Bhadrakali Jayanti 2025: माँ भद्रकाली अनुष्ठान से मिट जाता है, ब्रह्म-हत्या का पाप! जानें अनुष्ठान के नियम एवं मुहूर्त आदि के बारे में!

    हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन भद्रकाली जयंती मनाई जाती है. इसी दिन अपरा एकादशी का व्रत भी रखा जाता है. मां भद्रकाली जयंती मूल रूप से हरियाणाहिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्सों में पूरी श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाई जाती है. इस माह 23 मई 2025 को भद्रकाली जयंती मनाई जाएगी. आइये जानते हैं माँ भद्रकाली जयंती की मूल तिथि, पूजा मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा-विधि इत्यादि के बारे में..

कौन हैं माँ भद्रकाली और कैसे हुआ था उनका प्रकाट्य?

   माँ भद्रकालीमाँ काली का ही स्वरूप हैं. देवी पुराण के अनुसार माँ भद्रकाली को माँ काली का शांत एवं वरदायिनी स्वरूप माना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि मां भद्रकाली भगवान शिव की जटाओं से प्रकट हुई थीं. कुछ मान्यताओं के अनुसार माँ भद्रकाली राजा दक्ष के यज्ञ की विध्वंसक देवी भी बताई जाती हैं. देवी भद्रकाली की पूजा दक्षिण भारत में भी बहुत विधि-विधान से की जाती है. शिव पुराण के अनुसार माँ भद्रकाली को शक्ति और सौंदर्य का प्रतीक हैंजो भक्तों को भय से मुक्ति, दुष्टों का दमन और करती है. माँ भद्रकाली को दक्ष यज्ञ विनाशिनी के नाम से भी जाना जाता है. यह भी पढ़ें : Ekadanta Sankashti Chaturthi 2025: गणेशजी को ‘प्रथम-पूज्य देव’ कब माना गया. जानें एकदंत संकष्टी चतुर्थी का महत्व, मंत्र, पूजा-विधि एवं पौराणिक कथा!

भद्रकाली जयंती मूल तिथि एवं मुहूर्त

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी आरंभ: 01.12 AM (23 मई 2025)

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष एकादशी समाप्त: 10.30 PM (23 मई 2025)

उदया तिथि के अनुसार 23 मई 2025 को माँ भद्रकाली जयंती मनाई जाएगी.

भद्रकाली जयंती की पूजा विधि

   ज्येष्ठ मास की एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करें. इसके बाद पूरे घर की अच्छे से सफाई करें. इस अनुष्ठान में स्वच्छता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए. इसके बाद देवी भद्रकाली का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लेना चाहिए. अब एक स्वच्छ चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर इस पर माँ भद्रकाली की प्रतिमा स्थापित करें. प्रतिमा को गंगाजल से प्रतीकात्मक स्नान कराएं. देवी के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का जाप करें.

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।

 अब देवी के मस्तक पर हल्दी, कुमकुम, चंदन, अक्षत चढाएं. पुष्पहार पहनायें. प्रसाद में मिठाई और ताजे फल अर्पित करें. अनामिका उंगली से देवी को चंदन, कुमकुम एवं अक्षत का तिलक लगाएं. देवी की आरती उतारें. और प्रसाद का वितरण करें. अगले दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान कर व्रत का पारण करें.