन्होंने लक्ष्मी की चपलता का रहस्य बताने का प्रयास किया है...

‘कुचैलिनं दन्तमलोपधारिणं बव्हाशिनं निष्ठुरभाषितं च।

सूर्योदये चास्तमिते शयानं विमुञ्चतेश्रीर्यदि चक्राणिः॥‘

यहां चाणक्य ने लक्ष्मी की चंचलता की प्रकृति का उल्लेख करते हुए बताया है कि कैसे धन एवं ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी गन्दे वस्त्र पहनने वाले, गंदगी के साथ रहनेवाले, बदबूदार दांतों वाले, जरूरत से ज्यादा भोजन करने वाले, कमजोर, और वृद्धों से कठोर शब्दों से बात करने वाले, सूर्योदय से सूर्यास्त होने तक सोये रहने वाले व्यक्ति के घर में वास नहीं करती. फिर वह व्यक्ति साक्षात् चक्रपाणि अर्थात भगवान विष्णु ही क्यों न हों. यह भी पढ़ें : Holashtak 2025: होलाष्टक क्या है और कब से शुरू हो रहा है? होलाष्टक काल में शुभ आयोजन क्यों नहीं किये जाते हैं?

इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने कहना चाहा है कि जिस व्यक्ति में निम्नलिखित दुर्गुण हों, उसे लक्ष्मी यानी 'धन-सम्पत्ति' त्याग देती है. उदाहरण के लिए, जो व्यक्ति मैले-कुचैले कपड़े पहनता है, जिसके दांत गंदे रहते हैं, उसमें मैल भरा रहता है, अथवा जो व्यक्ति जरूरत से ज्यादा भोजन करता है, अर्थात् भुक्खड़ व्यक्ति एवं जो पूरे दिन यानी सूर्योदय से सूर्यास्त तक सोया रहता है, ऐसे व्यक्ति चाहे कितना ही बड़ा आदमी क्यों न हो, लक्ष्मी उसके पास जाना पसन्द नहीं करती. गन्दगी और आलस्य लक्ष्मी को किंचित पसंद नहीं है. अतः गरीबी को दूर करने तथा जीवन में उन्नति करने के लिए साफ-सुथरा रहना और आलस्य को त्याग देना अत्यन्त आवश्यक है.