प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाये जानेवाले करवा चौथ व्रत का सनातन धर्म में बहुत महत्व है. इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु एवं अच्छी सेहत के लिए निर्जल व्रत रखती हैं. व्रत का पारण चंद्रदर्शन एवं उसकी पूजा के बाद करने का विधान है. आखिर क्यों की जाती है चंद्रमा की पूजा? क्या है चंद्रमा महात्म्य? और इस करवा चौथ पर चंद्रोदय का क्या है समय? आइये जाने.यह भी पढ़े:Karwa Chauth 2021 Chand Timings: करवा चौथ के दिन दिल्ली, गुरुग्राम, अंबाला, लुधियाना और चंडीगढ़ सहित इन शहरों में जानें चांद निकलने का समय
हर धर्म में है चंद्रमा का महत्व!
भारत में विभिन्न धर्म और समुदाय के लोग निवास करते हैं. सभी के अपने-अपने व्रत, उत्सव एवं उसे मनाने के विभिन्न रस्म-रिवाज होते हैं. लेकिन इनमें कुछ न कुछ समानताएं भी होती है. इसी में एक है, चन्द्रमा और उसकी महिमा. चंद्रदर्शन का महत्व महज हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि इस्लाम धर्म में भी है. रमज़ान का पाक महीना चंद्रदर्शन के बाद ही शुरू होता है. यहाँ तक कि ईद और बकरीद जैसे महापर्व की तिथियाँ भी चंद्रदर्शन के बाद ही निर्धारित की जाती हैं. मुस्लिम समाज में ईद का चाँद देखने के बाद क्या बच्चे क्या वृद्ध, सबकी आँखों में खुशियाँ दौड़ जाती हैं, कि हाँ अब वे अपनी प्यारी ईद जरूर मना सकेंगे.
हिंदू व्रतों में चंद्रोदय का महात्म्य!
सनातन धर्म में चंद्रमा को देव-तुल्य माना जाता है तो खगोल शास्त्र में भी चंद्रमा को विशेष ग्रह बताया गया है. नौ ग्रहों में सूर्य के बाद चंद्रमा का स्थान माना गया है. वैसे तो हिंदू धर्म के अधिकांश व्रतों में चंद्रमा को विशेष महत्व दिया जाता है, लेकिन इनमें करवा चौथ का विशेष महत्व है, क्योंकि यह पर्व देश के लगभग हर भाग में मनाया जाता है. इस व्रत में सुहागन स्त्रियां (आजकल कुंवारी लड़कियां भी) पूरे दिन कठिन उपवास रखने के बाद शाम को शिव- परिवार की पूजा के बाद चंद्रदर्शन एवं पूजा करने के बाद पारण करती हैं.
करवा चौथ पूजा का समय!
सायं:काल 05.43 बजे से सायं:काल 06.59 बजे तक. (24 अक्टूबर 2021)
चंद्रोदय का समय!
चंद्रोदय: रात्रि में 08.07 बजे
(अलग-अलग शहरों में चांद निकलने के समय में बदलाव हो सकते हैं.)
हिंदू धर्मानुसार चंद्रदेव का परिचय?
भागवत पुराण के अनुसार चन्द्रमा को महर्षि अत्रि और अनुसूया का पुत्र माना गया है. चंद्रदेव के वस्त्र, रथ और अश्व (घोड़ा) सभी श्वेत रंग के होते हैं. इन्हीं वंश में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया था, इसलिए चंद्रदेव भी भगवान श्रीकृष्ण की तरह सोलह कलाओं से युक्त थे. समुद्र-मंथन के दौरान उत्पन्न होने के कारण मां लक्ष्मी और कुबेर का भाई बताया गया है. भगवान शिव ने इन्हें अपने कहते हैं कि चंद्रदेव का विवाह राजा दक्ष की 27 कन्याओं से हुआ है, जिन्हें हम 27 नक्षत्रों के रूप में जानते हैं. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार बुध इनके पुत्र और पत्नी तारा हैं. नवग्रहों में चन्द्रमा को सूर्य के बाद दूसरा स्थान प्राप्त है. चौथ व्रत का सनातन धर्म में अत्यधिक महत्व है.