आचार्य चाणक्य जो ‘कौटिल्य’ या ‘विष्णुगुप्त’, नाम से भी लोकप्रिय हैं. आचार्य अपने समय के धुरंधर अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और महान कूटनीतिज्ञ थे. मौर्य साम्राज्य के संस्थापक एवं चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे. उन्हें 'चाणक्य' नाम उनके पिता के नाम 'चणक' से मिला. चाणक्य नीति आचार्य चाणक्य द्वारा रचित एक नीति ग्रन्थ है. संस्कृत-साहित्य में नीतिपरक ग्रन्थों की कोटि में चाणक्य नीति का महत्त्वपूर्ण स्थान है. इसमें श्लोक शैली में जीवन के हर बिंदुओं को सुखमय एवं सफल बनाने के लिए उपयोगी सुझाव दिये गये हैं. चाणक्य नीति के चौदहवें अध्याय के 12वें श्लोक में आचार्य ने समाज के भिन्न-भिन्न लोगों में ईश्वर की विभिन्न मान्यताओं का वर्णन किया है.
अग्निर्देवो द्विजातीनां मनीषिणां हृदि दैवतम्।
प्रतिमा स्वल्पबुद्धीनां सर्वत्र समदर्शिनः ।॥12॥
इस श्लोक का मूल आशय है, ब्राह्मणों के लिए उनका भगवान अग्नि (आग) में निहित है, विद्वान पुरुषों के हृदय में देवता वास करते हैं, जबकि कम बुद्धि वाले लोगों के लिए मिट्टी और पत्थर की मूर्ति में ईश्वर व्याप्त है, वहीं आम आदमी के लिए समान रूप से देखने वाले व्यक्ति के लिए हर जगह ईश्वर है.
इस श्लोक को विस्तार से यूं समझा जा सकता है.
‘अग्निर्देवो द्विजातीनाम्:’
संस्कृत में उल्लेखित इन दो शब्दों का अर्थ है कि ब्राह्मणों के लिए अग्नि देव ही मूल देवता हैं.
‘मनीषिणां हृदि दैवथम्:’
इसका अर्थ है, विद्वानों के हृदय में देवता निवास करते हैं.
‘प्रतिमा स्वल्पबुद्धीनाम्:’
इस पंक्ति के माध्यम से आचार्य चाणक्य का कहना है कि कम बुद्धि वाले लोगों के लिए पत्थर की मूर्ति में ईश्वर वास करते हैं.
‘सर्वत्र समदर्शिनः’
इस पंक्ति का अर्थ है कि सभी के लिए समान रूप से देखने वाले व्यक्ति के लिए अग्नि अर्थात ईश्वर हर जगह मौजूद है.
इसका आशय यह है कि यज्ञ कराने वाले ब्राह्मण अग्नि को ईश्वर का स्वरूप मानकर उसकी पूजा करते हैं. बुद्धिमान व्यक्ति अपने हृदय में ईश्वर के दर्शन करते हैं. अल्प बुद्धि यानी कम बुद्धिमान वाले व्यक्ति मूर्ति को ही ईश्वर मानते हैं. जबकि समदर्शी ज्ञानी पुरुष संसार के प्रत्येक प्राणी, वस्तु या स्थान में परमात्मा को देखते हैं, उनकी पूजा करते हैं. उनका मानना है कि ईश्वर अनंत है, वह घट-घट में वास करते हैं, यानी उन्हें हर कण में ईश्वर को महसूस करते हैं.













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